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शैलेन्द्र ने ITI की पढ़ाई के बाद शुरू किया गौ पालन व्यवसाय, ये है सपना - रुद्रप्रयाग आत्मानिर भरभारत

स्वरोजगार करने वालों के लिए प्रेरणा बने शैलेन्द्र आईटीआई मैकेनिकल की पढ़ाई के बाद शहरों की ओर रुख किया कुछ लाभ ने मिलने पर युवा ने अत्मनिर्भर बनने की ठानी. जिसके बाद युवा शैलेन्द्र ने अपने गांव लौटकर गौपालन कर अपना व्यवसाय शुरू किया.

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Published : Dec 23, 2020, 2:32 PM IST

रुद्रप्रयाग: पढ़ लिखकर हर युवा शहर में बड़ी नौकरी के ख्वाब संजोता है. लेकिन चकाचौंध वाली नौकरियों के इस दौर में ऐसे युवा भी हैं, जो अपना माटी से जुड़ रहे हैं. शहरों की चकाचौंध भरी नौकरी का चश्मा चढ़े युवाओं को सीख भी दे रहे हैं. आज हम आपको ऐसे से युवा से रूबरू कराने जा रहे हैं. जिसने अपनी मेहनत और लगन से अपनी तरक्की की इबारत लिखी है. हम बात कर रहे हैं रुद्रप्रयाग के शैलेन्द्र की, जो गांव में ही रहकर तरक्की की इबारत लिखने के सपने बुन रहा है.

दरअसल, आम मध्यम वर्गीय परिवार के युवा की तरह ही शैलेन्द्र ने अपने पारिवारिक परिस्थितियों के चलते स्नातक अंतिम वर्ष की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों का रूख किया. कम्प्यूटर और आईटीआई मैकेनिकल का सर्टिफिकेट हाथ में लिए हुए इस युवा ने कई फैक्ट्रियों के दरवाजों पर दस्तक दी, लेकिन कहीं भी मेहनत के बराबर का सम्मान नहीं मिला.

ये भी पढ़ें: हरिद्वार में दुष्कर्म का एक और मामला आया सामने, रेप के बाद प्रेगनेंट हुई 15 साल की छात्रा

तीन सालों तक शहरी जीवन का अनुभव लेकर शैलेन्द्र ने गांव में ही स्वरोजगार करने का संकल्प लेकर घर का रूख किया. संघर्ष के प्रारंभिक दिनों का जिक्र करते हुए शैलेन्द्र बताते हैं कि फैक्ट्रियों में जी तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी नहीं बच पाती थी कि घर का खर्च भी चलाया जा सकें. क्योंकि आमदनी का अधिकांश कमाई कमरे के किराये और आने-जाने पर ही व्यय हो जाती थी. जिसके बाद उन्होंने गांव लौटने का निश्चय किया. साथ ही गांव लौटकर अपना व्यवसाय शुरू किया.

बड़े भाई गजेन्द्र रौतेला, जिन्हें ऐसे व्यवसाय की बहुत अच्छी जानकारी थी, उनके साथ विचार-विमर्श कर गौपालन के लिए प्रेरित किया गया. साथ ही यू-ट्यूब से भी गौपालन के बारे में जानकारी जुटाई. साथ ही अंत में डेयरी उद्योग खोलने का निश्चय लिया गया. पहले घर की गौशाला से एक गाय के साथ ही व्यवसाय शुरू किया गया. पहली गाय हरियाणा से एचएफ नस्ल की खरीदी गई, जो 20 किलो दूध देती है. इस गाय से छः माह में इतनी आमदनी हो गई कि दूसरी गाय भी खरीद ली गई.

वहीं, इसी बीच सरकारी मदद लेने की भी कोशिश की, मगर कई प्रकार की औपचारिकताओं, जिनमें सरकारी सेवक के गारन्टर होने की शर्त के साथ हैसियत प्रमाण पत्र सहित कई बैंकिग औपचारिकताओं के चलते बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा. बैंकिंग औपचारिकताओं को जानने-सीखने के उद्देश्य से शैलेन्द्र ने व्यवसाय को बीच में ही रोककर आठ माह बैंक की भी नौकरी की. बैंक व सरकार से ऋण लेने की बारीकियों को समझ कर पुनः आठ माह बाद व्यवसाय शुरू किया.

पढ़ें-एंबुलेंस की राह होगी आसान, रास्ता न देने वालों पर कड़ी कार्रवाई

ईमानदारी और शुद्धता को अपने व्यवसाय का मूलमंत्र मानने वाले इस युवा व्यवसायी ने स्थानीय बाजार में अपनी इतनी पैठ बना ली और आज हर परिवार और दुकानदार शैलेन्द्र से ही दूध खरीदना चाहता है.

शैलेन्द्र का कहना है कि यदि सरकारी मदद भी हासिल हो तो वे दस गायों के साथ व्यवसाय को नया आयाम देंगे. दुग्ध व्यवसाय के साथ-साथ शैलेन्द्र खेती, सब्जी व फूलों, मधुमक्खियों के व्यवसाय की भी बारीकियां सीख रहे हैं. आगे की योजनाओं पर बात करते हुए शैलेन्द्र कहते हैं कि जैसे -जैसे बचत बढ़ेगी,वैसे व्यवसाय को भी आगे बढ़ाने के साथ-साथ अन्य युवाओं को भी रोजगार देना उनका उद्देश्य है.

रुद्रप्रयाग: पढ़ लिखकर हर युवा शहर में बड़ी नौकरी के ख्वाब संजोता है. लेकिन चकाचौंध वाली नौकरियों के इस दौर में ऐसे युवा भी हैं, जो अपना माटी से जुड़ रहे हैं. शहरों की चकाचौंध भरी नौकरी का चश्मा चढ़े युवाओं को सीख भी दे रहे हैं. आज हम आपको ऐसे से युवा से रूबरू कराने जा रहे हैं. जिसने अपनी मेहनत और लगन से अपनी तरक्की की इबारत लिखी है. हम बात कर रहे हैं रुद्रप्रयाग के शैलेन्द्र की, जो गांव में ही रहकर तरक्की की इबारत लिखने के सपने बुन रहा है.

दरअसल, आम मध्यम वर्गीय परिवार के युवा की तरह ही शैलेन्द्र ने अपने पारिवारिक परिस्थितियों के चलते स्नातक अंतिम वर्ष की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर रोजगार की तलाश में शहरों का रूख किया. कम्प्यूटर और आईटीआई मैकेनिकल का सर्टिफिकेट हाथ में लिए हुए इस युवा ने कई फैक्ट्रियों के दरवाजों पर दस्तक दी, लेकिन कहीं भी मेहनत के बराबर का सम्मान नहीं मिला.

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तीन सालों तक शहरी जीवन का अनुभव लेकर शैलेन्द्र ने गांव में ही स्वरोजगार करने का संकल्प लेकर घर का रूख किया. संघर्ष के प्रारंभिक दिनों का जिक्र करते हुए शैलेन्द्र बताते हैं कि फैक्ट्रियों में जी तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी नहीं बच पाती थी कि घर का खर्च भी चलाया जा सकें. क्योंकि आमदनी का अधिकांश कमाई कमरे के किराये और आने-जाने पर ही व्यय हो जाती थी. जिसके बाद उन्होंने गांव लौटने का निश्चय किया. साथ ही गांव लौटकर अपना व्यवसाय शुरू किया.

बड़े भाई गजेन्द्र रौतेला, जिन्हें ऐसे व्यवसाय की बहुत अच्छी जानकारी थी, उनके साथ विचार-विमर्श कर गौपालन के लिए प्रेरित किया गया. साथ ही यू-ट्यूब से भी गौपालन के बारे में जानकारी जुटाई. साथ ही अंत में डेयरी उद्योग खोलने का निश्चय लिया गया. पहले घर की गौशाला से एक गाय के साथ ही व्यवसाय शुरू किया गया. पहली गाय हरियाणा से एचएफ नस्ल की खरीदी गई, जो 20 किलो दूध देती है. इस गाय से छः माह में इतनी आमदनी हो गई कि दूसरी गाय भी खरीद ली गई.

वहीं, इसी बीच सरकारी मदद लेने की भी कोशिश की, मगर कई प्रकार की औपचारिकताओं, जिनमें सरकारी सेवक के गारन्टर होने की शर्त के साथ हैसियत प्रमाण पत्र सहित कई बैंकिग औपचारिकताओं के चलते बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा. बैंकिंग औपचारिकताओं को जानने-सीखने के उद्देश्य से शैलेन्द्र ने व्यवसाय को बीच में ही रोककर आठ माह बैंक की भी नौकरी की. बैंक व सरकार से ऋण लेने की बारीकियों को समझ कर पुनः आठ माह बाद व्यवसाय शुरू किया.

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ईमानदारी और शुद्धता को अपने व्यवसाय का मूलमंत्र मानने वाले इस युवा व्यवसायी ने स्थानीय बाजार में अपनी इतनी पैठ बना ली और आज हर परिवार और दुकानदार शैलेन्द्र से ही दूध खरीदना चाहता है.

शैलेन्द्र का कहना है कि यदि सरकारी मदद भी हासिल हो तो वे दस गायों के साथ व्यवसाय को नया आयाम देंगे. दुग्ध व्यवसाय के साथ-साथ शैलेन्द्र खेती, सब्जी व फूलों, मधुमक्खियों के व्यवसाय की भी बारीकियां सीख रहे हैं. आगे की योजनाओं पर बात करते हुए शैलेन्द्र कहते हैं कि जैसे -जैसे बचत बढ़ेगी,वैसे व्यवसाय को भी आगे बढ़ाने के साथ-साथ अन्य युवाओं को भी रोजगार देना उनका उद्देश्य है.

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