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भैरवनाथ के कपाट खुलने के बाद ही होती है बाबा केदार की आरती, जानिए वजह ? - latest news

भगवान केदारनाथ के कपाट 9 मई को पूरे विधि विधान के साथ खोल दिए गए हैं. केदारनाथ मंदिर में भगवान केदार की पूजा करने से पहले भैरव बाबा की पूजा करने की परंपरा है.

बाबा भैरवनाथ.
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Published : May 11, 2019, 8:08 PM IST

रुद्रप्रयाग: प्रदेश में चारधाम यात्रा का आगाज हो गया है. केदार धाम में स्थित भगवान केदार के दर्शन से पहले यहां एक अहम परंपरा निभाई जाती है. इस मंदिर में भगवान केदार की आरती तब तक नहीं की जाती, जब तक भैरवनाथ मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते.

स्थानीय लोग भगवान भैरवनाथ को केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक के रूप में पूजते हैं. स्थानीय लोग भैरव बाबा को भगवान केदारनाथ का अग्रवीर भी मानते हैं. जब तक केदारनाथ स्थित भैरव मंदिर के कपाट नहीं खुलते हैं, तब तक भगवान केदारनाथ की रात्रि की आरती नहीं होती है. साथ ही भगवान केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं चढ़ाया जाता है.

9 मई को पूरे विधि-विधान के साथ भगवान केदारनाथ के कपाट खुल चुके हैं. मंदिर समिति और केदारनाथ के पुजारियों के निर्देशन में केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक भगवान भैरवनाथ के कपाट भी खोले गए. भैरवनाथ केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक हैं. कहा जाता है कि सम्पूर्ण केदारनाथ की रक्षा भगवान भैरव करते हैं. केदारनाथ के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरव मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं.

ग्रीष्मकाल के 6 माह प्रवास के बाद जब भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली केदारनाथ के लिए रवाना होती है तो इससे एक दिन पहले शाम के समय शीतकालीन मंदिर ऊखीमठ में भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. बता दें कि भगवान भैरवनाथ के कपाट खुलने से पूर्व भगवान केदारनाथ की आरती नहीं की जाती है. साथ ही केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं लगाया जाता है. जब केदारनाथ के कपाट बंद होते हैं तो भैरवनाथ को केदारनाथ की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है.

रुद्रप्रयाग: प्रदेश में चारधाम यात्रा का आगाज हो गया है. केदार धाम में स्थित भगवान केदार के दर्शन से पहले यहां एक अहम परंपरा निभाई जाती है. इस मंदिर में भगवान केदार की आरती तब तक नहीं की जाती, जब तक भैरवनाथ मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते.

स्थानीय लोग भगवान भैरवनाथ को केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक के रूप में पूजते हैं. स्थानीय लोग भैरव बाबा को भगवान केदारनाथ का अग्रवीर भी मानते हैं. जब तक केदारनाथ स्थित भैरव मंदिर के कपाट नहीं खुलते हैं, तब तक भगवान केदारनाथ की रात्रि की आरती नहीं होती है. साथ ही भगवान केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं चढ़ाया जाता है.

9 मई को पूरे विधि-विधान के साथ भगवान केदारनाथ के कपाट खुल चुके हैं. मंदिर समिति और केदारनाथ के पुजारियों के निर्देशन में केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक भगवान भैरवनाथ के कपाट भी खोले गए. भैरवनाथ केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक हैं. कहा जाता है कि सम्पूर्ण केदारनाथ की रक्षा भगवान भैरव करते हैं. केदारनाथ के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरव मंदिर के कपाट बंद किए जाते हैं.

ग्रीष्मकाल के 6 माह प्रवास के बाद जब भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली केदारनाथ के लिए रवाना होती है तो इससे एक दिन पहले शाम के समय शीतकालीन मंदिर ऊखीमठ में भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है. बता दें कि भगवान भैरवनाथ के कपाट खुलने से पूर्व भगवान केदारनाथ की आरती नहीं की जाती है. साथ ही केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं लगाया जाता है. जब केदारनाथ के कपाट बंद होते हैं तो भैरवनाथ को केदारनाथ की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है.

भैरवनाथ के कपाट खुलने के बाद केदार बाबा की आरती शुरू
श्रद्धालु अब कर सकेंगे केदार बाबा के श्रृंगार दर्शन
रुद्रप्रयाग। भगवान केदारनाथ की भैरवनाथ से अनूठी परंपरा जुड़ी हुई है। भैरवनाथ को भगवान केदारनाथ का क्षेत्ररक्षक के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय भाषा में भैरव बाबा को भगवान केदारनाथ का अग्रवीर भी माना जाता है। जब तक केदारनाथ स्थित भैरव मंदिर के कपाट नहीं खुलते हैं, तब तक भगवान केदारनाथ की रात्रि की आरती भी नहीं होती है। साथ ही भगवान केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं चढ़ाया जाता है।
नौ मई को पूरे विधि-विधान के साथ भगवान केदारनाथ के कपाट खुल चुके हैं। आज मंदिर समिति और केदारनाथ के पुजारियों के निर्देशन में केदारनाथ के क्षेत्र रक्षक भगवान भैरवनाथ के कपाट भी खोले गये। भैरवनाथ केदारनाथ के क्षेत्ररक्षक हैं। कहा जाता है कि सम्पूर्ण केदारनाथ की रक्षा भगवान भैरव करते हैं। केदारनाथ के कपाट बंद करने से पहले भगवान भैरव मंदिर के कपाट बंद किये जाते हैं, जबकि ग्रीष्मकाल के छह माह प्रवास के बाद जब भगवान केदारनाथ की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली केदारनाथ के लिये रवाना होती है तो इससे एक दिन पहले शाम के समय शीतकालीन मंदिर ऊखीमठ में भगवान भैरवनाथ की पूजा-अर्चना संपंन होती है। भैरवनाथ के कपाट खुलने से पूर्व भगवान केदारनाथ की आरती संपंन नहीं होती है। साथ ही केदारनाथ को बाल भोग भी नहीं लगाया जाता है। इसके पीछे का यही कारण है कि भैरवनाथ को भगवान केदारनाथ के अग्रवीर के रूप में पूजा जाता है। जब तक अग्रवीर को प्रसन्न नहीं किया जाता है तब तक केदारनाथ की आरती संपंन नहीं हो सकती है। भैरवनाथ को भगवान शिव का ही स्वरूप माना जाता है। जब केदारनाथ के कपाट बंद होते हैं तो भैरवनाथ को केदारनाथ की रक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। भगवान केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद मंगलवार हो या शनिवार, इन दोनों में से एक वार आने पर भगवान भैरवनाथ के कपाट खोले जाते हैं। कपाट खोलने के बाद भैरवनाथ की आरती करने के साथ ही भैरव बाबा को भोग लगाया जाता है, जिसके बाद केदारनाथ भगवान की आरती और श्रृंगार दर्शन भी शुरू हो जाते हैं। आज से भगवान केदारनाथ के श्रृंगार दर्शन भी श्रद्धालु कर रहे हैं। इसके साथ ही भगवान केदारनाथ को भोग भी लगाया जाने लगा है। 



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