रुद्रप्रयागः केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में स्थित मां गौरी माई मंदिर के कपाट वैदिक मंत्रोच्चारण और पौराणिक रीति रिवाजों के साथ शीतकाल के लिए बंद किए गए हैं. अब शीतकाल में 6 महीने तक मां गौरी की पूजा अर्चना गौरी गांव के चंडिका मंदिर में होगी.
बता दें कि 15 नवंबर यानी बुधवार की सुबह 5 बजे पुजारी ने गौरीकुंड मंदिर में मां गौरा या गौरी की विशेष पूजा अर्चना कर भोग लगाया. जिसके बाद ही गौरी माई मंदिर के कपाट बंद करने की प्रक्रिया शुरू हुई. वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ मां गौरी की भोग मूर्ति को डोली में स्थापित कर श्रृंगार किया गया. ठीक सवा 8 बजे वैदिक मंत्रोच्चारण और पौराणिक रीति रिवाज के साथ मुख्य पुजारी, वेदपाठी, मंदिर समिति की मौजूदगी में गौरी माई के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए.
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वहीं, मां गौरी की डोली ने मंदिर की एक परिक्रमा की और फिर गौरी गांव के लिए रवाना हुई. इस दौरान भक्तों और क्षेत्रीय ग्रामीणों के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया. मां गौरी माई के गौरी गांव पहुंचते ही ग्रामीणों ने फूल मालाओं और अक्षतों से जोरदार स्वागत किया. मां की भोग मूर्ति को गांव में स्थित चंडिका मंदिर में विराजमान किया गया. अब शीतकाल में 6 महीने तक यहीं पर मां गौरी माई की पूजा अर्चना की जाएगी.
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केदारनाथ धाम के कपाट भी हुए बंदः आज ही केदारनाथ धाम के कपाट विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए. जिसके बाद बाबा केदार की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली हिमालय से अपने शीतकालीन गद्दीस्थल के लिए रवाना हुए. वहीं, मान्यता है कि हिमालय से बाबा केदार डोली गौरीकुंड पहुंचने से पहले गौरी माई की डोली को गर्भगृह से बाहर निकालकर शीतकालीन गद्दीस्थल रवाना कर दिया जाता है.