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केदारघाटी में मौसम का पैटर्न बदला, दिसंबर में भी बर्फ विहीन हिमालय, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

Weather Pattern Changes in Kedarghati केदारघाटी में बारिश न होने से किसान परेशान हैं तो वहीं हिमालयी भूभाग के बर्फ विहीन होने से पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित हैं. बीते कुछ सालों में मौसम में परिवर्तन देखा गया है. जिससे बर्फबारी नहीं हो रही है. जो निकट भविष्य के लिए ठीक संकेत नहीं माने जा रहे हैं.

Weather Pattern Changes in Kedarghati
केदारघाटी में मौसम
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 31, 2023, 9:01 PM IST

रुद्रप्रयाग: दिसंबर महीना गुजर जाने के बाद भी हिमालयी भूभाग बर्फ विहीन होने से पर्यावरण विशेषज्ञ और पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं. निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकारों की रबी की फसल चौपट होने की कगार पर है. जिससे काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है. नए साल में बर्फबारी नहीं होती है तो तुंगनाथ घाटी और कार्तिक स्वामी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो सकता है. दिसंबर के अंतिम हफ्ते में हिमालयी भूभाग बर्फ विहीन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. मौसम के अनुकूल बारिश और बर्फबारी न होना पर्यावरणविद ग्लोबल वार्मिंग का असर मान रहे हैं.

बता दें कि बीते दो दशक पहले तक केदारघाटी का हिमालयी भूभाग समेत सीमांत क्षेत्र दिसंबर के दूसरे हफ्ते में ही बर्फबारी से लकदक हो जाते थे. मौसम के अनुकूल बारिश और बर्फबारी होने से प्राकृतिक जल स्रोत भी लबालब नजर आते थे. हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के साथ निचले भूभाग में झमाझम बारिश होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, मटर, सरसों की फसलों को नमी मिल जाती थी. जिससे उत्पादन में वृद्धि होती थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने से केदार घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी कम हो रही है, जिसे भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं ठहराया जा सकता है.

Weather Pattern Changes in Kedarghati
हिमालय में बर्फबारी की कमी

आने वाले समय में यदि सरकार और प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन का जिम्मा संभाले स्वयंसेवी संस्थाओं ने गहन चिंतन नहीं किया तो भविष्य में गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. अप्रैल, मई और जून में बूंद-बूंद पानी के लिए भटकना पड़ सकता है. केदार घाटी के फाटा निवासी सुमन जमलोकी ने बताया कि दो दशक पहले दिसंबर महीने में हिमालयी भूभाग समेत तोषी, त्रियुगीनारायण और गौरीकुंड का भूभाग बर्फबारी से लदक रहता था, लेकिन धीरे-धीरे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के कारण हिमालयी भूभाग दिसंबर महीने में बर्फ विहीन है. जो भविष्य के लिए ठीक नहीं हैं.
ये भी पढ़ेंः क्लाइमेट चेंज के कारण बदला मौसम का पैटर्न, उत्तराखंड में 50 फीसदी कम हुई बारिश, सूखी सर्दी का खेती पर असर

जिला पंचायत सदस्य परकंडी रीना बिष्ट ने बताया कि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने के कारण समय पर बारिश और बर्फबारी नहीं हो पा रही है. ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. प्रधान पल्द्वाणी शांता रावत ने बताया कि आने वाले समय में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी नहीं होती है तो तुंगनाथ घाटी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो सकता है. इको विकास समिति अध्यक्ष सारी मनोज नेगी ने कहा कि दिसंबर महीने में हिमालयी भूभाग बर्फ विहीन होना चिंता की बात है.

Weather Pattern Changes in Kedarghati
केदारघाटी में बारिश का इंतजार

वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बद्री का कहना है कि केदारनाथ और बदरीनाथ धाम जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शीतकाल के समय पुनर्निर्माण कार्य होना चिंता का विषय है. इस साल जहां शुरुआत के जनवरी और फरवरी महीने में बारिश व बर्फबारी होनी थी, लेकिन नहीं हुई. बारिश और बर्फबारी अप्रैल और मई में देखने को मिली. उन्होंने कहा कि जंगल और जमीन का अंधाधुंध कटान के साथ पानी का संरक्षण न होने से आज स्थिति काफी भयावह बनी हुई है. जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.

रुद्रप्रयाग: दिसंबर महीना गुजर जाने के बाद भी हिमालयी भूभाग बर्फ विहीन होने से पर्यावरण विशेषज्ञ और पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं. निचले क्षेत्रों में बारिश न होने से काश्तकारों की रबी की फसल चौपट होने की कगार पर है. जिससे काश्तकारों को भविष्य की चिंता सताने लगी है. नए साल में बर्फबारी नहीं होती है तो तुंगनाथ घाटी और कार्तिक स्वामी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो सकता है. दिसंबर के अंतिम हफ्ते में हिमालयी भूभाग बर्फ विहीन होना भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. मौसम के अनुकूल बारिश और बर्फबारी न होना पर्यावरणविद ग्लोबल वार्मिंग का असर मान रहे हैं.

बता दें कि बीते दो दशक पहले तक केदारघाटी का हिमालयी भूभाग समेत सीमांत क्षेत्र दिसंबर के दूसरे हफ्ते में ही बर्फबारी से लकदक हो जाते थे. मौसम के अनुकूल बारिश और बर्फबारी होने से प्राकृतिक जल स्रोत भी लबालब नजर आते थे. हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी के साथ निचले भूभाग में झमाझम बारिश होने से काश्तकारों की गेहूं, जौ, मटर, सरसों की फसलों को नमी मिल जाती थी. जिससे उत्पादन में वृद्धि होती थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने से केदार घाटी के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी कम हो रही है, जिसे भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं ठहराया जा सकता है.

Weather Pattern Changes in Kedarghati
हिमालय में बर्फबारी की कमी

आने वाले समय में यदि सरकार और प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन का जिम्मा संभाले स्वयंसेवी संस्थाओं ने गहन चिंतन नहीं किया तो भविष्य में गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. अप्रैल, मई और जून में बूंद-बूंद पानी के लिए भटकना पड़ सकता है. केदार घाटी के फाटा निवासी सुमन जमलोकी ने बताया कि दो दशक पहले दिसंबर महीने में हिमालयी भूभाग समेत तोषी, त्रियुगीनारायण और गौरीकुंड का भूभाग बर्फबारी से लदक रहता था, लेकिन धीरे-धीरे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के कारण हिमालयी भूभाग दिसंबर महीने में बर्फ विहीन है. जो भविष्य के लिए ठीक नहीं हैं.
ये भी पढ़ेंः क्लाइमेट चेंज के कारण बदला मौसम का पैटर्न, उत्तराखंड में 50 फीसदी कम हुई बारिश, सूखी सर्दी का खेती पर असर

जिला पंचायत सदस्य परकंडी रीना बिष्ट ने बताया कि प्रकृति के साथ मानवीय हस्तक्षेप होने के कारण समय पर बारिश और बर्फबारी नहीं हो पा रही है. ग्लोबल वार्मिंग की समस्या भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है. प्रधान पल्द्वाणी शांता रावत ने बताया कि आने वाले समय में यदि मौसम के अनुकूल बर्फबारी नहीं होती है तो तुंगनाथ घाटी का पर्यटन व्यवसाय खासा प्रभावित हो सकता है. इको विकास समिति अध्यक्ष सारी मनोज नेगी ने कहा कि दिसंबर महीने में हिमालयी भूभाग बर्फ विहीन होना चिंता की बात है.

Weather Pattern Changes in Kedarghati
केदारघाटी में बारिश का इंतजार

वहीं, पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बद्री का कहना है कि केदारनाथ और बदरीनाथ धाम जैसे उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शीतकाल के समय पुनर्निर्माण कार्य होना चिंता का विषय है. इस साल जहां शुरुआत के जनवरी और फरवरी महीने में बारिश व बर्फबारी होनी थी, लेकिन नहीं हुई. बारिश और बर्फबारी अप्रैल और मई में देखने को मिली. उन्होंने कहा कि जंगल और जमीन का अंधाधुंध कटान के साथ पानी का संरक्षण न होने से आज स्थिति काफी भयावह बनी हुई है. जिस पर ध्यान देने की जरूरत है.

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