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करोड़ों की लागत से बने अलकनंदा घाटों पर फैला मलबा, प्रशासन बेखबर

जिले में स्थित अलकनंदा नदी में मानसून सीजन आते ही घाट जलमग्न हो जाते हैं. इसके चलते लाखों टन मलबा घाटों पर जमा हो जाता है. लेकिन जिला प्रशासन एवं नगर पालिका इन घाटों पर फैले मलबे को उठाने की जहमत नहीं उठा रहे हैं.

mud spread over ghats
घाटों पर पसरा मिट्टी का ढेर
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Published : Dec 8, 2020, 1:30 PM IST

रुद्रप्रयाग: मानसून सीजन को समाप्त हुए लगभग तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन अलकनंदा नदी के तट पर बनाए गए घाटों में अभी भी रेत-मिट्टी के ढेर लगे हुए हैं. इसके चलते स्थानीय जनता के साथ ही यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को घाटों का लाभ नहीं मिल पा रहा है. करोड़ों रुपये की लागत से निर्मित घाटों की सुंदरता भी धूमिल हो रही है. स्थानीय जनता लंबे समय से घाटों से रेत-मिट्टी हटाने की मांग कर रही है, लेकिन जिला प्रशासन एवं नगर पालिका इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं.

मलबे से पटा अलकनंदा का घाट.

दरअसल, मानसून सीजन के दौरान अलकनंदा नदी का जल स्तर बढ़ने से घाट जलमग्न हो जाते हैं. नदी का लाखों टन मलबा घाटों में जमा हो जाता है. अलकनंदा नदी किनारे हनुमान मंदिर के नीचे करोड़ों रुपये की लागत से वर्ष 2017 में घाटों का निर्माण किया गया था. इन घाटों का निर्माण नदी के निकट ही होने से प्रत्येक मानसून सीजन में ये जलमग्न हो जाते हैं. इस मानसून सीजन के दौरान घाटों पर निर्मित शौचालयों के दरवाजों के अलावा स्ट्रीट लाइटों की बैट्रियां भी क्षतिग्रस्त हुईं. घाटों पर अभी तक हजारों टन रेत-बजरी और मलबा जमा हुआ है. इस कारण कोई भी श्रद्धालु या पर्यटक इन घाटों का रुख नहीं कर रहा है.

रुद्रप्रयाग में हनुमान मंदिर के आगे घाटों का निर्माण किया गया है. यहां यात्रियों एवं पर्यटकों के बैठने के लिये चार से अधिक चबूतरे बनाये गए हैं. पिछले तीन महीने से यहां रेत-मिट्टी भरी पड़ी है. इस कारण कोई भी पर्यटक इन घाटों में नहीं पहुंच रहा है. यहां निर्मित शौचालयों के दरवाजे भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं. स्ट्रीट लाइटों की बैट्रियां खराब हो गई हैं. घाटों पर रेत-बजरी एकत्रित होने से अलकनंदा नदी के साथ ही घाटों की सुंदरता भी धूमिल हो रही है. इसके अलावा घाटों की किसी भी प्रकार से देख-रेख न होने के कारण कूड़े का अंबार लगा हुआ है.

ये भी पढ़ें : बच्छणस्यूं पट्टी के 67 गांवों को जल जीवन मिशन के तहत मिलेगा पानी

सभासद सुरेंद्र रावत ने कहा कि जब घाटों की देख-रेख ही नहीं करनी थी तो, इनका निर्माण क्यों किया गया. वर्षों से मानसून सीजन के बाद घाटों की स्थिति बदहाल हो जाती है, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रशासन को सबकुछ पता है, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं करता है. पर्यटकों के अलावा स्थानीय जनता को इन घाटों का लाभ नहीं मिल रहा है. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये इन घाटों का निर्माण किया गया था, लेकिन देख-रेख के अभाव में करोड़ों के घाट आज खंडहर में तब्दील हो गए हैं.

वहीं, जिलाधिकारी मनुज गोयल ने कहा कि अलकनंदा नदी के किनारे घाटों में जमा मलबे को हटाने के लिए सिंचाई विभाग को कहा गया है. जल्द ही घाटों से रेत और मलबे को साफ किया जाएगा. इसके बाद स्थानीय लोगों एवं पर्यटकों को घाटों का लाभ मिल सकेगा.

रुद्रप्रयाग: मानसून सीजन को समाप्त हुए लगभग तीन महीने बीत चुके हैं, लेकिन अलकनंदा नदी के तट पर बनाए गए घाटों में अभी भी रेत-मिट्टी के ढेर लगे हुए हैं. इसके चलते स्थानीय जनता के साथ ही यहां पहुंचने वाले पर्यटकों को घाटों का लाभ नहीं मिल पा रहा है. करोड़ों रुपये की लागत से निर्मित घाटों की सुंदरता भी धूमिल हो रही है. स्थानीय जनता लंबे समय से घाटों से रेत-मिट्टी हटाने की मांग कर रही है, लेकिन जिला प्रशासन एवं नगर पालिका इसमें कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं.

मलबे से पटा अलकनंदा का घाट.

दरअसल, मानसून सीजन के दौरान अलकनंदा नदी का जल स्तर बढ़ने से घाट जलमग्न हो जाते हैं. नदी का लाखों टन मलबा घाटों में जमा हो जाता है. अलकनंदा नदी किनारे हनुमान मंदिर के नीचे करोड़ों रुपये की लागत से वर्ष 2017 में घाटों का निर्माण किया गया था. इन घाटों का निर्माण नदी के निकट ही होने से प्रत्येक मानसून सीजन में ये जलमग्न हो जाते हैं. इस मानसून सीजन के दौरान घाटों पर निर्मित शौचालयों के दरवाजों के अलावा स्ट्रीट लाइटों की बैट्रियां भी क्षतिग्रस्त हुईं. घाटों पर अभी तक हजारों टन रेत-बजरी और मलबा जमा हुआ है. इस कारण कोई भी श्रद्धालु या पर्यटक इन घाटों का रुख नहीं कर रहा है.

रुद्रप्रयाग में हनुमान मंदिर के आगे घाटों का निर्माण किया गया है. यहां यात्रियों एवं पर्यटकों के बैठने के लिये चार से अधिक चबूतरे बनाये गए हैं. पिछले तीन महीने से यहां रेत-मिट्टी भरी पड़ी है. इस कारण कोई भी पर्यटक इन घाटों में नहीं पहुंच रहा है. यहां निर्मित शौचालयों के दरवाजे भी क्षतिग्रस्त हो गये हैं. स्ट्रीट लाइटों की बैट्रियां खराब हो गई हैं. घाटों पर रेत-बजरी एकत्रित होने से अलकनंदा नदी के साथ ही घाटों की सुंदरता भी धूमिल हो रही है. इसके अलावा घाटों की किसी भी प्रकार से देख-रेख न होने के कारण कूड़े का अंबार लगा हुआ है.

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सभासद सुरेंद्र रावत ने कहा कि जब घाटों की देख-रेख ही नहीं करनी थी तो, इनका निर्माण क्यों किया गया. वर्षों से मानसून सीजन के बाद घाटों की स्थिति बदहाल हो जाती है, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है. प्रशासन को सबकुछ पता है, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं करता है. पर्यटकों के अलावा स्थानीय जनता को इन घाटों का लाभ नहीं मिल रहा है. पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये इन घाटों का निर्माण किया गया था, लेकिन देख-रेख के अभाव में करोड़ों के घाट आज खंडहर में तब्दील हो गए हैं.

वहीं, जिलाधिकारी मनुज गोयल ने कहा कि अलकनंदा नदी के किनारे घाटों में जमा मलबे को हटाने के लिए सिंचाई विभाग को कहा गया है. जल्द ही घाटों से रेत और मलबे को साफ किया जाएगा. इसके बाद स्थानीय लोगों एवं पर्यटकों को घाटों का लाभ मिल सकेगा.

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