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आमदनी का जरिया बन रहा 'इंडियन बटर ट्री', ये चीजें बनाती हैं इस पेड़ को खास

पिथौरागढ़ जिले में इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड स्पोर्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से च्यूरा वृक्ष को रोजगार का जरिया बनाने का प्रयास किया जा रहा है. यह वृक्ष 'इंडियन बटर ट्री' के नाम से विख्यात है.

च्यूरा वृक्ष बन रहा आजीविका का जरिया.
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Published : Sep 25, 2019, 7:54 AM IST

पिथौरागढ़: 'इंडियन बटर ट्री' के नाम से विख्यात च्यूरा वृक्ष जिले के ग्रामीणों की आमदनी का जरिया बना हुआ है. इस पेड़ की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसके फल, फूल, बीज, छाल, लकड़ी, खाल और पत्तियां सभी से उत्पाद बनाए जाते हैं. इस वृक्ष से घी, तेल, पशुचारा, शहद, कीटनाशक, अगरबत्ती, साबुन, तेल, वैसलीन, मोमबत्ती भी बनाई जाती है.

औषधीय गुणों से भरपूर होने के चलते इसे कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है. च्यूरा से तैयार किया गया घी बाजार में 200 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकता है. इस पेड़ के लाभकारी होने के चलते, अगर सरकार च्यूरा उत्पादन को बढ़ावा दे तो ये सीमांत क्षेत्रों के ग्रामीणों की आजीविका का अहम जरिया बन सकता है.

च्यूरा वृक्ष बन रहा आजीविका का जरिया.

यह भी पढ़ें: अल्मोड़ाः चुनाव में अहम रहेगा सियासी घमासान, जिला पंचायत की 45 सीटों पर होगा दंगल

च्यूरा वृक्ष का वनस्पतिक नाम 'डिप्लोनेमा बुटीरैशिया' है. ये पेड़ पिथौरागढ़ जिले की काली, गोरी, सरयू, रामगंगा नदी घाटियों में पाया जाता है. पहाड़ के घाटी वाले क्षेत्रों में जब च्यूरे के फूल खिलतें हैं, तो शहद का काफी उत्पादन होता है. इसके फल के बीज से घी तैयार किया जाता है. च्यूरे का घी काफी पोषक होता है. गठिया के रोग में च्यूरे का तेल फायदेमंद माना जाता है. इसके अलावा कई तरह की बीमारियों में भी यह अचूक दवा का काम करता है. इसकी पत्तियां चारे के अलावा धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रयोग में लाई जाती हैं. च्यूरे की खली मोमबत्ती, वेसलीन और कीटनाशक बनाने के काम आती है.

यह भी पढ़ें: केदारनाथ मंदिर समिति को मिला करोड़ों का दान, इस ग्रुप ने बढ़ाए हाथ

जिले में चल रहे इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड स्पोर्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से च्यूरा वृक्ष को रोजगार का जरिया बनाने का प्रयास किया जा रहा है. मूनाकोट ब्लॉक में च्यूरा की प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने का काम शुरू किया गया है. समितियों के माध्यम से च्यूरा का बीज और साबुन तैयार किए जाने की योजना है. सरकार की ओर से च्यूरा उत्पादन को बढ़ावा देने पर और इसके उत्पाद को बाजार में उपलब्ध कराने से ग्रामीण क्षेत्रों में यह रोजगार का बेहतर श्रोत बन सकता है.

पिथौरागढ़: 'इंडियन बटर ट्री' के नाम से विख्यात च्यूरा वृक्ष जिले के ग्रामीणों की आमदनी का जरिया बना हुआ है. इस पेड़ की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसके फल, फूल, बीज, छाल, लकड़ी, खाल और पत्तियां सभी से उत्पाद बनाए जाते हैं. इस वृक्ष से घी, तेल, पशुचारा, शहद, कीटनाशक, अगरबत्ती, साबुन, तेल, वैसलीन, मोमबत्ती भी बनाई जाती है.

औषधीय गुणों से भरपूर होने के चलते इसे कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है. च्यूरा से तैयार किया गया घी बाजार में 200 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकता है. इस पेड़ के लाभकारी होने के चलते, अगर सरकार च्यूरा उत्पादन को बढ़ावा दे तो ये सीमांत क्षेत्रों के ग्रामीणों की आजीविका का अहम जरिया बन सकता है.

च्यूरा वृक्ष बन रहा आजीविका का जरिया.

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च्यूरा वृक्ष का वनस्पतिक नाम 'डिप्लोनेमा बुटीरैशिया' है. ये पेड़ पिथौरागढ़ जिले की काली, गोरी, सरयू, रामगंगा नदी घाटियों में पाया जाता है. पहाड़ के घाटी वाले क्षेत्रों में जब च्यूरे के फूल खिलतें हैं, तो शहद का काफी उत्पादन होता है. इसके फल के बीज से घी तैयार किया जाता है. च्यूरे का घी काफी पोषक होता है. गठिया के रोग में च्यूरे का तेल फायदेमंद माना जाता है. इसके अलावा कई तरह की बीमारियों में भी यह अचूक दवा का काम करता है. इसकी पत्तियां चारे के अलावा धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रयोग में लाई जाती हैं. च्यूरे की खली मोमबत्ती, वेसलीन और कीटनाशक बनाने के काम आती है.

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जिले में चल रहे इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड स्पोर्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से च्यूरा वृक्ष को रोजगार का जरिया बनाने का प्रयास किया जा रहा है. मूनाकोट ब्लॉक में च्यूरा की प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने का काम शुरू किया गया है. समितियों के माध्यम से च्यूरा का बीज और साबुन तैयार किए जाने की योजना है. सरकार की ओर से च्यूरा उत्पादन को बढ़ावा देने पर और इसके उत्पाद को बाजार में उपलब्ध कराने से ग्रामीण क्षेत्रों में यह रोजगार का बेहतर श्रोत बन सकता है.

Intro:पिथौरागढ़: इंडियन बटर ट्री के नाम से विख्यात च्यूरा वृक्ष ग्रामीणों की आमदनी का जरिया बना हुआ है। इस पेड़ की सबसे बड़ी ख़ासियत ये है कि इसके फल, फूल, बीज, छाल, लकड़ी, खाली और पत्तियां सभी से उत्पाद बनाये जाते है। इस वृक्ष से घी, तेल, पशुचारा, शहद, कीटनाशक, अगरबत्ती, साबुन, तेल, वेसलीन, मोमबत्ती बनाई जाती है। ओषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसे कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गयी है। च्युरे से तैयार किया गया घी बाजार में 200 रुपया प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। अगर सरकार च्युरा उत्पादन को बढ़ावा दे तो ये सीमांत क्षेत्रों के ग्रामीणों की आजीविका का अहम जरिया बन सकता है।


Body:च्यूरा वृक्ष का वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा बुटीरैशिया है। ये पेड़ पिथौरागढ़ जिले की काली,गोरी, सरयू, रामगंगा नदी घाटियों में पाया जाता है। पहाड़ के घाटी वाले क्षेत्रों में जब च्युरे के फूल घुलते है तब शहद का काफी उत्पादन होता है। इसके फल के बीज से घी तैयार किया जाता है। च्युरे का घी काफी पोषक होता है। गठिया के रोग में च्युरे के तेल की मालिश से बहुत फायदा होता है। इसके अलावा कई तरह की एलर्जी में भी यह अचूक दवा का काम करता है। इसकी पत्तियां चारे के अलावा धार्मिक अनुष्ठानों में भी प्रयोग में लायी जाती है। च्युरे कि खली मोमबत्ती, वेसलीन और कीटनाशक बनाने के काम आती हैं।

जिले में चल रहे इंटीग्रेटेड लाइवलीहुड सपोर्ट प्रोजेक्ट के माध्यम से च्यूरा वृक्ष को रोजगार का जरिया बनाने के प्रयास किये जा रहे है। मूनाकोट ब्लॉक में च्यूरा की प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने का काम शुरू किया गया है। समितियों के माध्यम से च्युरे का बीज और साबुन तैयार किये जाने की योजना है। अगर सरकार च्युरा उत्पादन को बढ़ावा दे और इसके उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराए तो ये ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का बेहतर श्रोत बन सकता है।

Byte: लक्ष्मण कुँवर, स्थानीय
Byte: रेखा भट्ट, उद्यमी महिला


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