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हिमालय को स्पर्श कर अमर होना चाहता था दानव, भगवती मनणामाई ने ऐसे किया वध, पढ़ें पूरी खबर

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Published : Jul 9, 2022, 10:24 AM IST

चौखम्बा की तलहटी में बसे भगवती मनणामाई का तीर्थ (Bhagwati Mannamai Tirtha) हिमालय के शक्तिपीठों में गिना जाता है. भगवती मनणामाई को भेड़ पालकों की आराध्य देवी माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार भगवती काली द्वारा रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध किया गया तो वह राक्षस हिमालय को स्पर्श करने की इच्छा से हिमालय की ओर गमन करने लगा था. राक्षस चौखम्बा की तलहटी में बसे बुग्यालों तक पहुंच गया. यहीं पर मां ने इस राक्षस का वध किया था.

rudraprayag
मां भगवती मनणामाई

रुद्रप्रयाग: मदमहेश्वर घाटी (Rudraprayag Madmaheshwar Valley) के रांसी गांव से लगभग 39 किमी दूर चौखम्बा की तलहटी में बसे भगवती मनणामाई का तीर्थ (Bhagwati Mannamai Tirtha) हिमालय के शक्तिपीठों में गिना जाता है. भगवती मनणामाई को भेड़ पालकों की आराध्य देवी माना जाता है. भेड़ पालक समय-समय पर भगवती मनणामाई की पूजा-अर्चना कर विश्व समृद्धि की कामना करते हैं.

रोचक पौराणिक कथा: लोक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान शिव एक राक्षस की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा वरदान मांगने को कहा. राक्षस ने अमर होने का वरदान मांगा तो शिव ने राक्षस को वरदान दिया कि यदि तू युद्ध के समय हिमालय का स्पर्श करेगा तो अमर हो जायेगा. भगवती काली द्वारा रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध किया गया तो वह राक्षस हिमालय को स्पर्श करने की इच्छा से हिमालय की ओर गमन करने लगा था. राक्षस चौखम्बा की तलहटी में बसे बुग्यालों तक पहुंच गया.

पढ़ें-राकेश्वरी मंदिर में पौराणिक जागर गायन शुरू, अतीत की परंपरा को समेटे लोग

मां भगवती ने किया राक्षस का वध: राक्षस के हिमालय गमन होने की खबर ज्यों ही भगवती मनणामाई को लगी तो मनणामाई ने उस भूभाग को अपनी योगमाया से दल-दल में तब्दील कर दिया और राक्षस दलदल में फंस गया. समय रहते मनणामाई ने राक्षस का वध किया और जगत कल्याण के लिए चौखम्बा की तलहटी में तपस्यारत हो गयीं. भगवती मनणामाई के चौखम्बा की तलहटी में तपस्यारत होने पर भेड़ पालकों की ओर से समय-समय पर पूजा अर्चना की जाती है.

विश्व पटल पर मिल सकती है पहचान: मनणामाई तीर्थ में हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है. रांसी गांव से प्रति वर्ष सावन माह में राकेश्वरी मंदिर रांसी से मनणामाई तीर्थ तक मनणामाई लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है. केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग की ओर से यदि रांसी-मनणामाई, चौमासी-मनणामाई तथा मनणामाई-खाम-केदारनाथ पैदल ट्रैकों को विकसित करने की पहल की जाती है तो मदमहेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ ही मनणामाई तीर्थ को विश्व पटल पर पहचान मिल सकती है.

कैसे पहुंचें यहां: प्रधान रांसी कुन्ती नेगी ने बताया कि रांसी गांव से सनियारा, कंडारा गुफा, पटूड़ी, थौली, शिला समुद्र, कुलवाणी होते हुए मनणामाई तीर्थ पहुंचा जा सकता है, मगर पैदल ट्रैक जोखिम भरा है. उन्होंने बताया कि कालीमठ घाटी के चैमासी-खाम होते हुए भी मनणामाई धाम पहुंचा जा सकता है. राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि रांसी गांव से प्रति वर्ष सावन माह में राकेश्वरी मन्दिर रांसी से मनणामाई धाम तक मनणामाई लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है, मगर पैदल मार्ग में संसाधनों का अभाव होने के कारण लोक जात यात्रा में सीमित ग्रामीण शामिल होते हैं.

पढ़ें-18 साल बाद होगा भगवती राकेश्वरी और बाबा तुंगनाथ का अद्भुत मिलन, कई भक्त बनेंगे साक्षी

पंडित ईश्वरी प्रसाद भट्ट, रवीन्द्र भट्ट बताते हैं कि मनणामाई तीर्थ में हर भक्त की मुराद पूरी होती है और यह तीर्थ मदानी नदी के किनारे बसा हुआ है. बरसात में मनणामाई तीर्थ का भूभाग अनेक प्रजाति के पुष्पों से आच्छादित रहता है. वहीं यदि केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग की ओर से रांसी-मनणामाई व चौमासी-मनणामाई पैदल ट्रैकों को विकसित करने की कवायद की जाती है तो स्थानीय तीर्थाटन एवं पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ ही मनणामाई तीर्थ को विश्व पटल पर पहचान मिल सकती है.

रुद्रप्रयाग: मदमहेश्वर घाटी (Rudraprayag Madmaheshwar Valley) के रांसी गांव से लगभग 39 किमी दूर चौखम्बा की तलहटी में बसे भगवती मनणामाई का तीर्थ (Bhagwati Mannamai Tirtha) हिमालय के शक्तिपीठों में गिना जाता है. भगवती मनणामाई को भेड़ पालकों की आराध्य देवी माना जाता है. भेड़ पालक समय-समय पर भगवती मनणामाई की पूजा-अर्चना कर विश्व समृद्धि की कामना करते हैं.

रोचक पौराणिक कथा: लोक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान शिव एक राक्षस की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा वरदान मांगने को कहा. राक्षस ने अमर होने का वरदान मांगा तो शिव ने राक्षस को वरदान दिया कि यदि तू युद्ध के समय हिमालय का स्पर्श करेगा तो अमर हो जायेगा. भगवती काली द्वारा रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध किया गया तो वह राक्षस हिमालय को स्पर्श करने की इच्छा से हिमालय की ओर गमन करने लगा था. राक्षस चौखम्बा की तलहटी में बसे बुग्यालों तक पहुंच गया.

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मां भगवती ने किया राक्षस का वध: राक्षस के हिमालय गमन होने की खबर ज्यों ही भगवती मनणामाई को लगी तो मनणामाई ने उस भूभाग को अपनी योगमाया से दल-दल में तब्दील कर दिया और राक्षस दलदल में फंस गया. समय रहते मनणामाई ने राक्षस का वध किया और जगत कल्याण के लिए चौखम्बा की तलहटी में तपस्यारत हो गयीं. भगवती मनणामाई के चौखम्बा की तलहटी में तपस्यारत होने पर भेड़ पालकों की ओर से समय-समय पर पूजा अर्चना की जाती है.

विश्व पटल पर मिल सकती है पहचान: मनणामाई तीर्थ में हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है. रांसी गांव से प्रति वर्ष सावन माह में राकेश्वरी मंदिर रांसी से मनणामाई तीर्थ तक मनणामाई लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है. केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग की ओर से यदि रांसी-मनणामाई, चौमासी-मनणामाई तथा मनणामाई-खाम-केदारनाथ पैदल ट्रैकों को विकसित करने की पहल की जाती है तो मदमहेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ ही मनणामाई तीर्थ को विश्व पटल पर पहचान मिल सकती है.

कैसे पहुंचें यहां: प्रधान रांसी कुन्ती नेगी ने बताया कि रांसी गांव से सनियारा, कंडारा गुफा, पटूड़ी, थौली, शिला समुद्र, कुलवाणी होते हुए मनणामाई तीर्थ पहुंचा जा सकता है, मगर पैदल ट्रैक जोखिम भरा है. उन्होंने बताया कि कालीमठ घाटी के चैमासी-खाम होते हुए भी मनणामाई धाम पहुंचा जा सकता है. राकेश्वरी मन्दिर समिति अध्यक्ष जगत सिंह पंवार ने बताया कि रांसी गांव से प्रति वर्ष सावन माह में राकेश्वरी मन्दिर रांसी से मनणामाई धाम तक मनणामाई लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है, मगर पैदल मार्ग में संसाधनों का अभाव होने के कारण लोक जात यात्रा में सीमित ग्रामीण शामिल होते हैं.

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पंडित ईश्वरी प्रसाद भट्ट, रवीन्द्र भट्ट बताते हैं कि मनणामाई तीर्थ में हर भक्त की मुराद पूरी होती है और यह तीर्थ मदानी नदी के किनारे बसा हुआ है. बरसात में मनणामाई तीर्थ का भूभाग अनेक प्रजाति के पुष्पों से आच्छादित रहता है. वहीं यदि केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग की ओर से रांसी-मनणामाई व चौमासी-मनणामाई पैदल ट्रैकों को विकसित करने की कवायद की जाती है तो स्थानीय तीर्थाटन एवं पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ ही मनणामाई तीर्थ को विश्व पटल पर पहचान मिल सकती है.

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