रुद्रप्रयागः घोड़े-खच्चरों को केदारनाथ यात्रा की रीढ़ माना जाता है. कई श्रद्धालु केदारधाम तक पहुंचने के लिए इन घोड़े-खच्चरों का सहारा लेते हैं. इनके माध्यम से धाम तक पहुंचते हैं, लेकिन इनदिनों गौरीकुंड-केदारनाथ मार्ग पर घोड़े-खच्चर संचालकों की बड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है. यहां पर घोड़े-खच्चरों के बीमार होने पर संचालक उनका इलाज कराने के बजाय उन्हें रास्ते पर मरने के लिए छोड़ रहे हैं. इतना ही नहीं जानवरों के शवों सीधे मंदाकिनी नदी में डाला जा रहा है. जिससे नदी प्रदूषित हो रही है. उधर, रास्ते में मरे हुए इन जानवरों की वजह से तीर्थयात्रियों को बदबू से दो-चार होना पड़ रहा है. वहीं, अब इस मामले में प्रशासन घोड़े-खच्चर संचालकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कह रहा है.
बता दें कि केदारनाथ यात्रा में घोड़े-खच्चरों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है. गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी करीब 18 किमी पैदल और खड़ी चढ़ाई भरा है. रामबाड़ा से ऊपर चढ़ते समय तीर्थयात्रियों की सांस फूलनी लगती है. ऐसे में धाम तक पहुंचने के लिए पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों से तीर्थयात्रियों को काफी सहलूयित मिलती है. इस बार केदारधाम के लिए सात हजार घोड़े-खच्चर संचालकों ने पंजीकरण करवाया है. जो सुबह से ही देर शाम तक आवाजाही करते हैं, बर्फवारी और बारिश के कारण पैदल मार्ग काफी खराब हो गया है. जिस कारण घोड़े-खच्चरों को काफी दिक्कतें हो रही हैं और उनकी लगातार मौतें हो रही है.
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कई बार बीमारी और चोट लगने की वजह से घोड़े-खच्चर चल नहीं पाते हैं. जिससे वो रास्ते में पड़े रहते हैं. इतना ही नहीं संचालक उनका इलाज कराने के बजाय उन्हें रास्ते में छोड़कर जा रहे हैं. ऐसे में वो वहीं पर ही दम तोड़ रहे हैं. अब तक दो दर्जन घोड़े-खच्चरों की मौत हो चुकी है. इन दिनों मरे हुए घोड़े-खच्चर पैदल मार्ग पर जहां-तहां पड़े हुए हैं. गौरीकुंड स्थित प्रीपेड काउंटर के पास बीते कई दिनों से एक खच्चर का शव पड़ा हुआ है. जिससे काफी बदबू आ रही है. बदबू से पैदल यात्रा से केदारनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इतना ही कुछ संचालक घोड़े-खच्चरों के मरने के बाद उन्हें मंदाकिनी नदी में भी डाल रहे हैं. जिससे नदी का पानी सीधे प्रदूषित हो रहा है. इन मृत घोड़े-खच्चरों को समय से हटाया नहीं जा रहा है. ऐसे में सफाई व्यवस्था पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
वहीं, मामले पर जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग काफी कठिन है. ऐसे में हर साल 70-80 घोड़े-खच्चरों की मौत होती है. कई बार देखने को मिलता है कि पैदल मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की मौत होने पर संचालक रास्ते में ही छोड़ देते हैं. इसके लिए प्रशासन की ओर से घोड़े-खच्चरों की मौत होने पर एक प्रोटोकॉल बनाया गया है. घोड़े-खच्चर की मौत होने पर सेक्टर मजिस्ट्रेट के साथ ही सुलभ के कर्मचारियों को मौके पर भेजा जा रहा है. साथ ही उन्हें दफनाने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि घोड़े-खच्चरों की मौत होने पर उन्हें रास्तों में छोड़ने वाले संचालकों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. इसी क्रम में एक संचालक की पहचान की गई है, जिसके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है.