रुद्रप्रयागः प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों को लेकर भले ही सरकार कागजों और प्रचार-प्रसार में बहुत तेजी दिखा रही है, मगर हकीकत उसके बिल्कुल उलट नजर आ रही है. रुद्रप्रयाग जिले का एक ऐसा ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल बदहाली के आंसू बयां कर रहा है. मंदिर को बढ़ावा देने को लेकर जिला प्रशासन से लेकर सरकार दम भरती नहीं थकती हैं, लेकिन हकीकत ढाक के तीन-पात जैसे नजर आ रहे हैं.
रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राजमार्ग पर सोनप्रयाग से प्राचीन घुत्तू-केदारनाथ जाने वाले मार्ग पर करीब 13 किमी की दूरी पर स्थिति त्रियुगीनारायण गांव में भगवान विष्णु को समर्पित यह शानदार त्रियुगीनारायण मंदिर. यह मंदिर आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा निर्मित किया गया है. मान्यता है कि विष्णु भगवान के इस मंदिर में सतयुग में शिव ने पार्वती से विवाह किया था. इस दिव्य विवाह के लिए चारों कोनों में विशाल हवन कुंड जलाया गया था.
सभी ऋषियों ने शादी में भाग लिया, जिसमें विष्णु भगवान द्वारा खुद समारोह की देख रेख की थी. माना जाता है कि दिव्य अग्नि के अवशेष आज भी हवन कुंड में जलते हैं. अग्नि में तीर्थ यात्री लकड़ी डालते हैं. यह कुंड तीन युग से यहां पर जलता आ रहा है. इसलिए इसे त्रियुगीनारायण के नाम से जाना जाता है. इस आग की राख को विवाहित जीवन के लिए वरदान माना जाता है.इस मंदिर परिसर में रूद्रकुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्राकुंड मौजूद हैं. इन कुंडों का पानी सरस्वती कुंड में बहता है. शिव पार्वती के विवाह के दौरान भगवान ने इन कुंडों में स्नान किया था. इसलिए आज भी यहां पर देश-विदेश से लोग इस अग्नि के सात फेरे लेकर शादी के बंधन में बंधते हैं.
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श्रद्धालुओं के लिए शौचालय तक नहीं
रूद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने इससे वेडिंग डेस्टिनेशन घोषित किया है, लेकिन सुविधाआों के अभाव में यहां लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ती हैं. भगवान विष्णु को समर्पित और सतयुग में शिव पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण मंदिर में भले ही वर्ष भर श्रद्धालुओं की आवोभगत रहती है, लेकिन यह मंदिर आज भी शासन-प्रशासन की घोर उपेक्षा का शिकार है.
मंदिर में आने वाले तीर्थ-यात्री सुविधाओं के अभाव में परेशान रहते हैं. स्थिति इतनी विकट है कि श्रद्धालुओं के लिए शौचालय तक की सुविधा नहीं है, जबकि बारिश और बर्फबारी के मौसम में रेन शेल्टर के अभाव में श्रद्धालु खुले आसमान के नीचे भीगने को विवश रहते हैं.
मंदिर प्रागण में भगवान विष्णु की नाभि से निकलने वाले जलकुण्ड में नहाने से पुण्य अर्जित होता है, लेकिन महिलाओं के लिए चेजिंग रूम तक की यहां व्यवस्था नहीं है. चारधाम यात्राकाल के दौरान छह माह चिकित्सा कैम्प जरूर यहां लगाया जाता है, मगर कपाट बंद होने के बाद यह कैम्प भी बंद हो जाता है. वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में विख्यात इस तीर्थ की बदहाली तो आप समझ गए होंगे, लेकिन अब देवस्थानम बोर्ड आने से यहां के तीर्थ-पुरोहित और पुजारी समाज भी खासा नाराज नजर आ रहा है.
पुरोहित समाज का मानना है कि देवस्थानम बोर्ड आने से उनके हक-हकूकों को उनसे छीना जा रहा है, जिससे उनकी आजीविका समाप्त हो रही है. बहरहाल, सरकार की योजनायें भले ही कागजों और भाषणबाजियों में जरूर इन मंदिरों को विकसित करने के दावे कर रही है, लेकिन ये योजनायें कब कागजों से निकलकर धरातल पर आएंगी यह समझ से परे है.