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उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है सोरघाटी की रामलीला, दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं लोग

पिथौरागढ़ टकाना की रामलीला का आगाज यहां के कलेक्ट्रेट कर्मचारियों ने 1960 में किया था. जो अपने आप में लोक संस्कृति और विरासत समेटे हुए है. जिसे देखने काफी संख्या में लोग आते हैं.

सोरघाटी की रामलीला में दिखती है लोकसंस्कृति और विरासत की झलक.
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Published : Oct 7, 2019, 2:35 PM IST

पिथौरागढ़: पूरे देश के साथ ही सीमांत जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ में भी रामलीला का मंचन किया जा रहा है. टकाना की रामलीला का आगाज यहां के कलेक्ट्रेट कर्मचारियों ने 1960 में किया था. वहीं जिला बनने के साथ ही टकाना की रामलीला का मंचन शुरू हुआ, जो बदस्तूर जारी है. रामलीला देखने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं.

पिथौरागढ़ जिला कला, संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए है. जिसकी झलक टकाना की रामलीला में देखने को मिलती है. जो आज भी शास्त्रीय संगीत के सुरों को खुद में समेटे हुए है. यहां मंच पर कलाकारों का अभिनय किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देता है. 1960 में पिथौरागढ़ जिला बनने के बाद से यहां रामलीला का मंचन बदस्तूर जारी है. सोरघाटी की ये रामलीला जितनी पुरानी है उतने ही यहां के कलाकार भी मझे हुए हैं.

सोरघाटी की रामलीला में दिखती है लोकसंस्कृति और विरासत की झलक.

पढ़ें-विस्तारीकरण के बाद बढ़ी दून नगर निगम की जिम्मेदारी, सफाई के लिए रखे गए 650 सफाई कर्मी

राम के जन्म से रावण वध तक की पूरी रामलीला लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहती है. कलाकारों का बेहतरीन अभिनय जहां दर्शकों के लिए मनोरंजन का जरिया है. वहीं स्थानीय कलाकारों को रामलीला के जरिये एकमात्र मंच भी मिलता है. संचार क्रांति के इस दौर में भले ही लोगों के पास मनोरंजन के साधनों की कमी नहीं है. लेकिन पहाड़ों में आज भी रामलीला देखने के लिए लोग दूर-दूर से लोग खिंचे चले आते हैं. वहीं रामलीला में देवभूमि की संस्कृति और विरासत की झलक देखने को मिलती है. जिसको लोग आज भी जीवंत रखे हुए हैं.

पिथौरागढ़: पूरे देश के साथ ही सीमांत जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ में भी रामलीला का मंचन किया जा रहा है. टकाना की रामलीला का आगाज यहां के कलेक्ट्रेट कर्मचारियों ने 1960 में किया था. वहीं जिला बनने के साथ ही टकाना की रामलीला का मंचन शुरू हुआ, जो बदस्तूर जारी है. रामलीला देखने के लिए काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं.

पिथौरागढ़ जिला कला, संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत को संजोए हुए है. जिसकी झलक टकाना की रामलीला में देखने को मिलती है. जो आज भी शास्त्रीय संगीत के सुरों को खुद में समेटे हुए है. यहां मंच पर कलाकारों का अभिनय किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देता है. 1960 में पिथौरागढ़ जिला बनने के बाद से यहां रामलीला का मंचन बदस्तूर जारी है. सोरघाटी की ये रामलीला जितनी पुरानी है उतने ही यहां के कलाकार भी मझे हुए हैं.

सोरघाटी की रामलीला में दिखती है लोकसंस्कृति और विरासत की झलक.

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राम के जन्म से रावण वध तक की पूरी रामलीला लोगों के आकर्षण का केन्द्र रहती है. कलाकारों का बेहतरीन अभिनय जहां दर्शकों के लिए मनोरंजन का जरिया है. वहीं स्थानीय कलाकारों को रामलीला के जरिये एकमात्र मंच भी मिलता है. संचार क्रांति के इस दौर में भले ही लोगों के पास मनोरंजन के साधनों की कमी नहीं है. लेकिन पहाड़ों में आज भी रामलीला देखने के लिए लोग दूर-दूर से लोग खिंचे चले आते हैं. वहीं रामलीला में देवभूमि की संस्कृति और विरासत की झलक देखने को मिलती है. जिसको लोग आज भी जीवंत रखे हुए हैं.

Intro:पिथौरागढ़: पूरा देश इन दिनों रामलीला के रंग में सराबोर है। आज हम आपको दिखाते है सोरघाटी पिथौरागढ़ में जिला बनने के साथ ही शुरू हुई टकाना की रामलीला। इस रामलीला का आगाज यहां के कलेक्ट्रेट कर्मचारियों ने 1960 में किया था।

कला, संस्कृति और ऐतिहासिक विरासत को संजोने में पिथौरागढ़ का कोई सानी नही है। इसका जीता जागता सबूत है टकाना की रामलीला। जो आज भी शास्त्रीय संगीत के सुरों को खुद में समेटे हुए है। यहां मंच पर कलाकारों का अभिनय किसी को भी मंत्रमुग्ध कर देता है। 1960 में पिथौरागढ़ जिला बनने के बाद से यहां रामलीला का मंचन बदस्तूर जारी है।


Body:सोरघाटी की ये रामलीला जितनी पुरानी है उतने ही यहां के कलाकार भी मंझे हुए है। राम के जन्म से रावण वध तक कि पूरी रामलीला यहां बखूबी फ़रमाई जाती है। कलाकारों का बेहतरीन अभिनय जहां दर्शकों के लिए मनोरंजन का जरिया है वहीं स्थानीय कलाकारों को रामलीला के जरिये एकमात्र मंच भी मिलता है।

संचार क्रांति के इस दौर में भले ही लोगों के पास मनोरंजन के साधनों की कमी नही। मगर पहाड़ों में आज भी रामलीला देखने के लिए लोग दूर दूर से खिंचे चले आते है। दुनिया भले ही कितनी भी बदल जाएबमगर पहाड़वासियों का अपनी कला और संस्कृति प्रेम रत्ती भर भी कम नही हुआ है।

Byte: दिनेश तिवारी, कलाकार



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