रुद्रप्रयाग: चैत्र माह की नवरात्रि के दौरान सिद्धपीठ कालीमठ में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. साथ ही इस मंदिर का वर्णन का पुराणों में भी मिलता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार कालीमठ में मां काली ने देवताओं को काली रूप में प्रकट होकर सिद्धि प्रदान की थी, जिसके बाद से यह स्थान सिद्धपीठ कालीमठ कहलाता है. यहां प्रदेश ही नहीं देश के अन्य प्रांतों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
नवरात्रि का आज दूसरा दिन: चैत्र नवरात्रि का आज दूसरा दिन है. नवरात्रि के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की उपासना की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. वहीं चैत्र माह के नवरात्रों के दौरान सिद्धपीठ कालीमठ में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
मंदिर में अखंड धूनी: सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर सरस्वती नदी के किनारे स्थित है. केदारनाथ हाईवे पर स्थित गुप्तकाशी से कालीमठ मात्र आठ किमी दूर है. मां काली ने इस स्थान पर रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था. साथ ही देवताओं को यहां पर काली रूप में दर्शन दिये थे. कालीमठ में मां काली, महालक्ष्मी और सरस्वती के रूप में देवी का पूजन होता है. इस दिव्य स्थान में प्राचीनकाल से अखंड धूनी प्रज्ज्वलित है. इस धूनी को धारण करने से भूत-पिशाच की बाधाएं दूर होती हैं. यहां पर प्रेत शिला, शक्ति शिला, मातंगी सहित अन्य शिलाएं भी विराजमान हैं. इसके अलावा क्षेत्रपाल, सिद्धेश्वर महादेव सहित गौरीशंकर के मंदिर भी विद्यमान हैं.
पढ़ें-Chaitra Navratri 2022: शनिवार से चैत्र नवरात्रि शुरू, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
सभी मनोरथ होते हैं पूरे: सिद्धपीठ कालीमठ के पुजारी जयप्रकाश गौड़ ने बताया कि सिद्धपीठ कालीमठ में पूजा-अर्चना और दर्शन करने से सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. उन्होंने बताया कि जब रक्तबीज राक्षस का देवताओं से युद्ध चल रहा था तो उससे छुटकारा पाने के लिये देवताओं ने देवी की स्तुति की थी. जिसके बाद देवी ने काली रूप में यहां पर देवताओं को दर्शन देकर रक्तबीज राक्षस का वध किया था. जिसके बाद से इस स्थान को सिद्धपीठ कालीमठ कहा जाता है. उन्होंने कहा कि नवरात्रों के अलावा अन्य समय भी यहां भक्त आते रहते हैं.
कालीमठ मंदिर का पौराणिक महत्व: मां शक्ति के 108 स्वरूपों में एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीमठ रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है. देवासुर संग्राम से जुड़ी यहां की ऐतिहासिक घटना में माता पार्वती द्वारा रक्तबीज दानव के वध को लेकर कालीशिला का खास महत्व है. कालीमठ में मां दुर्गा दानव का वध कर जमीन के अंदर समा गई थीं. हिमालय में स्थित होने के कारण इस पीठ को गिरिराज पीठ के नाम से भी जाना जाता है. तंत्र साधना का यह सर्वोपरि स्थान माना जाता है. यहां पर मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और न ही यहां देवी की कोई मूर्ति है. साथ ही यहां पर न ही कुछ ऐसे पद चिह्न हैं कि जिन्हें निमित्त मानकार पूजा की जा सके.
इस धाम में अब बलि प्रथा बंद हो चुकी है और नारियल से ही माता की पूजा की जाती है. रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग के गुप्तकाशी से पहले कालीमठ-कविल्ठा मोटर मार्ग पर करीब 10 किमी की दूरी पर यह शक्ति पीठ है. जिसका उल्लेख केदारखंड, स्कन्द पुराण, देवी भागवत समेत कई पुराणों में मिलता है. मां काली, मां सरस्वती व मां लक्ष्मी की यहां पर पूजा होती है.