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पर्यटन का हब बन सकता है बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल ट्रैक, अभी है उपेक्षा का शिकार

मदमहेश्वर घाटी क्षेत्र के बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक को प्रकृति ने बड़े ही सुंदर नजारों से सजाया है. बुरुवा से टिगरी तक दस किमी पैदल ट्रैक में बांज, बुरांस, मोरू, नैर, थुनेर सहित अनेक प्रकार की अपार वन संपदा मिलती है.

बुरूवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक
बुरूवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक
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Published : Apr 27, 2021, 12:39 PM IST

रुद्रप्रयाग: बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल के बीस किमी पैदल ट्रैक को विकसित करने की कोई पहल नहीं की जा रही है, जिससे यह ट्रैक बदहाल होता जा रहा है. अगर इस ट्रैक को विकसित किया जाता है तो स्थानीय पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ ही बुरुवा व गड़गू गांव में होम स्टे योजना को बढ़ावा मिल सकता है. इसके साथ ही देश-विदेश के प्रकृति प्रेमी सोन पर्वत तथा विसुणीताल के प्राकृतिक सौन्दर्य से रूबरू हो सकते हैं.

बुरूवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक
बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक

बता दें कि मदमहेश्वर घाटी क्षेत्र के बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक को प्रकृति ने बड़े ही सुंदर प्राकृतिक नजारों से सजाया है. बुरुवा से टिगरी तक दस किमी पैदल ट्रैक में बांज, बुरांस, मोरू, नैर, थुनेर सहित अनेक प्रकार की अपार वन संपदा मिलती है. इस भूभाग का जब प्रकृति प्रेमी दीदार करते हैं तो जीवन के दुख-दर्द को भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाते हैं.

टिगरी से विसुणीताल के दस किमी पैदल ट्रैक पर नर्म मखमली घास पर विचरण करने से लोगों को आनन्द की अनुभूति होती है. थौली से विसुणीताल तक लगभग सात किमी के भूभाग में बरसात के समय कुखणी, माखुणी, जय, विजया सहित अनेक प्रकार की बेशकीमती जड़ी-बूटियों से मानव का अंतकरण शुद्ध हो जाता है. सोन पर्वत के शीर्ष से सूर्य का अस्त और चन्द्रमा का उदय एक साथ दृष्टिगोचर होता है. लोक मान्यता है कि एक बार एक भेड़ पालक ने अपनी कुल्हाड़ी से सोन पर्वत पर वार किया था, जिससे कुल्हाड़ी का जितना हिस्सा जमीन में धंसा, उतना हिस्सा सोने का हो गया था.

ये भी पढ़ें: हरिद्वार महाकुंभ: निरंजनी और आनंद अखाड़े ने किया प्रतीकात्मक शाही गंगा स्नान

सोन पर्वत के आंचल में विसुणीताल बसा है. मान्यता है कि लक्ष्मी के आग्रह पर विसुणीताल का निर्माण विष्णु भगवान ने किया था. विसुणीताल के जल से स्नान करने से सभी चर्मरोग दूर हो जाते हैं. थौली से विसुणीताल तक के भूभाग में भेड़ पालक छह माह तक निवास करते हैं और अपने अराध्य देव सिद्धवा-विद्धवा की नित पूजा करते हैं. बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल के भूभाग को प्रकृति ने अपने वैभवों का भरपूर दुलार तो दिया है, लेकिन इस पैदल ट्रैक के विकास में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग का सेंचुरी वन अधिनियम बाधक बना हुआ है.

यदि प्रदेश सरकार की पहल पर केंद्र सरकार बुरुवा-विसुणीताल पैदल ट्रैक को विकसित करने की अनुमति देती है, तो स्थानीय पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ-साथ मदमहेश्वर घाटी के विभिन्न गांवों में होम स्टे योजना को बढ़ावा मिल सकता है. जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि बुरुवा-विसुणीताल पैदल ट्रैक पर पर्यटन की अपार संभावनायें हैं. लेकिन इस पैदल ट्रैक के चहुमुखी विकास में सेंचुरी वन अधिनियम बाधक बना हुआ है.

वहीं, केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया कि बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक को विकसित किये जाने की कार्य योजना बनाई जायेगी. यह पैदल ट्रैक काफी खूबसूरत है. इस ट्रैक के सुधारीकरण के प्रयास किये जायेंगे, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके.

रुद्रप्रयाग: बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल के बीस किमी पैदल ट्रैक को विकसित करने की कोई पहल नहीं की जा रही है, जिससे यह ट्रैक बदहाल होता जा रहा है. अगर इस ट्रैक को विकसित किया जाता है तो स्थानीय पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ ही बुरुवा व गड़गू गांव में होम स्टे योजना को बढ़ावा मिल सकता है. इसके साथ ही देश-विदेश के प्रकृति प्रेमी सोन पर्वत तथा विसुणीताल के प्राकृतिक सौन्दर्य से रूबरू हो सकते हैं.

बुरूवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक
बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक

बता दें कि मदमहेश्वर घाटी क्षेत्र के बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक को प्रकृति ने बड़े ही सुंदर प्राकृतिक नजारों से सजाया है. बुरुवा से टिगरी तक दस किमी पैदल ट्रैक में बांज, बुरांस, मोरू, नैर, थुनेर सहित अनेक प्रकार की अपार वन संपदा मिलती है. इस भूभाग का जब प्रकृति प्रेमी दीदार करते हैं तो जीवन के दुख-दर्द को भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाते हैं.

टिगरी से विसुणीताल के दस किमी पैदल ट्रैक पर नर्म मखमली घास पर विचरण करने से लोगों को आनन्द की अनुभूति होती है. थौली से विसुणीताल तक लगभग सात किमी के भूभाग में बरसात के समय कुखणी, माखुणी, जय, विजया सहित अनेक प्रकार की बेशकीमती जड़ी-बूटियों से मानव का अंतकरण शुद्ध हो जाता है. सोन पर्वत के शीर्ष से सूर्य का अस्त और चन्द्रमा का उदय एक साथ दृष्टिगोचर होता है. लोक मान्यता है कि एक बार एक भेड़ पालक ने अपनी कुल्हाड़ी से सोन पर्वत पर वार किया था, जिससे कुल्हाड़ी का जितना हिस्सा जमीन में धंसा, उतना हिस्सा सोने का हो गया था.

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सोन पर्वत के आंचल में विसुणीताल बसा है. मान्यता है कि लक्ष्मी के आग्रह पर विसुणीताल का निर्माण विष्णु भगवान ने किया था. विसुणीताल के जल से स्नान करने से सभी चर्मरोग दूर हो जाते हैं. थौली से विसुणीताल तक के भूभाग में भेड़ पालक छह माह तक निवास करते हैं और अपने अराध्य देव सिद्धवा-विद्धवा की नित पूजा करते हैं. बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल के भूभाग को प्रकृति ने अपने वैभवों का भरपूर दुलार तो दिया है, लेकिन इस पैदल ट्रैक के विकास में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग का सेंचुरी वन अधिनियम बाधक बना हुआ है.

यदि प्रदेश सरकार की पहल पर केंद्र सरकार बुरुवा-विसुणीताल पैदल ट्रैक को विकसित करने की अनुमति देती है, तो स्थानीय पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ-साथ मदमहेश्वर घाटी के विभिन्न गांवों में होम स्टे योजना को बढ़ावा मिल सकता है. जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा ने बताया कि बुरुवा-विसुणीताल पैदल ट्रैक पर पर्यटन की अपार संभावनायें हैं. लेकिन इस पैदल ट्रैक के चहुमुखी विकास में सेंचुरी वन अधिनियम बाधक बना हुआ है.

वहीं, केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया कि बुरुवा-टिगरी-विसुणीताल पैदल ट्रैक को विकसित किये जाने की कार्य योजना बनाई जायेगी. यह पैदल ट्रैक काफी खूबसूरत है. इस ट्रैक के सुधारीकरण के प्रयास किये जायेंगे, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके.

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