रुद्रप्रयागः अगस्त्यमुनि के महर्षि अगस्त्य मंदिर में दीपावली के अवसर पर बलिराज पूजन का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. इस दौरान लोगों ने वामन महाराज और बलिराज की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना की. वहीं, बलिराज पूजन के बाद स्थानीय लोगों ने फुलझड़ियां और पटाके जलाकर दीपावली पर्व मनाया.
केदारखंड में केवल महर्षि अगस्त्य के मंदिर में ही भगवान विष्णु के वामन रूप की विधिवत पूजा की जाती है. इस दौरान सभी भक्त सामूहिक रूप से दीपावली मनाते हैं, जिसका नजारा काफी अद्भुत होता है. यह परंपरा बीते कई सालों से चली आ रही है. इस मौके पर मंदिर के प्रांगण में पुजारी भक्तों के साथ चावल और धान से राजा बलि, भगवान विष्णु के वामन रूप समेत गुरू शुक्राचार्य की अनुकृतियां बनाते हैं, जिसे 365 दीयों से सजाया जाता है. इन दीयों को सभी भक्तजन अपने-अपने घरों से लेकर आते हैं.
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महर्षि अगस्त्य मंदिर के मठाधीश पं. अनसूया प्रसाद बैंजवाल ने बताया कि बलिराज पूजन की यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. इस प्रथा के चलन में पौराणिकता के साथ ही सामाजिकता का भी काफी महत्व है. पहले इस अवसर पर बनियाड़ी और निकटवर्ती गांवों से ग्रामीण मंदिर परिसर में भैला खेलने आते थे, लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा अब बंद हो गई है.
यह है मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, असुरों में एक महान दानी राजा बलि पैदा हुए थे. जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे. देवताओं को डर सता रहा था कि कहीं राजा बलि स्वर्ग पर विजय हासिल न कर लें. इसे देखते हुए देवताओं ने भगवान वामन से राजा बलि से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. जिसके बाद भगवान वामन, राजा बलि के पास पहुंचे और तीन पग भूमि दान में मांगी. सभी मंत्रियों और गुरू शुक्राचार्य के लाख मना करने के बाबजूद दानवीर राजा बलि तीन पग जमीन देने के लिए तैयार हो गए.
वहीं, भगवान वामन विशाल स्वरूप में आकर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में आकाश को नाप लेते हैं. साथ ही तीसरे पग के लिए भूमि मांगते हैं. जिस पर राजा बलि तीसरे पग को अपने सिर पर रखने को कहते हैं. भगवान वामन के ऐसा करते ही राजा बलि पाताल में चले जाते हैं और इस प्रकार देवताओं को राजा बलि से छुटकारा मिल जाता है.
माना जाता है कि, भगवान वामन, राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहते हैं. जिस पर राजा बलि मांगते हैं कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या के तीन दिन धरती पर मेरा शासन हो. इन तीन दिनों तक लक्ष्मी जी का वास धरती पर हो और मेरी समस्त जनता सुख-समृद्धि से भरपूर हो.