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क्रौंच पर्वत पर स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर की है खास मान्यता, दिखता है मनोरम दृश्य

उत्तराखंड वैसे तो देवों की भूमि है, लेकिन अपने मनमोहक नजारों के कारण भी यह सभी तरह के पर्यटन प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. यहां प्रकृति की मनमोहक छटाओं के बीच स्थित मंदिर धार्मिक अनुभूति के साथ ही मन को अद्भुत शांति भी प्रदान करते हैं. इन्हीं मंदिरों में से एक है रुद्रप्रयाग के कनकचौरी में क्रौंच पर्वत पर स्थित भगवान कार्तिक का मंदिर. यहां जाने पर इसके चारों ओर स्थित खूबसूरत पहाड़ों के नजारे देखते ही बनते हैं.

kartik swami temple
कार्तिक स्वामी मंदिर
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Published : Mar 22, 2023, 12:40 PM IST

रुद्रप्रयाग: कनकचौरी गांव के पास एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित, कार्तिक स्वामी मंदिर भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिक को समर्पित सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है. क्रौंच पर्वत के ऊपर बना यह मंदिर भगवान कार्तिक की आराधना के लिये समर्पित है. कार्तिक स्वामी को भारत के कुछ हिस्सों में भगवान मुरुगा या भगवान मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है.

पहाड़ों और सुंदर वादियों का मनोरम दृश्य: यह मंदिर पहाड़ के ऊपर स्थित है. बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां एक स्वप्निल छवि चित्रित करती हैं. जब बारिश होती है, तो माहौल अलौकिक हो जाता है. ऐसा लगता है कि मंदिर बादलों से उठ रहा है. कनकचौरी गांव से 3 किमी की चढ़ाई 80 सीढ़ियां चढ़कर खत्म होती है जो कि हजारों घंटियों से सजी शांत मंदिर तक जाती है. ऐसी मान्यता है कि यहां कार्तिक पूर्णिमा पर घंटी चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है. संध्या आरती या शाम की प्रार्थना यहां विशेष रूप से मंत्रमुग्ध कर देने वाली होती है. इस दौरान पूरा मंदिर परिसर टोलिंग घंटियों और भजनों से गुंजायमान रहता है.

दर्शन का सबसे अच्छा समय: मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून तक है. कार्तिक पूर्णिमा के दौरान बड़ी संख्या में लोग मंदिर आते हैं. ये पर्व अक्टूबर और नवंबर के बीच मनाया जाता है. यहां जून में कलश यात्रा के दौरान भी घूमने का जा सकते हैं. कार्तिक स्वामी मंदिर से आसपास की पर्वत चोटियों का स्पष्ट दृश्य आकर्षक है. सूर्यास्त और सूर्योदय भी नाटकीय होते हैं. यदि आसमान खुला हुआ हो तो मंदिर के चारों ओर फैली पर्वत श्रृंखलाएं और बर्फ से ढके हुये पर्वत साथ ही आकाश में मंडराते हुये बादल आश्चर्यजनक दृश्य प्रस्तुत करते हैं.

मंदिर के बारे में मान्यता: इस मंदिर के बारे में कई किवदंतियां हैं. सबसे लोकप्रिय किवदंती यह है जब भगवान शिव और देवी पार्वती के दोनों पुत्रों- भगवान कार्तिक और भगवान गणेश जी के बीच प्रतिस्पर्धा रखी गई जिसमें उनको ब्रह्मांड की सात बार परिक्रमा करने के लिए कहा गया. भगवान कार्तिक ने ब्रह्मांड के सात चक्कर लगाने के चुनौतीपूर्ण कार्य को अंजाम देते हुए अभियान की शुरुआत की. जबकि भगवान गणेश ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाए और उन्हें ही अपना ब्रह्मांड बताया. इस तरह भगवान गणेश ने प्रतियोगिता जीत ली. जब भगवान कार्तिक वापस लौटे और उन्हें पता चला कि कैसे भगवान गणेश ने कार्य पूरा किया और भगवान शिव की प्रशंसा प्राप्त की, तो वे क्रोधित हो गए.
पढ़ें: Navratri 2023 : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मिलता है मनचाहा आशीर्वाद और जीवन की सीख भी

क्रोध में कैलाश छोड़ क्रौंच पर्वत पर आए थे भगवान कार्तिक: पुराणों के अनुसार क्रोधित भगवान कार्तिक अपने माता-पिता के निवास कैलाश को छोड़कर क्रौंच पर्वत पर पहुंचे. कुछ किवदंतियों का कहना है कि इसके बाद, भगवान कार्तिक दक्षिण भारत में श्रीशैलम नाम के एक पर्वत पर गए. यहां उन्हें भगवान मुरुगा या भगवान मुरुगन और भगवान सुब्रमण्यम के अलावा उनके स्कंद के नाम से भी जाना जाता गया. कुछ धारणाएं हैं कि भगवान कार्तिक इतने क्रोधित थे, कि उन्होंने अपने माता-पिता को खुश करने के लिए क्रौंच पर्वत पर उन्होंने अपने शरीर का बलिदान कर दिया था.

रुद्रप्रयाग: कनकचौरी गांव के पास एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित, कार्तिक स्वामी मंदिर भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिक को समर्पित सबसे प्रमुख मंदिरों में से एक है. क्रौंच पर्वत के ऊपर बना यह मंदिर भगवान कार्तिक की आराधना के लिये समर्पित है. कार्तिक स्वामी को भारत के कुछ हिस्सों में भगवान मुरुगा या भगवान मुरुगन के नाम से भी जाना जाता है.

पहाड़ों और सुंदर वादियों का मनोरम दृश्य: यह मंदिर पहाड़ के ऊपर स्थित है. बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां एक स्वप्निल छवि चित्रित करती हैं. जब बारिश होती है, तो माहौल अलौकिक हो जाता है. ऐसा लगता है कि मंदिर बादलों से उठ रहा है. कनकचौरी गांव से 3 किमी की चढ़ाई 80 सीढ़ियां चढ़कर खत्म होती है जो कि हजारों घंटियों से सजी शांत मंदिर तक जाती है. ऐसी मान्यता है कि यहां कार्तिक पूर्णिमा पर घंटी चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है. संध्या आरती या शाम की प्रार्थना यहां विशेष रूप से मंत्रमुग्ध कर देने वाली होती है. इस दौरान पूरा मंदिर परिसर टोलिंग घंटियों और भजनों से गुंजायमान रहता है.

दर्शन का सबसे अच्छा समय: मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से जून तक है. कार्तिक पूर्णिमा के दौरान बड़ी संख्या में लोग मंदिर आते हैं. ये पर्व अक्टूबर और नवंबर के बीच मनाया जाता है. यहां जून में कलश यात्रा के दौरान भी घूमने का जा सकते हैं. कार्तिक स्वामी मंदिर से आसपास की पर्वत चोटियों का स्पष्ट दृश्य आकर्षक है. सूर्यास्त और सूर्योदय भी नाटकीय होते हैं. यदि आसमान खुला हुआ हो तो मंदिर के चारों ओर फैली पर्वत श्रृंखलाएं और बर्फ से ढके हुये पर्वत साथ ही आकाश में मंडराते हुये बादल आश्चर्यजनक दृश्य प्रस्तुत करते हैं.

मंदिर के बारे में मान्यता: इस मंदिर के बारे में कई किवदंतियां हैं. सबसे लोकप्रिय किवदंती यह है जब भगवान शिव और देवी पार्वती के दोनों पुत्रों- भगवान कार्तिक और भगवान गणेश जी के बीच प्रतिस्पर्धा रखी गई जिसमें उनको ब्रह्मांड की सात बार परिक्रमा करने के लिए कहा गया. भगवान कार्तिक ने ब्रह्मांड के सात चक्कर लगाने के चुनौतीपूर्ण कार्य को अंजाम देते हुए अभियान की शुरुआत की. जबकि भगवान गणेश ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाए और उन्हें ही अपना ब्रह्मांड बताया. इस तरह भगवान गणेश ने प्रतियोगिता जीत ली. जब भगवान कार्तिक वापस लौटे और उन्हें पता चला कि कैसे भगवान गणेश ने कार्य पूरा किया और भगवान शिव की प्रशंसा प्राप्त की, तो वे क्रोधित हो गए.
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क्रोध में कैलाश छोड़ क्रौंच पर्वत पर आए थे भगवान कार्तिक: पुराणों के अनुसार क्रोधित भगवान कार्तिक अपने माता-पिता के निवास कैलाश को छोड़कर क्रौंच पर्वत पर पहुंचे. कुछ किवदंतियों का कहना है कि इसके बाद, भगवान कार्तिक दक्षिण भारत में श्रीशैलम नाम के एक पर्वत पर गए. यहां उन्हें भगवान मुरुगा या भगवान मुरुगन और भगवान सुब्रमण्यम के अलावा उनके स्कंद के नाम से भी जाना जाता गया. कुछ धारणाएं हैं कि भगवान कार्तिक इतने क्रोधित थे, कि उन्होंने अपने माता-पिता को खुश करने के लिए क्रौंच पर्वत पर उन्होंने अपने शरीर का बलिदान कर दिया था.

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