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कालीमठ में मां ने किया था रक्तबीज का वध, मूर्ति की जगह यहां कुंडी की होती है पूजा

देवभूमि के रुद्रप्रयाग जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित प्रसिद्ध शक्ति सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर स्थित है. यहां पर मां ने रक्तबीज का वध किया था.

सिद्धपीठ श्री कालीमठ मंदिर .
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Published : Oct 7, 2019, 6:26 PM IST

रुद्रप्रयाग: शारदीय नवरात्रि के पर्व पर सभी भक्त माता के दर पर पहुंच रहे हैं. वहीं पूरे देश में व्याप्त मां शक्ति के 108 स्वरूपों में से प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीमठ रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. देवासुर संग्राम से जुड़ी एक घटना में माता पार्वती ने रक्तबीज दानव के वध को लेकर कालीशिला में अपना प्राकट्य रूप को धारण किया था. उसके बाद कालीमठ में इस दानव का वध कर माता जमीन के अन्दर समा गई थीं. वहीं, इस धाम में पूजा के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं. साथ ही यहां पर मूर्ति पूजा नहीं होती है.

कालीमठ में मां ने किया था रक्तबीज का वध.

हिमालय में स्थित होने के कारण इस पीठ को गिरिराज पीठ के नाम से भी जाना जाता है. तंत्र साधना का ये सर्वोपरि स्थान है. यहां पर मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और ना ही यहां देवी की कोई मूर्ति स्थापित है. मंदिर के गर्भ गृह में स्थित कुण्डी की ही पूजा की जाती है और बलिप्रथा के रूप में प्रसिद्ध इस धाम में अब बलि भी बन्द हो चुकी है और नारियल से ही माता की पूजा की जाती है.

रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग के गुप्तकाशी से पहले कालीमठ-कविल्ठा मोटर मार्ग पर करीब 10 किमी की दूरी पर ये शक्ति पीठ स्थित है. कालीमठ का केदारखण्ड, स्कन्द पुराण, देवी भागवत समेत कई पुराणों में वर्णन मिलता है. मां काली, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी की यहां पर पूजा होती है. मान्यता है कि यहां पर मां काली ने रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था और धरती के अन्दर समाहित हो गई थीं. देवासुर संग्राम के दौरान रक्त बीज से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने मां भगवती की आराधना की थी. तब कालीशिला नामक स्थान पर मां का अवतरण हुआ. मां ने जब रक्तबीज के अत्याचारों को सुना तो उनका शरीर क्रोध से काला पड़ गया और मां काली का प्रार्दुभाव हुआ.

ये भी पढ़ें: पंचायत चुनाव के बीच पुलिस को बड़ी सफलता, 18 लाख की शराब बरामद

पुराणों में वर्णित है कि गिरिराज पीठ आलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण है और ये धाम तंत्र साधना के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है. यही कारण है कि यहां देश-विदेश से साधक साधना के लिए पहुंचते हैं. मुख्य मंदिर में महज एक कुण्डी है, जिसके भीतर देवी का यंत्र स्थित है, जो कि पूरी तरह से बन्द है. नवरात्र के दौरान अष्टमी की रात्रि को इस कुण्डी को खोला जाता है. अर्धरात्रि में बंद आंखों से इस कुण्डी की सफाई होती है और इसे कोई भी खुली आंखों से नहीं देख सकता है. इसके साथ ही यहां पर प्रतीक स्वरूप रात्रि में ही रक्तबीज दानव का वध भी किया जाता है. मशालों को रक्तबीज शिला पर फेंका जाता है और सुबह शिला पर रक्त के थक्के साफ दिखाई देते हैं. यहां पहले पशुबलि बड़े पैमाने पर होती थी और सैकड़ों की संख्या में बकरियों और भैसों की बलि दी जाती थी. बाद में स्थानीय गबर सिंह राणा ने इस प्रथा का विरोध किया और यहां बलि प्रथा को बन्द करवाया.

रुद्रप्रयाग: शारदीय नवरात्रि के पर्व पर सभी भक्त माता के दर पर पहुंच रहे हैं. वहीं पूरे देश में व्याप्त मां शक्ति के 108 स्वरूपों में से प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीमठ रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. देवासुर संग्राम से जुड़ी एक घटना में माता पार्वती ने रक्तबीज दानव के वध को लेकर कालीशिला में अपना प्राकट्य रूप को धारण किया था. उसके बाद कालीमठ में इस दानव का वध कर माता जमीन के अन्दर समा गई थीं. वहीं, इस धाम में पूजा के लिए भक्त दूर-दूर से आते हैं. साथ ही यहां पर मूर्ति पूजा नहीं होती है.

कालीमठ में मां ने किया था रक्तबीज का वध.

हिमालय में स्थित होने के कारण इस पीठ को गिरिराज पीठ के नाम से भी जाना जाता है. तंत्र साधना का ये सर्वोपरि स्थान है. यहां पर मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और ना ही यहां देवी की कोई मूर्ति स्थापित है. मंदिर के गर्भ गृह में स्थित कुण्डी की ही पूजा की जाती है और बलिप्रथा के रूप में प्रसिद्ध इस धाम में अब बलि भी बन्द हो चुकी है और नारियल से ही माता की पूजा की जाती है.

रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग के गुप्तकाशी से पहले कालीमठ-कविल्ठा मोटर मार्ग पर करीब 10 किमी की दूरी पर ये शक्ति पीठ स्थित है. कालीमठ का केदारखण्ड, स्कन्द पुराण, देवी भागवत समेत कई पुराणों में वर्णन मिलता है. मां काली, मां सरस्वती और मां लक्ष्मी की यहां पर पूजा होती है. मान्यता है कि यहां पर मां काली ने रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था और धरती के अन्दर समाहित हो गई थीं. देवासुर संग्राम के दौरान रक्त बीज से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने मां भगवती की आराधना की थी. तब कालीशिला नामक स्थान पर मां का अवतरण हुआ. मां ने जब रक्तबीज के अत्याचारों को सुना तो उनका शरीर क्रोध से काला पड़ गया और मां काली का प्रार्दुभाव हुआ.

ये भी पढ़ें: पंचायत चुनाव के बीच पुलिस को बड़ी सफलता, 18 लाख की शराब बरामद

पुराणों में वर्णित है कि गिरिराज पीठ आलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण है और ये धाम तंत्र साधना के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है. यही कारण है कि यहां देश-विदेश से साधक साधना के लिए पहुंचते हैं. मुख्य मंदिर में महज एक कुण्डी है, जिसके भीतर देवी का यंत्र स्थित है, जो कि पूरी तरह से बन्द है. नवरात्र के दौरान अष्टमी की रात्रि को इस कुण्डी को खोला जाता है. अर्धरात्रि में बंद आंखों से इस कुण्डी की सफाई होती है और इसे कोई भी खुली आंखों से नहीं देख सकता है. इसके साथ ही यहां पर प्रतीक स्वरूप रात्रि में ही रक्तबीज दानव का वध भी किया जाता है. मशालों को रक्तबीज शिला पर फेंका जाता है और सुबह शिला पर रक्त के थक्के साफ दिखाई देते हैं. यहां पहले पशुबलि बड़े पैमाने पर होती थी और सैकड़ों की संख्या में बकरियों और भैसों की बलि दी जाती थी. बाद में स्थानीय गबर सिंह राणा ने इस प्रथा का विरोध किया और यहां बलि प्रथा को बन्द करवाया.

Intro:शारदीय नवरात्रि स्पेशल रिपोर्ट -
मां शक्ति के 108 स्वरूपों में प्रसिद्ध है काली का रूप
रुद्रप्रयाग जनपद के कालीमठ में है मां का भव्य मंदिर
देवासुरों से मां ने देवताओं को दिलाई थी मुक्ति
रक्तबीज नामक देत्य का किया था वध
पहले होती थी मंदिर में बलि, अब बलिप्रथा का किया गया खत्म
रुद्रप्रयाग। शरादीय नवरात्रि का पर्व है और ऐसे में सभी भक्त माता के दर पर पहुंच रहे हैं। मां शक्ति के 108 स्वरुपों मंें से एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ कालीमठ रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है। देवासुर संग्राम से जुड़ी यहां की ऐतिहासिक घटना में माता पार्वती ने रक्तबीज दानव के वध को लेकर कालीशिला में अपना प्राकटय रुप दिया था और कालीमठ में इस दानव का वध कर जमीन के अन्दर समा गई थी। हिमालय में स्थित होने के कारण इस पीठ को गिरिराज पीठ के नाम से भी जाना जाता है और तंत्र साधना का यह सर्वोपरि स्थान माना जाता है। यहां पर मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और ना ही यहां देवी की कोई मूर्ति है साथ ही यहां पर ना ही कुछ ऐसे पद चिहन हैं कि जिन्हें निमित मानकार पूजा की जा सके। मंदिर के गर्भ गृह में स्थित कुण्डी की ही यहां पूजा की जाती है और बलिप्रथा के रुप में प्रसिद्ध इस धाम में अब बलि भी बन्द हो चुकी है और नारियल से ही माता की पूजा की जाती है।Body:वीओ-1- रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग के गुप्तकाशी से पहले कालीमठ-कविल्ठा मोटर मार्ग पर करीब दस किमी की दूरी पर यह शक्ति पीठ है, जिसका केदारखण्ड, स्कन्द पुराण, देवी भागवत समेत कई पुराणों में कालीमठ का वर्णन मिलता है। मां काली, मां सरस्वती व मां लक्ष्मी की यहां पर पूजा होती है। मान्यता है कि यहां पर मां काली ने रक्तबीज नामक दैत्य का वध किया था और धरती के अन्दर समाहित हो गई थी। देवासुर संग्राम के दौरान रक्त बीज से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने मां भगवती की आराध्ना की थी और तब कालीशिला नामक स्थान पर मां का अवतरण हुआ था। मां ने जब रक्तबीज के अत्याचारों को सुना तो उनका शरीर क्रोध से काला पड़ गया और मां काली का प्रार्दुभाव हुआ।
बाइट- दाताराम गौड़, मुख्य पुजारी कालीमठ मन्दिर
बाइट- ऋषिराम भट्ट, बाल पुजारी कालीमठConclusion:वीओ -2- पुराणों में वर्णित है कि गिरिराज पीठ आलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण है और यह धाम तन्त्र साधना के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। यही कारण है कि यहां मूर्ति पूजा न होकर तंत्र साधना होती है और देश विदेशों से यहां पर साधना के लिए जनमानस पहुंचता है। मुख्य मंदिर में महज एक कुण्डी है जिसके भीतर देवी का यन्त्र स्थित है, जो कि पूरी तरह से बन्द है नवरात्र के दौरान अष्टमी की रात्रि को इस कुण्डी को खोला जाता है। अर्धरात्रि में बंद आखों से इस कुण्डी की सफाई होती है और इसे कोई भी खुली आंखों से नहीं देख सकता है। यही नहीं यहां पर प्रतीक स्वरुप रात्रि में ही रक्तबीज दानव का वध भी किया जाता है मशालों को रक्तबीज शिला पर फेंका जाता है और सुबह शिला पर रक्त के थक्के साफ दिखाई देते हैं। यहां पहले पशुबलि बडे पैमाने पर होती थी और सैकडों की संख्या में बकरियों व भैसों को काटा जाता था बाद में स्थानीय गबर सिंह राणा ने इस प्रथा का विरोध किया और यहां बलि प्रथा को बन्द करवाया। आज यहां पर मां की पूजा नारियल के साथ होती है। साथ ही यहां पर मतंग ऋषि ने भी तपस्या की थी और यहां आज भी मतंग शिला मौजूद है।
बाइट- जय प्रकाश गौड पुजारी कालीमठ
बाइट - गबर सिंह राणा, स्थानीय
बाइट - भूषण ंिसंह, श्रद्धालू
बाइट- राकेश मोहन सिंह, श्रद्धालु
एफवीओ- नवरात्रों के दौरान शक्ति पीठों में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। रुद्रप्रयाग में कालीमठ के साथ ही कालीशिला, हरियाली देवी, मठियाणा खाल व कोटिमाहेश्वरी प्रमुख शक्तिपीठ हैं। जहां पर भगवती के विभिन्न स्वरुपों की पूजा होती है।
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