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Kalimath Temple: यहां पर आज भी हैं मां काली के पैरों के निशान, असुरों के विनाश के लिए लिया था जन्म - devotees wishes are fulfilled in Kalimath temple

देवभूमि उत्तराखंड देवताओं के कई रहस्यों से सराबोर हैं. इन्हीं चमत्कारों और देव रहस्यों के बीच देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ की चोटियों से घिरा हिमालय में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर स्थित है.

RUDRAPRAYAG KALIMATA MANDIR
कालीमठ मंदिर
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Published : Jul 4, 2022, 3:00 AM IST

रुद्रप्रयाग: यूं तो देश के कई मंदिरों में अनेक चमत्कार देखने-सुनने को मिलते हैं, लेकिन देवों की भूमि यानी देवभूमि उत्तराखंड देवताओं के कई रहस्यों से सराबोर है. इन्हीं चमत्कारों और देव रहस्यों के बीच रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ की चोटियों से घिरा हिमालय में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर स्थित है. यह मंदिर समुद्रतल से 1463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है. इस मंदिर को भारत के प्रमुख सिद्ध शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. कालीमठ मंदिर हिंदू 'देवी काली' को समर्पित है. कालीमठ मंदिर तंत्र और साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामाख्या और ज्वालामुखी के समान अत्यंत ही उच्च कोटि का है.

देवी काली के पैरों के निशान: स्कंद पुराण में केदारनाथ के 62वें अध्याय में मां काली के इस मंदिर का वर्णन है. कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर स्थित दिव्य चट्टान को 'काली शिला' के रूप में जाना जाता है. जहां देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं और काली शिला के बारे में यह विश्वास है कि मां दुर्गा शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के लिए काली शिला में 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं.

काली शिला में देवी देवता के 64 यंत्र हैं. मां दुर्गा को उन्हीं 64 यंत्रों से शक्ति मिली थी. कहते है कि इस स्थान पर 64 योगिनी विचरण करती रहती हैं. मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ और निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी. तब मां प्रकट हुई और असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला में पड़ गया और उन्होंने विकराल रूप धारण कर युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया.

ये भी पढ़ें: 14 जुलाई को गैरसैंण में हरीश रावत का हल्लाबोल, दलबदल को लेकर 'अपनों' पर किया हमला

इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं: कालीमठ मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है. मंदिर के अंदर भक्त कुंडी की पूजा करते हैं. यह कुंड रजतपट श्री यंत्र से ढंका रहता है. केवल पूरे वर्ष में शारदे नवरात्रि में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और दिव्य देवी को बाहर ले जाया जाता है. यहां पूजा भी केवल मध्यरात्रि में ही की जाती है, तब केवल मुख्य पुजारी ही मौजूद होते हैं.

सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक: मान्यता अनुसार कालीमठ मंदिर सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक है. यह एक मात्र ऐसी जगह है, जहां माता काली अपनी बहन माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ स्थित हैं. कालीमठ में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है.

ये भी पढ़ें: चारधाम यात्रा के बाद कांवड़ मेले का होगा भव्य आयोजन, टूटेगा कुंभ का रिकॉर्ड!

कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था. उनका रक्त जमीन पर ना पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उनके रक्त को चाटना शुरू किया. रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है. इस शिला पर माता ने उसका सिर रखा था. रक्तबीज शीला वर्तमान समय में आज भी मंदिर के निकट नदी के किनारे स्थित है.

कालीमठ मंदिर की मान्यता: कालीमठ मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है. इस मंदिर में एक अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है. कालीमठ मंदिर पर रक्त शिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित हैं. कालीमठ मंदिर में दानवों का वध करने के बाद मां काली मंदिर के स्थान पर अंतर्ध्यान हो गई, जिसके बाद से कालीमठ में मां काली की पूजा की जाती है. कालीमठ मंदिर की पुनर्स्थापना शंकराचार्य जी ने की थी.

कालिदास का साधना स्थल: गांव कालीमठ मूल रूप से और अभी भी गांव 'कवल्था' के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि भारतीय इतिहास के अद्वितीय लेखक कालिदास का साधना स्थल भी यही रहा है. इसी दिव्य स्थान पर कालिदास ने मां काली को प्रसन्न कर विद्वता को प्राप्त किया था. इसके बाद कालीमठ मंदिर में विराजित मां काली के आशीर्वाद से ही उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखें. जिनमें से संस्कृत में लिखा हुआ एकमात्र काव्य ग्रंथ 'मेघदूत' जो विश्व प्रसिद्ध है, 'रुद्रशूल' नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं, जो ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं. इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है.

शीला से हर साल निकलता है रक्त: मंदिर के नदी के किनारे स्थित काली शीला के बारे में यह मान्यता है कि कालीमठ में मां काली ने जिस शीला पर दानव रक्तबीज का वध किया, उस शीला से हर साल दशहरा के दिन वर्तमान समय में भी रक्त निकलता है. यह भी माना जाता है कि मां काली शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के बाद भी शांत नहीं हुई, तो भगवान शिव मां काली के चरणों के नीचे लेट गए थे. जैसे ही मां काली ने भगवान शिवजी के सीने में पैर रखा, तो मां काली का क्रोध शांत हो गया और वह इस कुंड में अंतर्ध्यान हो गईं. माना जाता है कि मां काली इस कुंड में समाई हुई हैं और कालीमठ मंदिर में शिव शक्ति भी स्थापित है.

ये भी पढ़ें: अमरनाथ यात्रा : अब तक 40 हजार से अधिक ने किए बाबा बर्फानी के दर्शन, पांच की मौत

हर साल नवरात्रि में कालीमठ मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. दूर-दूर से श्रद्धालु मां काली का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं. इस सिद्धपीठ में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु मां को कच्चा नारियल और श्रृंगार सामग्री चूड़ी, बिंदी, छोटा दर्पण, कंघी, रिबन, चुनरिया अर्पित करते हैं. देशभर में कालीमठ मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां पर मां काली, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी के अलग अलग मंदिर बने हुए हैं.

ऐसे पहुंचे यहां: कालीमठ मंदिर तक पहुंचने के लिए सर्वप्रथम रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड हाईवे के जरिए 42 किमी का सफर तय कर गुप्तकाशी पहुंचे. उसके बाद गुप्तकाशी से सड़क मार्ग से आठ किलोमीटर का सफर तय कर कालीमठ मंदिर पहुंचा जा सकता है.

रुद्रप्रयाग: यूं तो देश के कई मंदिरों में अनेक चमत्कार देखने-सुनने को मिलते हैं, लेकिन देवों की भूमि यानी देवभूमि उत्तराखंड देवताओं के कई रहस्यों से सराबोर है. इन्हीं चमत्कारों और देव रहस्यों के बीच रुद्रप्रयाग जिले के केदारनाथ की चोटियों से घिरा हिमालय में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर स्थित है. यह मंदिर समुद्रतल से 1463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है. इस मंदिर को भारत के प्रमुख सिद्ध शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. कालीमठ मंदिर हिंदू 'देवी काली' को समर्पित है. कालीमठ मंदिर तंत्र और साधनात्मक दृष्टिकोण से यह स्थान कामाख्या और ज्वालामुखी के समान अत्यंत ही उच्च कोटि का है.

देवी काली के पैरों के निशान: स्कंद पुराण में केदारनाथ के 62वें अध्याय में मां काली के इस मंदिर का वर्णन है. कालीमठ मंदिर से 8 किलोमीटर की खड़ी ऊंचाई पर स्थित दिव्य चट्टान को 'काली शिला' के रूप में जाना जाता है. जहां देवी काली के पैरों के निशान मौजूद हैं और काली शिला के बारे में यह विश्वास है कि मां दुर्गा शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के लिए काली शिला में 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुई थीं.

काली शिला में देवी देवता के 64 यंत्र हैं. मां दुर्गा को उन्हीं 64 यंत्रों से शक्ति मिली थी. कहते है कि इस स्थान पर 64 योगिनी विचरण करती रहती हैं. मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ और निशुंभ दैत्यों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी. तब मां प्रकट हुई और असुरों के आतंक के बारे में सुनकर मां का शरीर क्रोध से काला में पड़ गया और उन्होंने विकराल रूप धारण कर युद्ध में दोनों दैत्यों का संहार कर दिया.

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इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं: कालीमठ मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है. मंदिर के अंदर भक्त कुंडी की पूजा करते हैं. यह कुंड रजतपट श्री यंत्र से ढंका रहता है. केवल पूरे वर्ष में शारदे नवरात्रि में अष्ट नवमी के दिन इस कुंड को खोला जाता है और दिव्य देवी को बाहर ले जाया जाता है. यहां पूजा भी केवल मध्यरात्रि में ही की जाती है, तब केवल मुख्य पुजारी ही मौजूद होते हैं.

सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक: मान्यता अनुसार कालीमठ मंदिर सबसे ताकतवर मंदिरों में से एक है. यह एक मात्र ऐसी जगह है, जहां माता काली अपनी बहन माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ स्थित हैं. कालीमठ में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन भव्य मंदिर है.

ये भी पढ़ें: चारधाम यात्रा के बाद कांवड़ मेले का होगा भव्य आयोजन, टूटेगा कुंभ का रिकॉर्ड!

कालीमठ मंदिर के समीप मां ने रक्तबीज का वध किया था. उनका रक्त जमीन पर ना पड़े, इसलिए महाकाली ने मुंह फैलाकर उनके रक्त को चाटना शुरू किया. रक्तबीज शिला नदी किनारे आज भी स्थित है. इस शिला पर माता ने उसका सिर रखा था. रक्तबीज शीला वर्तमान समय में आज भी मंदिर के निकट नदी के किनारे स्थित है.

कालीमठ मंदिर की मान्यता: कालीमठ मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई मनोकामना जरूर पूरी होती है. इस मंदिर में एक अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है. कालीमठ मंदिर पर रक्त शिला, मातंगशिला व चंद्रशिला स्थित हैं. कालीमठ मंदिर में दानवों का वध करने के बाद मां काली मंदिर के स्थान पर अंतर्ध्यान हो गई, जिसके बाद से कालीमठ में मां काली की पूजा की जाती है. कालीमठ मंदिर की पुनर्स्थापना शंकराचार्य जी ने की थी.

कालिदास का साधना स्थल: गांव कालीमठ मूल रूप से और अभी भी गांव 'कवल्था' के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि भारतीय इतिहास के अद्वितीय लेखक कालिदास का साधना स्थल भी यही रहा है. इसी दिव्य स्थान पर कालिदास ने मां काली को प्रसन्न कर विद्वता को प्राप्त किया था. इसके बाद कालीमठ मंदिर में विराजित मां काली के आशीर्वाद से ही उन्होंने अनेक ग्रन्थ लिखें. जिनमें से संस्कृत में लिखा हुआ एकमात्र काव्य ग्रंथ 'मेघदूत' जो विश्व प्रसिद्ध है, 'रुद्रशूल' नामक राजा की ओर से यहां शिलालेख स्थापित किए गए हैं, जो ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं. इन शिलालेखों में भी इस मंदिर का पूरा वर्णन है.

शीला से हर साल निकलता है रक्त: मंदिर के नदी के किनारे स्थित काली शीला के बारे में यह मान्यता है कि कालीमठ में मां काली ने जिस शीला पर दानव रक्तबीज का वध किया, उस शीला से हर साल दशहरा के दिन वर्तमान समय में भी रक्त निकलता है. यह भी माना जाता है कि मां काली शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के बाद भी शांत नहीं हुई, तो भगवान शिव मां काली के चरणों के नीचे लेट गए थे. जैसे ही मां काली ने भगवान शिवजी के सीने में पैर रखा, तो मां काली का क्रोध शांत हो गया और वह इस कुंड में अंतर्ध्यान हो गईं. माना जाता है कि मां काली इस कुंड में समाई हुई हैं और कालीमठ मंदिर में शिव शक्ति भी स्थापित है.

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हर साल नवरात्रि में कालीमठ मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. दूर-दूर से श्रद्धालु मां काली का आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं. इस सिद्धपीठ में पूजा अर्चना के लिए श्रद्धालु मां को कच्चा नारियल और श्रृंगार सामग्री चूड़ी, बिंदी, छोटा दर्पण, कंघी, रिबन, चुनरिया अर्पित करते हैं. देशभर में कालीमठ मंदिर एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां पर मां काली, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी के अलग अलग मंदिर बने हुए हैं.

ऐसे पहुंचे यहां: कालीमठ मंदिर तक पहुंचने के लिए सर्वप्रथम रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड हाईवे के जरिए 42 किमी का सफर तय कर गुप्तकाशी पहुंचे. उसके बाद गुप्तकाशी से सड़क मार्ग से आठ किलोमीटर का सफर तय कर कालीमठ मंदिर पहुंचा जा सकता है.

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