रुद्रप्रयाग: कोरोना महामारी के दौरान कोविड दानव ने किसी से अपनों को छीन लिया, तो किसी का रोजगार बंद हो गया है. जिससे लोग अपना बोरिया बिस्तर बांधकर परदेश से अपने घर लौटने लगे. इसी क्रम में पहाड़ लौटने वाले हजारों युवाओं में एक युवा केदारघाटी के अंतिम छोर पर बसे रेल गांव का मंजीत भी था. गांव लौटने पर सबसे बड़ी आवश्यकता रोजगार की थी. सरकार के तमाम दावों के बाद रोजगार के लिए पहाड़ लौटे बहुत से युवाओं को खास मदद नहीं मिली. लेकिन मंजीत के लिए यह सरकारी तंत्र और गांव परिवार की जिम्मेदारियों के बीच कुछ नया सोचने और करने का अवसर था. हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने की बजाय 24 वर्षीय मंजीत सिंह चौहान ने केदारनाथ यात्रा मार्ग पर फाटा से आगे ज्वालामुखी श्रोत के पास ढाबा खोल दिया और नाम रखा 'अपना ढाबा'.
मंजीत ने मछली पालन और पोल्ट्री फार्म का काम किया शुरू: शुरुआत में खास आमदनी तो नहीं हुई, लेकिन काम और यात्रा मार्ग की जरूरतों का अनुभव हो गया. ढाबे में पहाड़ी फूड और लोकल डिश हर किसी को लुभाने लगी. इससे प्रेरित होकर कुछ समय बाद मंजीत ने नया स्टार्टअप करने का मन बनाया और अपने गांव रेल में अपनी जमीन पर मछली पालन और पोल्ट्री फार्म का काम शुरू कर दिया. हेली सेवा कैंप नजदीक होने का फायदा मिला और डिमांड बढ़ने लगी. उन्होंने लोकल फिश के साथ ट्राउट फिश के लिए चार टैंक बनाए. एक टैंक की लागत तकरीबन दो से ढाई लाख रुपये आई.
भूस्खलन से मंजीत की मेहनत पर फिरा पानी: ट्राउट फिश की अच्छी ग्रोथ हुई, तो देहरादून से भी डिमांड आने लगीं. वहीं पोल्ट्री फार्म में मशहूर कड़कनाथ मुर्गे भी पालने शुरू किए. इनके लिए एक दो मंजिला आधुनिक सुविधाओं वाला भवन तैयार हुआ. इन सब का यहां भी अच्छा खासा बाजार था. ऐसे में डिमांड के साथ उत्पादन भी बढ़ता गया. अब मंजीत ने कुछ स्थानीय युवाओं को भी अपने स्टार्टअप से जोड़ा है. लगभग 6 युवाओं के स्टाफ के साथ ढाबा, फिशरी और पोल्ट्री बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा. दो कदम और आगे बढ़कर मंजीत ने गांव की तकरीबन 9 महिलाओं को साथ लेकर 'चौहान ग्रुप मल्टीपल स्टार्टअप‘ की नींव रखी. इसमें गांव के लोकल उत्पाद को बाजार देने का लक्ष्य था, लेकिन यह सब कुछ आगे बढ़ पाता. उससे पहले 17 जुलाई 2023 की रात मंजीत की सारी मेहनत पर भयंकर लैंडस्लाइड ने पानी फेर दिया.
जांच में 15 लाख के नुकसान का हुआ आकलन: स्टार्टअप का एक-एक हिस्सा पूरी तरह से तबाह हो गया. इस लैंडस्लाइड में 6 फिशरी के टैंक, दो मंजिला पोल्ट्री फार्म और लोकल फूड यूनिट के साथ 2 लाख 72 हजार लागत की पाइप लाइन भी खत्म हो गई थी. यह सब मंजीत के लिए जीवन का सबसे बुरा समय था, जिससे उबरना भी बड़ी चुनौती था. मंजीत ने जिले के आला अधिकारियों के सामने इस तबाही की तस्वीर रखी, जिस पर तहसीलदार ऊखीमठ ने जांच की और लगभग 15 लाख के नुकसान का आकलन किया और जल्द ही उचित मुआवजा मिलने का आश्वासन दिया.
मंजीत को नहीं मिली आर्थिक मदद: बहुत चक्कर काटने पर पता लगा कि इस प्रकार के नुकसान के लिए कोई मुआवजे का प्रावधान विभागों के पास नहीं है. विभागीय अधिकारियों ने उसे नया स्टार्टअप शुरू करने की सलाह भी दी, लेकिन सब कुछ गंवा देने के बाद दोबारा कैसे शुरू करें ये सवाल इस युवा को सताने लगा. उसने पहले ही अपने स्टार्टअप के लिए बैंक से डेढ़ लाख रुपए का लोन लिया था. अब कैसे, कहां से मदद मिलती यह अहम था.
मंजीत के सामने आर्थिक संकट: मंजीत के सामने सिर्फ अपना जीवन नहीं था. घर में 90 साल की बूढ़ी दादी, 11 साल पहले पिता के निधन के बाद मां, छोटी बहन और अपने साथ काम कर रहे 6 युवा और उनके परिवार का जीवन भी संभालना था. यह उधेड़बुन चल ही रही थी कि 28 अगस्त को ज्वालामुखी में उसके ढाबे को अतिक्रमण के नाम पर तोड़ दिया गया. आपदा से पूरी तरह से टूट चुके मंजीत के लिए यह दूसरी भयंकर आपदा थी, जिसने अब जीवन की सारी उम्मीदों पर पूर्ण विराम लगा दिया.
मंजीत ने शुरू किया यूट्यूब चैनल: अपने काम के साथ उसने अपना एक यूट्यूब चैनल बनाया था, जिसका नाम 'इनकम इन पहाड़' है. इसमें मंजीत अपने इनकम के सोर्सेस के बारे में बताता रहता है और युवाओं को कहता है कि आप पलायन मत करिए. आप अपने पहाड़ों और घरों में रहकर इस तरह के छोटे-छोटे व्यवसाय कर इनकम के सोर्सेस तैयार कर सकते हैं और एक अच्छी इनकम प्राप्त कर सकते हैं. मंजीत ने गांव और क्षेत्र में अपने 'चौहान ग्रुप्स' के जरिए प्लास्टिक कूड़ा निस्तारण व गांव के अन्य सार्वजनिक कार्यों में भी सहयोग देने की मुहिम चलाई. वहीं, मंजीत का मानना है कि अगर सरकार थोड़ा मदद करे तो हम दोबारा से खड़े हो सकते हैं. सरकार के लिए यह कड़वी हकीकत शायद मायने न रखे, लेकिन जाने अनजाने में सरकार ने कोविड के बाद मंजीत जैसे घर गांव लौटे पहाड़ के अनगिनत युवाओं को अनदेखा कर उनके सपनों को पंख लगने से पहले ही भुला दिया है.
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