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श्रीकृष्ण की बहन का रूप हैं हरियाली देवी, जन्माष्टमी पर शेषनाग देते हैं दर्शन - कृष्ण जन्माष्टमी रुद्रप्रयाग

जिले के जसोली गांव में मां हरियाली का मंदिर है और हर साल सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज धनतेरस पर्व पर किया जाता है. हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप हैं जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी हैं. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से पूर्व ही भक्त हरियाली मंदिर पहुंचते हैं और पर्व की तैयारियों में जुट जाते हैं. यहां पर देश-विदेशों से भक्त पहुंचते हैं, जो जन्माष्टमी पर्व पर रात्रि भर भजन कीर्तन गाकर श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हैं.

हरियाली देवी
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Published : Aug 23, 2019, 7:00 AM IST

Updated : Aug 23, 2019, 7:17 AM IST

रुद्रप्रयाग: रुद्रप्रयाग जिले में जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस पावन अवसर पर देवरियाताल में जहां श्रीकृष्ण भगवान की झांकियां निकाली जाती हैं, वहीं हरियाली देवी में भक्त पूजा-अर्चना कर पर्व को मनाते हैं. साथ ही यहां खास पकवान भी बनाये जाते हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण भगवान को चढ़ाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप भेंट किया जाता है.

बता दें कि रुद्रप्रयाग जिले के रानीगढ़ पट्टी स्थित सिद्धपीठ मां हरियाली देवी का विशेष महत्व है. द्वापर युग में जब कंस ने अपनी बहन देवकी के आठों पुत्रों को मारने का संकल्प लिया था, तब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म होते ही वासुदेव ने उसे गोकुल में नंद-यशोदा के पास पहुंचा दिया था, वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आये थे. इसके बाद जैसे ही कंस देवकी के आठवें पुत्र को मारने के लिए धरती पर पटकने लगा, वैसे ही बालिका योगमाया स्वरूप हाथ से छूटकर आकाश मार्ग से होकर हरि नामक पर्वत पर चली गईं. जिसके बाद से हरि पर्वत पर निवास करने वाली योगमाया हरियाली के नाम से विख्यात हो गई.

पढे़ं- भगवान कृष्ण के माथे पर सजता था उत्तराखंड के इस पर्वत का मोर पंख, जानिए पूरी कहानी

जिले के जसोली गांव में मां हरियाली का मंदिर हैं और हर साल सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज धनतेरस पर्व पर किया जाता है. हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी हैं. यात्रा में जसौली गांव की स्थानीय महिलाओं द्वारा मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को हरियाली पर्वत की ओर विदा किया जायेगा. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से पूर्व ही भक्त हरियाली मंदिर पहुंचते हैं और पर्व की तैयारियों में जुट जाते हैं. यहां पर देश-विदेशों से भक्त पहुंचते हैं, जो जन्माष्टमी पर्व पर रात्रि भर भजन कीर्तन गाकर श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हैं.

वहीं, दूसरी ओर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ऊखीमठ विकासखण्ड के देवरियाताल में मेले का आयोजन किया जाता है. देवरियाताल में एक विशालकाय झील है, झील में नाग देवता का वास है. मान्यता है कि जन्माष्टमी पर शेषनाग यहां पर भक्तों को दर्शन देते हैं. मेला समिति के अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट ने बताया कि हर साल की तरह इस बार भी मेले को भव्य रूप से मनाया जाएगा. इसके अलावा मेले को राज्य स्तर का दर्जा मिले, इसको लेकर भी समिति स्तर से प्रयास किए जा रहे हैं.

रुद्रप्रयाग: रुद्रप्रयाग जिले में जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस पावन अवसर पर देवरियाताल में जहां श्रीकृष्ण भगवान की झांकियां निकाली जाती हैं, वहीं हरियाली देवी में भक्त पूजा-अर्चना कर पर्व को मनाते हैं. साथ ही यहां खास पकवान भी बनाये जाते हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण भगवान को चढ़ाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप भेंट किया जाता है.

बता दें कि रुद्रप्रयाग जिले के रानीगढ़ पट्टी स्थित सिद्धपीठ मां हरियाली देवी का विशेष महत्व है. द्वापर युग में जब कंस ने अपनी बहन देवकी के आठों पुत्रों को मारने का संकल्प लिया था, तब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म होते ही वासुदेव ने उसे गोकुल में नंद-यशोदा के पास पहुंचा दिया था, वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आये थे. इसके बाद जैसे ही कंस देवकी के आठवें पुत्र को मारने के लिए धरती पर पटकने लगा, वैसे ही बालिका योगमाया स्वरूप हाथ से छूटकर आकाश मार्ग से होकर हरि नामक पर्वत पर चली गईं. जिसके बाद से हरि पर्वत पर निवास करने वाली योगमाया हरियाली के नाम से विख्यात हो गई.

पढे़ं- भगवान कृष्ण के माथे पर सजता था उत्तराखंड के इस पर्वत का मोर पंख, जानिए पूरी कहानी

जिले के जसोली गांव में मां हरियाली का मंदिर हैं और हर साल सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज धनतेरस पर्व पर किया जाता है. हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी हैं. यात्रा में जसौली गांव की स्थानीय महिलाओं द्वारा मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को हरियाली पर्वत की ओर विदा किया जायेगा. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से पूर्व ही भक्त हरियाली मंदिर पहुंचते हैं और पर्व की तैयारियों में जुट जाते हैं. यहां पर देश-विदेशों से भक्त पहुंचते हैं, जो जन्माष्टमी पर्व पर रात्रि भर भजन कीर्तन गाकर श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हैं.

वहीं, दूसरी ओर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ऊखीमठ विकासखण्ड के देवरियाताल में मेले का आयोजन किया जाता है. देवरियाताल में एक विशालकाय झील है, झील में नाग देवता का वास है. मान्यता है कि जन्माष्टमी पर शेषनाग यहां पर भक्तों को दर्शन देते हैं. मेला समिति के अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट ने बताया कि हर साल की तरह इस बार भी मेले को भव्य रूप से मनाया जाएगा. इसके अलावा मेले को राज्य स्तर का दर्जा मिले, इसको लेकर भी समिति स्तर से प्रयास किए जा रहे हैं.

Intro:देवरियाताल में नाग देवता देते हैं भक्तों का दर्शन
योग माया का स्वरूप है मां हरियाली देवी
श्रीकृष्ण की बहिन के रूप में होती है पूजा
जन्माष्टमी पर्व पर देवरियाताल और हरियाली देवी में होते हैं विभिन्न कार्यक्रम
रुद्रप्रयाग। रुद्रप्रयाग जिले में जन्माष्टमी का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर देवरियाताल में जहां श्रीकृष्ण भगवान की झांकियां निकाली जाती हैं वहीं हरियाली देवी में भक्त पूजा-अर्चना कर पर्व को मनाते हैं। इस अवसर पर खास पकवान भी बनाये जाते हैं, जिन्हें श्रीकृष्ण भगवान को चढ़ाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप भेंट किया जाता है। Body:आपको बता दें कि रुद्रप्रयाग जिले के रानीगढ़ पट्टी स्थित सिद्धपीठ मां हरियाली देवी का विशेष महत्व है। द्वापर युग में जब कंस ने अपनी बहिन देवकी के आठों पुत्रों को मारने का संकल्प लिया था, तब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म होते ही वसुदेव ने आठवें पुत्र को गोकुल में नंद-यशोदा के पास रखकर वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आये थे, तब जैसे ही कंस देवकी के आठवें पुत्र को मारने के लिए धरती पर पटकने लगा तब वही बालिका योगमाया स्वरूप हाथ से छूटकर आकाश मार्ग से होकर हरि नामक पर्वत पर अवस्थित हो गई। हरि पर्वत पर निवास करने वाली योगमाया हरियाली के नाम से विख्यात हो गई। जसोली गांव में मां हरियाली का मंदिर हैं और हर वर्ष हरि पर्वत के लिए सिद्धपीठ हरियाली देवी की यात्रा का आगाज धनतेरस पर्व पर किया जाता है। हरियाली देवी योगमाया का बालस्वरूप है जो कि शुद्ध स्वरूप में वैष्णवी है। यह देवी बच्छणस्यूं, चलणस्यूं, कंडारस्यूं व रानीगढ़ पट्टी सहित चार पट्टियों की कुलदेवी है। यात्रा में जसोली गांव की स्थानीय महिलाओं द्वारा मांगलिक गायनों के साथ हरियाली देवी की डोली को नम आखों से हरियाली पर्वत की ओर विदा किया जायेगा। ढोल नगाड़ों और शंख की ध्वनि के साथ हजारों श्रद्धालुओ की मौजूदगी में जसोली गांव से हरियाली देवी की डोली हरियाल पर्वत की ओर रवाना होती है। हरियाल पर्वत मां हरियाली देवी का मूल उत्पत्ति स्थान है, जिसको देवी का मायका माना जाता है, जिसकी दूरी जसोली गांव से दस किमी है तथा समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 9500 फीट है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से पूर्व ही भक्त हरियाली मंदिर पहुंचते हैं और पर्व की तैयारियों में जुट जाते हैं यहां पर देश-विदेशों से भक्त पहुंचते हैं, जो जन्माष्टमी पर्व पर रात्रि भर भजन कीर्तन गाकर श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हैं।
बाइट - 1 श्रद्धालु
बाइट - 2 श्रद्धालु Conclusion:वीओ -2- वहीं दूसरी ओर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर ऊखीमठ विकासखण्ड के देवरियाताल में मेले का आयोजन किया जाता है। देवरियाताल में एक विशालकाय झील है। झील में नाग देवता का वास है और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नाग देवता के दर्शन होते हैं। इस दिन आयोजित मेले में क्षेत्र के ऊखीमठ, सारी व मनसूना से श्रीकृष्ण की झांकियां आकर्षण का केन्द्र रहती हैं। इसके अलावा स्थानीय लोक कलाकारों की ओर से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं ऊषा ग्रुप द्वारा भीम घटोत्कच मिलन की लोक नाटिका की प्रस्तुति का मंचन किया जाता है। लोक मान्यताओं के अनुसार पांडव यक्ष का संवाद भी इसी स्थान पर हुआ था। मान्यता है कि जन्माष्टमी पर शेषनाग यहां पर भक्तों को दर्शन देते हैं। मेला समिति के अध्यक्ष चंडी प्रसाद भटट ने बताया कि प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी मेले को भव्य रूप से मनाया जाएगा। इसके अलावा मेले को राज्य स्तर का दर्जा मिले, इसको लेकर भी समिति स्तर से प्रयास किए जा रहे हैं।
बाइट - चंडी प्रसाद भट्ट, मेलाध्यक्ष देवरियाताल
Last Updated : Aug 23, 2019, 7:17 AM IST
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