पिथौरागढ़: बदलते मौसम का असर पहाड़ों की बागवानी पर भी देखने को मिल रहा है. खासकर सिट्रस फलों की पैदावार में इसका असर पड़ रहा है. सिट्रस फलों की पैदावार के लिए चर्चित पहाड़ों में नींबू, माल्टा, चूख, जामीर और संतरे का उत्पादन काफी कम हो गया है. साथ ही इसकी गुणवत्ता में भी कमी आयी है. उच्च हिमालयी इलाकों में सिट्रस फलों की पैदावार आज भी अच्छी है. इन इलाकों में पैदा होने वाले नींबू प्रजाति के फलों में उच्च क्वालिटी का विटामिन 'सी' होता है. लेकिन निचले इलाकों में अब ये पूरी तरह खत्म होने की कगार पर है. जानकार जहां इसके लिए बढ़ते तापमान और बदलते मौसम चक्र को वजह मान रहे हैं. वहीं उद्यान विभाग बागवानी की नई तकनीक की कमी को कम पैदावार के लिए जिम्मेदार ठहरा रहा है.
गौर हो कि पिछले कुछ सालों में जहां सिट्रस फलों की पैदावार कम हुई है. वहीं इनकी गुणवत्ता में भी कमी आई है. सिट्रस फलों कम हो रही पैदावार से काश्तकारों को खासा नुकसान हो रहा है. बता दें कि नींबू प्रजाति के फलों की पैदावार के लिए ठंडे इलाके अनुकूल माने जाते हैं. हाल के वर्षों में तापमान वृद्धि के चलते इसके उत्पादन पर असर पड़ा है. पिथौरागढ़ के चंडाक, बांस, नाकोट, गोरंग क्षेत्र में नींबू प्रजाति के फलों का अच्छा खासा उत्पादन होता था. मगर अब पुरानी फल पट्टियां लगभग सूख चुकी हैं.
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गिने-चुने गांवों में ही अब नारंगी और माल्टा के पेड़ बचे हैं. जिला उद्यान अधिकारी आरके वर्मा ने बताया कि सिट्रस फलों की पैदावार और गुणवत्ता में कमी उचित देखभाल ना होने की वजह से आ रही है. अगर काश्तकार पेड़ों पर उचित पोषक तत्वों का छिड़काव करें और पेड़ों की कटाई-छटाई व देखभाल नियमित रूप से करें तो उत्पादन और गुणवत्ता में सुधार आ सकता है.