पिथौरागढ़: नंदा देवी और नंदा देवी ईस्ट विश्व की सबसे दुर्गम चोटियों में शुमार है. यही वजह है कि अब तक गिने-चुने पर्वतारोही ही इस चोटी को फतह कर पाए है. नंदा देवी पर सबसे पहले 1936 में ब्रिटिश और अमेरिकी पर्वतारोहियों ने झंडे गाड़े थे, जबकि नंदा देवी ईस्ट को पहली बार 1939 में पोलैंड के पर्वतारोहियों ने छुआ था. वहीं, नंदा देवी के दोनों शिखर फतह करने का मौका 1976 में भारत और जापान के संयुक्त अभियान को मिला.
7,434 मीटर ऊंची नंदा देवी चोटी भले ही विश्व की 23 वीं सबसे ऊंची चोटी हो मगर इसकी चढ़ाई बेहद कठिन मानी जाती है. इस चोटी तक पहुंचने में कम लोगों को सफलता मिली है. इस चोटी तक पहुंचने के लिए मार्ग में तिरछे पहाड़ हैं और ऑक्सीजन की कमी के कारण आगे बढ़ पाना मुश्किल है.
नॉयल आडेल और विल तिलमेन ने इस शिखर को पहली बार 1936 में छूआ था. नंदा देवी पर दूसरा अभियान 1964 में हुआ. जिसमें भारतीय पर्वतारोही एन कुमार के नेतृत्व में भारतीय टीम ने चोटी पर तिरंगा फहराया था. 1980 में भारतीय सेना का अभियान यहां असफल रहा. 1981 में पहली बार तीन महिलाओं चंद्रप्रभा ऐतवाल, रेखा शर्मा और हर्षवंती बिष्ट ने इस चोटी पर तिरंगा फहराया.
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2017 में सेना का 7 सदस्यीय दल नंदा देवी ईस्ट चोटी को फतह करने निकला था. अभियान के दौरान दल के सभी सदस्य लापता हो गए थे. कई दिनों तक ढूंढ़खोज के बाद भी इस दल का कोई सुराग नहीं मिला.
वहीं, इस बार नंदा देवी ईस्ट को फतह करने निकला विदेशी पर्वतारोहियों का 8 सदस्यीय दल 24 मई को लापता हो गया था. इस दल में 4 ब्रिटिश, 2 अमेरिका, 1 ऑस्ट्रेलिया और एक भारतीय पर्वतारोही शामिल है. ये सभी जाने-माने पर्वतारोही थे, मगर हमेशा के लिए नंदा देवी के आगोश में समा गए.