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केदारखंड के अगस्त्य मंदिर में होती है विष्णु के वामन रूप की पूजा, 365 दीयों से सजता है दरबार - दीपावली पर्व पर बलिराज पूजन

अगस्त्यमुनि के महर्षि अगस्त्य मंदिर में भगवान विष्णु के वामन रूप (बलिराज पूजन) की विधिवत पूजा की गई. इस दौरान श्रद्धालुओं ने सामूहिक रूप से दीपावली मनाई. बता दें कि केदारखंड में केवल महर्षि अगस्त्य के मंदिर में ही भगवान विष्णु के वामन रूप की विधिवत पूजा की जाती है.

बलिराज पूजन
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Published : Oct 28, 2019, 6:45 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 8:36 PM IST

रुद्रप्रयागः अगस्त्यमुनि के महर्षि अगस्त्य मंदिर में दीपावली के अवसर पर बलिराज पूजन का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. इस दौरान लोगों ने वामन महाराज और बलिराज की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की. वहीं, बलिराज पूजन के बाद स्थानीय लोगों ने फुलझड़ियां और पटाके जलाकर दीपावली पर्व मनाया.

365 दीयों से सजा अगस्त्य मंदिर का दरबार.

केदारखंड में केवल महर्षि अगस्त्य के मंदिर में ही भगवान विष्णु के वामन रूप की विधिवत पूजा की जाती है. इस दौरान सभी भक्त सामूहिक रूप से दीपावली मनाते हैं, जिसका नजारा काफी अद्भुत होता है. यह परंपरा बीते कई सालों से चली आ रही है. इस मौके पर मंदिर के प्रांगण में पुजारी भक्तों के साथ चावल और धान से राजा बलि, भगवान विष्णु के वामन रूप समेत गुरू शुक्राचार्य की अनुकृतियां बनाते हैं, जिसे 365 दीयों से सजाया जाता है. इन दीयों को सभी भक्तजन अपने-अपने घरों से लेकर आते हैं.

baliraj pujan
बलिराज पूजन में उमड़ी भीड़.

ये भी पढे़ंः गोवर्धन पूजाः इस विधि से करें पूजा, बनी रहेगी श्रीकृष्ण की कृपा

महर्षि अगस्त्य मंदिर के मठाधीश पं. अनसूया प्रसाद बैंजवाल ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी काफी महत्व है. पहले इस अवसर पर बनियाड़ी और निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मंदिर परिसर में भैला खेलने आते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब बंद हो गई है.

यह है मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, असुरों में एक महान दानी राजा बलि पैदा हुए थे. जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे. देवताओं को डर सता रहा था कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय हासिल न कर लें. इसे देखते हुए देवताओं ने भगवान वामन से राजा बलि से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान वामन, राजा बलि के पास पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी. सभी मंत्रियों और गुरू शुक्राचार्य के लाख मना करने के बाबजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो गए.

वहीं, भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में आकाश को नाप लेते हैं. साथ ही तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं. जिस पर राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते हैं. भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं और इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है.

माना जाता है कि, भगवान वामन, राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं. जिस पर राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो. इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो और मेरी समस्त जनता सुख-समृद्धि से भरपूर हो.

रुद्रप्रयागः अगस्त्यमुनि के महर्षि अगस्त्य मंदिर में दीपावली के अवसर पर बलिराज पूजन का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. इस दौरान लोगों ने वामन महाराज और बलिराज की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की. वहीं, बलिराज पूजन के बाद स्थानीय लोगों ने फुलझड़ियां और पटाके जलाकर दीपावली पर्व मनाया.

365 दीयों से सजा अगस्त्य मंदिर का दरबार.

केदारखंड में केवल महर्षि अगस्त्य के मंदिर में ही भगवान विष्णु के वामन रूप की विधिवत पूजा की जाती है. इस दौरान सभी भक्त सामूहिक रूप से दीपावली मनाते हैं, जिसका नजारा काफी अद्भुत होता है. यह परंपरा बीते कई सालों से चली आ रही है. इस मौके पर मंदिर के प्रांगण में पुजारी भक्तों के साथ चावल और धान से राजा बलि, भगवान विष्णु के वामन रूप समेत गुरू शुक्राचार्य की अनुकृतियां बनाते हैं, जिसे 365 दीयों से सजाया जाता है. इन दीयों को सभी भक्तजन अपने-अपने घरों से लेकर आते हैं.

baliraj pujan
बलिराज पूजन में उमड़ी भीड़.

ये भी पढे़ंः गोवर्धन पूजाः इस विधि से करें पूजा, बनी रहेगी श्रीकृष्ण की कृपा

महर्षि अगस्त्य मंदिर के मठाधीश पं. अनसूया प्रसाद बैंजवाल ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी काफी महत्व है. पहले इस अवसर पर बनियाड़ी और निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मंदिर परिसर में भैला खेलने आते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब बंद हो गई है.

यह है मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, असुरों में एक महान दानी राजा बलि पैदा हुए थे. जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे. देवताओं को डर सता रहा था कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय हासिल न कर लें. इसे देखते हुए देवताओं ने भगवान वामन से राजा बलि से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान वामन, राजा बलि के पास पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी. सभी मंत्रियों और गुरू शुक्राचार्य के लाख मना करने के बाबजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो गए.

वहीं, भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में आकाश को नाप लेते हैं. साथ ही तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं. जिस पर राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते हैं. भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं और इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है.

माना जाता है कि, भगवान वामन, राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं. जिस पर राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो. इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो और मेरी समस्त जनता सुख-समृद्धि से भरपूर हो.

Intro:अगस्त्यमुनि के महर्षि अगस्त्य मन्दिर में बलिराज पूजन
क्या है विशेष पढिये पूरी खबर
रुद्रप्रयाग-सैकड़ों भक्तों की मौजूदगी में महर्षि अगस्त्य मन्दिर में दीपावली के अवसर पर बलिराज पूजन का भव्य आयोजन किया गया। लोगांे ने क्षेत्र एवं अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना कर वामन महाराज एवं बलिराज की पूजा अर्चना कर फुलझड़ियां एवं पटाके जलाकर दीपावली का शुभारम्भ किया।

Body:केदारखण्ड में केवल महर्षि अगस्त्य के मन्दिर में ही भगवान विष्णु के वामन रूप की विधिवत पूजा की जाती है। इसलिए क्षेत्र की जनता में इसका बड़ा धार्मिक महत्व है। यह सभी भक्तों का सामूहिक रूप में दीपावली मनाने का अद्भुत नजारा होता है। यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है। इस अवसर पर मन्दिर के प्रांगण में पुजारी भक्तों के साथ विष्णु भगवान को मध्यस्थ रखकर चावल और धान से राजा बलि, भगवान विष्णु के वामन रूप एवं गुरू शुक्राचार्य की अनुकृतियां बनाते हैं। जिसको 365 दियों से सजाया जाता है, जिनको भक्त जन अपने घरों से लेकर भी आते हैं। सांयकालीन आरती के साथ दीपोत्सव प्रारम्भ होता है। जिसके साक्षी सैकड़ों की संख्या में उपस्थित भक्तजन होते हैं। आरती के समापन के बाद भक्त जन भगवान के आशीर्वाद के रूप में, अपनी तथा अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना के साथ इन दियों को अपने घर ले जाकर घर में लक्ष्मी पूजन कर घर को रोशन करते है। महर्षि अगस्त्य मन्दिर के मठाधीश पं0 अनसूया प्रसाद बैंजवाल मन्दिर के पुजारी पं0 मदनमोहन बेंजवाल, पं0 योगेश बैंजवाल एवं पं0 भूपेन्द्र बैंजवाल, पं0 सुशील बेंजवाल आदि ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा यहां सदियों से चली आ रही है। इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी पुट है। पहले इस अवसर पर बनियाड़ी एवं निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मन्दिर परिसर में भैलो खेलने आते थे। परन्तु धीरे धीरे यह परम्परा अब बन्द हो गई है। Conclusion:बाॅक्स - यह है कथा - पौराणिक कथा के अनुसार असुरों में एक महान दानी राजा बलि हुए जो कि अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे। देवता इस डर से कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय प्राप्त न कर दे भगवान से इससे मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते है। इसी प्रार्थना को पूरा करने के लिए भगवान वामन राजा बलि के पास जाकर तीन पग भूमि दान स्वरूप मांगते हैं। सभी मंत्रियों एवं गुरू शुक्राचार्य के लाख मना करने के बाबजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी तथा एक पग में आकाश को नापकर तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं। राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते है। भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं। और इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है। भगवान वामन राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं। राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो। इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो तथा मेरी समस्त जनता सुख समृद्धि से भरपूर हो।
Last Updated : Oct 28, 2019, 8:36 PM IST
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