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DIGITAL INDIA के दौर में पिछड़ा सीमांत क्षेत्र, नेपाल के नेटवर्क पर निर्भर ग्रामीण - डिजिटल क्रांति

डोडा-पीपली क्षेत्र की तो यहां हजारों की आबादी नेपाली टेलीकॉम सर्विस पर निर्भर है.सीमान्त क्षेत्रों  में मोबाइल सेवा नहीं होने से यहां लोग आईएसडी की दरों में बात करने को मजबूर है.

DIGITAL INDIA के दौर में पिछड़ा सीमांत क्षेत्र
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Published : Aug 13, 2019, 11:44 PM IST

पिथौरागढ़: डिजिटल क्रांति के दौर में नेपाल सीमा से सटे सीमान्त क्षेत्रों में लोग संचार सुविधा से पूरी तरह महरूम है. ऐसे में सीमान्त क्षेत्रों के 25 हजार से अधिक आबादी नेपाल की टेलीकॉम सर्विस पर निर्भर है. वहीं, स्थानीय लोग लंबे समय से क्षेत्र को संचार सुविधा से जोड़ने की मांग कर चुके हैं. लेकिन हालात आज भी जस के तस बने हुए हैं.


बता दें कि डोडा-पीपली क्षेत्र की तो यहां हजारों की आबादी नेपाली टेलीकॉम सर्विस पर निर्भर है. सीमान्त क्षेत्रों में मोबाइल सेवा न होने से यहां लोग आईएसडी की दरों में बात करने को मजबूर है. जबकि, पड़ोसी मुल्क नेपाल में लोग ऊंचाई वाले स्थानों पर बसे होने के कारण भारतीय नेटवर्क का पूरा लाभ उठा रहे हैं. स्थानीय लोग लम्बे समय से घाटी वाले क्षेत्रों को संचार सुविधा से जोड़ने की मांग कर चुके हैं. मगर हालात आज भी जस के तस बने हुए है.

DIGITAL INDIA के दौर में पिछड़ा सीमांत क्षेत्र.

वहीं, पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा से सटे कई गांवों में संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप है. मगर नेपाली टेलीकॉम कम्पनियां यहां जमकर फलफूल रही है. पीपली, झूलाघाट, जौलजीबी, तवाघाट, मांगती, मालपा, बूंदी, नाभीढांग समेत नेपाल से सटे दर्जनों गांवों में भारतीय संचार कम्पनियों के नेटवर्क ढूंढने पर भी नहीं मिलते हैं. जिस कारण इन गांवों की 25 हजार से अधिक आबादी नेपाली सिम का प्रयोग करने को मजबूर है. आलम ये है कि बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान और सरकारी कर्मचारी भी अपने परिवार का हालचाल जानने के लिए नेपाल के नेटवर्क पर ही निर्भर है.

सीमांत क्षेत्रों में संचार के मामले में भारत नेपाल से ज्यादा पिछड़ा हुआ है. भारतीयों द्वारा नेपाली सिम का प्रयोग करने से उपभोक्ताओं की जेब तो कट ही रही है. साथ ही भारत का पैसा नेपाल जा रहा है. यही नहीं सुरक्षा के लिहाज से भी ये मामला गंभीर है.

पिथौरागढ़: डिजिटल क्रांति के दौर में नेपाल सीमा से सटे सीमान्त क्षेत्रों में लोग संचार सुविधा से पूरी तरह महरूम है. ऐसे में सीमान्त क्षेत्रों के 25 हजार से अधिक आबादी नेपाल की टेलीकॉम सर्विस पर निर्भर है. वहीं, स्थानीय लोग लंबे समय से क्षेत्र को संचार सुविधा से जोड़ने की मांग कर चुके हैं. लेकिन हालात आज भी जस के तस बने हुए हैं.


बता दें कि डोडा-पीपली क्षेत्र की तो यहां हजारों की आबादी नेपाली टेलीकॉम सर्विस पर निर्भर है. सीमान्त क्षेत्रों में मोबाइल सेवा न होने से यहां लोग आईएसडी की दरों में बात करने को मजबूर है. जबकि, पड़ोसी मुल्क नेपाल में लोग ऊंचाई वाले स्थानों पर बसे होने के कारण भारतीय नेटवर्क का पूरा लाभ उठा रहे हैं. स्थानीय लोग लम्बे समय से घाटी वाले क्षेत्रों को संचार सुविधा से जोड़ने की मांग कर चुके हैं. मगर हालात आज भी जस के तस बने हुए है.

DIGITAL INDIA के दौर में पिछड़ा सीमांत क्षेत्र.

वहीं, पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा से सटे कई गांवों में संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप है. मगर नेपाली टेलीकॉम कम्पनियां यहां जमकर फलफूल रही है. पीपली, झूलाघाट, जौलजीबी, तवाघाट, मांगती, मालपा, बूंदी, नाभीढांग समेत नेपाल से सटे दर्जनों गांवों में भारतीय संचार कम्पनियों के नेटवर्क ढूंढने पर भी नहीं मिलते हैं. जिस कारण इन गांवों की 25 हजार से अधिक आबादी नेपाली सिम का प्रयोग करने को मजबूर है. आलम ये है कि बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान और सरकारी कर्मचारी भी अपने परिवार का हालचाल जानने के लिए नेपाल के नेटवर्क पर ही निर्भर है.

सीमांत क्षेत्रों में संचार के मामले में भारत नेपाल से ज्यादा पिछड़ा हुआ है. भारतीयों द्वारा नेपाली सिम का प्रयोग करने से उपभोक्ताओं की जेब तो कट ही रही है. साथ ही भारत का पैसा नेपाल जा रहा है. यही नहीं सुरक्षा के लिहाज से भी ये मामला गंभीर है.

Intro:पिथौरागढ़: डिजिटल क्रांति के दौर में भी नेपाल सीमा से सटे घाटी वाले क्षेत्रों में लोग संचार सुविधा से पूरी तरह महरूम है। अगर बात करें डोडा-पीपली क्षेत्र की तो यहां हज़ारों की आबादी नेपाली टेलीकॉम सर्विस पर निर्भर है। अपने देश मे मोबाइल सेवा नही होने से यहां लोग आईएसडी की दरों में बात करने को मजबूर है। जबकि पड़ोसी मुल्क नेपाल में लोग ऊंचाई वाले स्थानों पर बसे होने के कारण भारतीय नेटवर्क का पूरा लाभ उठा रहे है। स्थानीय लोग लम्बे समय से घाटी वाले क्षेत्रों को संचार से जोड़ने की मांग कर चुके है मगर हालात आज भी जस के तस बने हुए है।




Body:पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा से सटे कई गांवों में संचार व्यवस्था पूरी तरह ठप है। मगर नेपाली टेलीकॉम कम्पनियां यहां जमकर फलफूल रही है। पीपली, झूलाघाट, जौलजीबी, तवाघाट, मांगती, मालपा, बूंदी, नाभीढांग समेत नेपाल से सटे दर्जनों गांवों में भारतीय संचार कम्पनियों के नेटवर्क ढूंढने पर भी नही मिलते। जिस कारण इन गांवों की 25 हज़ार से अधिक आबादी नेपाली सिम का प्रयोग करने को मजबूर है। आलम ये है कि बॉर्डर पर तैनात सेना के जवान और सरकारी कर्मचारी भी अपने परिवार का हालचाल जानने के लिए भी नेपाली सिम पर ही निर्भर है।

सीमांत क्षेत्रों में संचार के मामले में भारत नेपाल से ज्यादा पिछड़ा हुआ है। भारतीयों द्वारा नेपाली सिम का प्रयोग करने से उपभोक्ताओं की जेब तो कट ही रही है साथ ही भारत का पैसा नेपाल जा रहा है। यही नही सुरक्षा के लिहाज से भी ये मामला गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।

Byte1: नरेंद्र ऐरी, स्थानीय
Byte2: कुँवर खड़ायत, स्थानीय
Byte3: परमानंद गिरी, नेपाली नागरिक


Conclusion:
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