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सैकड़ों लोगों को स्वरोजगार देने वाला केंद्र हुआ 'लावारिस', कभी सरकार से मिला था पुरस्कार

बेरीनाग में 70 के दशक में स्थापित स्वरोजगार केंद्र बदहाल स्थिति में है. इस ग्राम स्वराज मंडल सर्वोदय संस्था में सैकड़ों लोग सिलाई-कताई बुनाई, रिंगाल उद्योग, लीसा प्लांट, आटा चक्की मशीन, आरा मशीन, नर्सरी समेत कई कामों से जुड़े थे, लेकिन अब यहां सब कुछ बंद पड़ा है. यहां की मशीनें खराब हो गई है और केंद्र खंडहर हो गया है.

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स्वरोजगार केंद्र
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Published : Aug 13, 2020, 10:07 PM IST

Updated : Aug 14, 2020, 12:58 PM IST

बेरीनागः जिस आत्मनिर्भर भारत बनाने की शुरुआत वर्तमान में हो रही है. इसकी शुरुआत विकास खंड बेरीनाग के कांडे गांव में 6 दशक पहले ही बेरीनाग ग्राम स्वराज मंडल सर्वोदय संस्था ने कर दी थी. संस्था ने क्षेत्र के सैकडों लोगों को स्वरोजगार देने के लिए कई तरह के काम शुरू किए थे. जिसमें कई लोग अपना स्वरोजगार भी कर रहे थे. लेकिन, धीरे-धीरे संस्था दम तोड़ती गई. इतना ही इस संस्था को भारत और प्रदेश सरकार से उनके कार्य को लेकर पुरस्कार भी मिल चुका है, लेकिन अब स्वरोजगार देने वाला संस्था बदहाली के आंसू रो रहा है.

सैकड़ों लोगों को स्वरोजगार देने वाला केंद्र हुआ 'लावारिस'

बता दें कि, बेरीनाग ग्राम स्वराज मंडल सर्वोदय संस्था में सिलाई-कताई बुनाई, रिंगाल उद्योग, लीसा प्लांट, आटा चक्की मशीन, आरा मशीन, नर्सरी, पर्यावरण संरक्षण जैसे स्वरोजगार के काम शुरू किए गए थे. इतना ही नहीं यहां पर कक्षा 8 तक का स्कूल भी था. 70 के दशक में किरोली के ग्रामीणों ने 35 नाली भूमि संस्था को कार्य करने के लिए लीज में दी थी. इस संस्था ने भी अपने विभिन्न कार्यों के लिए सैकडों लोगों को रोजगार पर रखने के साथ क्षेत्र के 35 गांवों को गोद लिया था. संस्था के कार्य को देखते हुए भारत सरकार के उपक्रम खादी ग्रामोद्योग ने भवन समेत अन्य उपकरणों के लिए ऋण भी दिया.

ये भी पढ़ेंः वोकल फॉर लोकल: यहां शहद से लेकर मिलेगा अचार, पहाड़ी चटपटे नमक की वाह क्या बात!

विश्व बैंक ने भी संस्था की थी मदद
कुमाऊं के विभिन्न स्थानों पर खादी सामग्री के केंद्र भी खोले गए. संस्था ने 60 से ज्यादा कमरे भी बनाए थे. उस दौर में विश्व बैंक से कार्य करने वाली सबसे अग्रणी संस्था हुआ करती थी. स्वरोजगार और पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने पर उस समय भारत सरकार और तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्मानित भी किया था. संस्था ने उस दौरान 50 लाख से ज्यादा लागत से भवन का भी निर्माण किया. साथ ही लाखों के उपकरण भी खरीदे.

साल 2007 में संस्था की नींव रखने वाले प्रसिद्ध समाज सेवी सदन मिश्रा ने स्वास्थ्य खराब होने के कारण यहां पर कार्य छोड़ दिया था. उसके बाद यहां की स्थिति चरमराने लगी. 6 दशकों से चली आ रही संस्था का बुरा दौर भी वहीं से शुरू हो गया. क्षेत्र के कई लोगों को इस संस्था की बागडोर दी तो वो इसे मुकाम तक नहीं पहुंचा पाए. धीरे-धीरे यह संस्था दम तोड़ने लगी. यहां पर कार्यरत कर्मचारियों को वेतन मिलना भी मुश्किल हो गया.

साल 2010 तक यहां पर संस्था का संचालन भी हुआ, लेकिन उसके बाद इसे लावारिस हालत में छोड़ दिया गया. यहां पर करोड़ों की संपति पर चोरों और माफियाओं की नजर पड़ गई. जिन्होंने तांबे के उपकरण समेत लोहे की बड़ी-बड़ी मशीनों पर हाथ साफ करना शुरू कर दिया. आज करोड़ों की संपति देखरेख के अभाव में बर्बाद हो रही है.

ये भी पढ़ेंः कोरोना महामारी के चलते प्रिंटिंग प्रेस के काम में आई 60% की कमी, नुकसान झेल रहे संचालक

सड़क किनारे पर होने के कारण यह अराजक तत्वों को अड्डा बनकर रह गया है. यहां पर अराजक तत्वों ने भवनों को तोड़-फोड़ करने के साथ कई बार आग भी लगाई है. पूर्व में स्थानीय ग्रामीण कई बार इसकी शिकायत भी कर चुके हैं, बावजूद इसके मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया.

ईंट, पत्थर और टीन की हो रही चोरी
सड़क से लगा होने के कारण यहां पर रात के समय कुछ लोगों की ओर से भवनों को तोड़कर उसके ईंट, पत्थर और टीन आदि को चुराया जा रहा है. अभी भी यहां पर कुछ उपकरण और भवन जो ठीक-ठाक हालत में है. समय रहते इन्हें भी बचाया जा सकता है. जबकि, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड भी फिर से संवार सकता है.

ये भी पढ़ेंः राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्राप्त पंचायतों को सीएम ने किया सम्मानित

पूर्व में कांग्रेस सरकार में एक दर्जा धारी मंत्री ने इस संस्था को अपने अधीन कर फिर से शुरू करने की कोशिश की, लेकिन वह भी परवान नहीं चढ़ सकी. स्थानीय लोगों ने खादी बोर्ड के अधिकारियों से संपर्क किया. बोर्ड भी इसे अपने अधीन लेकर फिर से यहां पर कार्य करने की कोशिश में लगा था.

स्वरोजगार और प्रशिक्षण बन सकता है केंद्र
जिस तरह से कोरोना काल में हजारों प्रवासी अपने घरों की ओर लौटकर आए हैं. सरकार की ओर से भी उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है. सरकार को इस परिसर में बचे भवनों को जीर्णोद्धार कर यहां पर कई तरह से स्वरोजगार और प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहिए. जिससे बेराजगार युवाओं को रोजगार मिल सके या फिर वो अपना स्वरोजगार शुरू कर सके.

बेरीनागः जिस आत्मनिर्भर भारत बनाने की शुरुआत वर्तमान में हो रही है. इसकी शुरुआत विकास खंड बेरीनाग के कांडे गांव में 6 दशक पहले ही बेरीनाग ग्राम स्वराज मंडल सर्वोदय संस्था ने कर दी थी. संस्था ने क्षेत्र के सैकडों लोगों को स्वरोजगार देने के लिए कई तरह के काम शुरू किए थे. जिसमें कई लोग अपना स्वरोजगार भी कर रहे थे. लेकिन, धीरे-धीरे संस्था दम तोड़ती गई. इतना ही इस संस्था को भारत और प्रदेश सरकार से उनके कार्य को लेकर पुरस्कार भी मिल चुका है, लेकिन अब स्वरोजगार देने वाला संस्था बदहाली के आंसू रो रहा है.

सैकड़ों लोगों को स्वरोजगार देने वाला केंद्र हुआ 'लावारिस'

बता दें कि, बेरीनाग ग्राम स्वराज मंडल सर्वोदय संस्था में सिलाई-कताई बुनाई, रिंगाल उद्योग, लीसा प्लांट, आटा चक्की मशीन, आरा मशीन, नर्सरी, पर्यावरण संरक्षण जैसे स्वरोजगार के काम शुरू किए गए थे. इतना ही नहीं यहां पर कक्षा 8 तक का स्कूल भी था. 70 के दशक में किरोली के ग्रामीणों ने 35 नाली भूमि संस्था को कार्य करने के लिए लीज में दी थी. इस संस्था ने भी अपने विभिन्न कार्यों के लिए सैकडों लोगों को रोजगार पर रखने के साथ क्षेत्र के 35 गांवों को गोद लिया था. संस्था के कार्य को देखते हुए भारत सरकार के उपक्रम खादी ग्रामोद्योग ने भवन समेत अन्य उपकरणों के लिए ऋण भी दिया.

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विश्व बैंक ने भी संस्था की थी मदद
कुमाऊं के विभिन्न स्थानों पर खादी सामग्री के केंद्र भी खोले गए. संस्था ने 60 से ज्यादा कमरे भी बनाए थे. उस दौर में विश्व बैंक से कार्य करने वाली सबसे अग्रणी संस्था हुआ करती थी. स्वरोजगार और पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने पर उस समय भारत सरकार और तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्मानित भी किया था. संस्था ने उस दौरान 50 लाख से ज्यादा लागत से भवन का भी निर्माण किया. साथ ही लाखों के उपकरण भी खरीदे.

साल 2007 में संस्था की नींव रखने वाले प्रसिद्ध समाज सेवी सदन मिश्रा ने स्वास्थ्य खराब होने के कारण यहां पर कार्य छोड़ दिया था. उसके बाद यहां की स्थिति चरमराने लगी. 6 दशकों से चली आ रही संस्था का बुरा दौर भी वहीं से शुरू हो गया. क्षेत्र के कई लोगों को इस संस्था की बागडोर दी तो वो इसे मुकाम तक नहीं पहुंचा पाए. धीरे-धीरे यह संस्था दम तोड़ने लगी. यहां पर कार्यरत कर्मचारियों को वेतन मिलना भी मुश्किल हो गया.

साल 2010 तक यहां पर संस्था का संचालन भी हुआ, लेकिन उसके बाद इसे लावारिस हालत में छोड़ दिया गया. यहां पर करोड़ों की संपति पर चोरों और माफियाओं की नजर पड़ गई. जिन्होंने तांबे के उपकरण समेत लोहे की बड़ी-बड़ी मशीनों पर हाथ साफ करना शुरू कर दिया. आज करोड़ों की संपति देखरेख के अभाव में बर्बाद हो रही है.

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सड़क किनारे पर होने के कारण यह अराजक तत्वों को अड्डा बनकर रह गया है. यहां पर अराजक तत्वों ने भवनों को तोड़-फोड़ करने के साथ कई बार आग भी लगाई है. पूर्व में स्थानीय ग्रामीण कई बार इसकी शिकायत भी कर चुके हैं, बावजूद इसके मामले को गंभीरता से नहीं लिया गया.

ईंट, पत्थर और टीन की हो रही चोरी
सड़क से लगा होने के कारण यहां पर रात के समय कुछ लोगों की ओर से भवनों को तोड़कर उसके ईंट, पत्थर और टीन आदि को चुराया जा रहा है. अभी भी यहां पर कुछ उपकरण और भवन जो ठीक-ठाक हालत में है. समय रहते इन्हें भी बचाया जा सकता है. जबकि, खादी ग्रामोद्योग बोर्ड भी फिर से संवार सकता है.

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पूर्व में कांग्रेस सरकार में एक दर्जा धारी मंत्री ने इस संस्था को अपने अधीन कर फिर से शुरू करने की कोशिश की, लेकिन वह भी परवान नहीं चढ़ सकी. स्थानीय लोगों ने खादी बोर्ड के अधिकारियों से संपर्क किया. बोर्ड भी इसे अपने अधीन लेकर फिर से यहां पर कार्य करने की कोशिश में लगा था.

स्वरोजगार और प्रशिक्षण बन सकता है केंद्र
जिस तरह से कोरोना काल में हजारों प्रवासी अपने घरों की ओर लौटकर आए हैं. सरकार की ओर से भी उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा रहा है. सरकार को इस परिसर में बचे भवनों को जीर्णोद्धार कर यहां पर कई तरह से स्वरोजगार और प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहिए. जिससे बेराजगार युवाओं को रोजगार मिल सके या फिर वो अपना स्वरोजगार शुरू कर सके.

Last Updated : Aug 14, 2020, 12:58 PM IST
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