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लाइलाज बीमारियों के लिए कारगर है जोंक थेरेपी, गंजेपन और मुहासों को भी करता है दूर - जोंक खूंन चूसती है

प्राचीन काल से ही जोंक थेरेपी से लाइलाज बीमारियों का इलाज किया जाता रहा है. खून से संबंधित बीमारियों का इलाज करने के लिए जोंक को उस जगह पर चुसवाया जाता है. इस चिकित्सापद्धति को जलोकावरण और रक्तमोक्षण कहा जाता है.

पिथौरागढ़ जोंक
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Published : Oct 3, 2019, 3:04 PM IST

Updated : Oct 3, 2019, 3:21 PM IST

पिथौरागढ़: घूमने का शौक सभी को होता है, खासकर पहाड़ों और जंगलों में घूमने का शौक हर किसी को होता हैं. इस दौरान आपको जोंक के चिपकने का भी डर रहता है. जोंक हमारी त्वचा में इस कदर चिपक जाती है कि उसे निकालना आसान नहीं होता. जोंक जब खून चूसकर मोटी हो जाती है तब ये अपना भार सहन नहीं कर पाती और आपके शरीर से गिर जाती है. जोंक निकलने के बाद जब खून का बहना शुरू होता है तब जोंक का पता चलता है. जोंक लगने पर घबराने की जरूरत नहीं है. इसका इस्तेमाल प्राचीन चिकित्सापद्धति में किया जाता रहा है. इस चिकित्सापद्धति को जलोकावरण और रक्तमोक्षण कहा जाता है.

जोंक की लार में हीरुडीन एंजाइम पाया जाता है. इसलिए जोंक का लीच थेरेपी यानि जोंक चिकित्‍सा को प्राचीन काल से ही इस्‍तेमाल किया जाता है. 19वीं सदी की शुरुआत से ही यह थेरेपी प्रचलन में आई, लेकिन 20वीं सदी आते-आते लीच थेरेपी का क्रेज नहीं रहा.

जोंक से खून चुसवाना है फायदेमंद.

जीव वैज्ञानिक डॉ. विपिन चन्द्र पाठक ने बताया कि जोंक कब शरीर मे चिपककर खून चूसकर निकल जाती है. इसकी भनक तक नहीं लग पाती. ऐसा जोंक की लार में पाए जाने वाले हीरुडीन एंजाइम की वजह से ऐसा होता है. ये खून को पतला करता है और रक्त का थक्का नहीं जमने देता. जिस कारण जोंक के शरीर से हटने के बाद रक्तस्राव होता चला जाता है.

क्या है लीच थेरेपी ?

जोंक की लार में हीरुडीन एंजाइम पाया जाता है. जोंक जब चिपकती है तो खून में हीरुडीन नामक रसायन छोड़ती है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है. साथ ही जोंक शरीर से प्रदूषित खून भी चूस लेती है, जिससे खून शुद्ध हो जाता है. खून में हीरुडीन एंजाइम मिल जाने से शरीर में ऑक्सीजन वाला खून बहने लगता है और शरीर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगता है.

लीच थेरेपी के फायदे

  • हाई बीपी का इलाज- जोंक की लार में रक्तचाप कम करने वाला तत्व भी पाया जाता है. लीच थेरेपी से शरीर की रक्त धमनियों को बहुत फायदा होता है. यह थेरेपी हृयद मरीजों के लिए फायदेमंद है.
  • वैस्कुलर डिजीज- वैस्कुलर डिजीज में दिमाग की रक्त कोशिकाओं में और दिल की रक्त वाहिकाओं में ऐंठन आ जाती है. जोंक के लार में 100 से ज्यादा बायोएक्टिव तत्व होते हैं, इस थेरेपी के जरिए रक्त रक्त प्रवाह को बेहतर करके वैस्कुलर डिजीज को दूर करने में मदद मिलती है.
  • जोड़ों का दर्द- अधिक उम्र के लोगों में अक्सर जोड़ों के दर्द की परेशानी रहती है. यह एक सामान्य परेशानी है. लेकिन जोंक थेरेपी से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. क्योंकि, जोंक की लार में ऐसे तत्व पाएं जाते हैं जो सूजन में राहत देते हैं.
  • कार्डियोवस्कुलर डिजीज- कार्डियोवस्कुलर हार्ट डिजीज भी एक गंभीर समस्या है, जो अन्य दिल के रोगों का कारण बनती है. जोंक में एंटीकोग्यूलेशन एजेंट मौजूद होते हैं, जो इस बीमारी के लिए लाभकारी होते हैं.
  • गंजापन का इलाज- जोंक में पाए जाने वाले एंजाइम गंजापन का भी इलाज करते हैं. सिर पर जहां बाल कम होते हैं, उस स्थान पर जोंक को रखकर खून चुसवाया जाता है. इससे स्कैल्प में खून का संचार होता है और बाल उगने लगते हैं.
  • मुहासों को फायदा- लीच थेरेपी के कील मुंहासों को ठीक किया जा सकता है. इससे चेहरे पर ग्लो भी आता है. इस थेरेपी में जोंक को मुंहासे के ऊपरी सतह पर रखा जाता है. 30 से 45 मिनट के अंदर जोंक दूषित खून को पी जाता है. इस थेरेपी से मुंहासे को चार हफ्ते में पूरी तरह ठीक किया जा सकता है.

उत्तराखंड के जीव वैज्ञानिक डॉ. विपिन चंद्र पाठक बताते हैं कि जोंक एनेलिडा परिवार के हीरुडीनिया उपवर्ग का उभयलिंगी परजीवी है. यह पहाड़ों के अलावा मैदानी इलाकों में भी नमी वाली जगहों पर पाई जाती है. पहाड़ में इसे 'जुगा' और अंग्रेजी में लीच कहा जाता हैं. दुनियाभर में लीच की कुल 300 प्रजातियां खोजी गयी हैं. जिस जोंक से हम खून चुसवाने में परहेज करते है, विदेशों में लोग इससे खून चुसवाने के लिए पैसा दे रहे हैं.

पिथौरागढ़: घूमने का शौक सभी को होता है, खासकर पहाड़ों और जंगलों में घूमने का शौक हर किसी को होता हैं. इस दौरान आपको जोंक के चिपकने का भी डर रहता है. जोंक हमारी त्वचा में इस कदर चिपक जाती है कि उसे निकालना आसान नहीं होता. जोंक जब खून चूसकर मोटी हो जाती है तब ये अपना भार सहन नहीं कर पाती और आपके शरीर से गिर जाती है. जोंक निकलने के बाद जब खून का बहना शुरू होता है तब जोंक का पता चलता है. जोंक लगने पर घबराने की जरूरत नहीं है. इसका इस्तेमाल प्राचीन चिकित्सापद्धति में किया जाता रहा है. इस चिकित्सापद्धति को जलोकावरण और रक्तमोक्षण कहा जाता है.

जोंक की लार में हीरुडीन एंजाइम पाया जाता है. इसलिए जोंक का लीच थेरेपी यानि जोंक चिकित्‍सा को प्राचीन काल से ही इस्‍तेमाल किया जाता है. 19वीं सदी की शुरुआत से ही यह थेरेपी प्रचलन में आई, लेकिन 20वीं सदी आते-आते लीच थेरेपी का क्रेज नहीं रहा.

जोंक से खून चुसवाना है फायदेमंद.

जीव वैज्ञानिक डॉ. विपिन चन्द्र पाठक ने बताया कि जोंक कब शरीर मे चिपककर खून चूसकर निकल जाती है. इसकी भनक तक नहीं लग पाती. ऐसा जोंक की लार में पाए जाने वाले हीरुडीन एंजाइम की वजह से ऐसा होता है. ये खून को पतला करता है और रक्त का थक्का नहीं जमने देता. जिस कारण जोंक के शरीर से हटने के बाद रक्तस्राव होता चला जाता है.

क्या है लीच थेरेपी ?

जोंक की लार में हीरुडीन एंजाइम पाया जाता है. जोंक जब चिपकती है तो खून में हीरुडीन नामक रसायन छोड़ती है, जिससे रक्त संचार बेहतर होता है. साथ ही जोंक शरीर से प्रदूषित खून भी चूस लेती है, जिससे खून शुद्ध हो जाता है. खून में हीरुडीन एंजाइम मिल जाने से शरीर में ऑक्सीजन वाला खून बहने लगता है और शरीर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगता है.

लीच थेरेपी के फायदे

  • हाई बीपी का इलाज- जोंक की लार में रक्तचाप कम करने वाला तत्व भी पाया जाता है. लीच थेरेपी से शरीर की रक्त धमनियों को बहुत फायदा होता है. यह थेरेपी हृयद मरीजों के लिए फायदेमंद है.
  • वैस्कुलर डिजीज- वैस्कुलर डिजीज में दिमाग की रक्त कोशिकाओं में और दिल की रक्त वाहिकाओं में ऐंठन आ जाती है. जोंक के लार में 100 से ज्यादा बायोएक्टिव तत्व होते हैं, इस थेरेपी के जरिए रक्त रक्त प्रवाह को बेहतर करके वैस्कुलर डिजीज को दूर करने में मदद मिलती है.
  • जोड़ों का दर्द- अधिक उम्र के लोगों में अक्सर जोड़ों के दर्द की परेशानी रहती है. यह एक सामान्य परेशानी है. लेकिन जोंक थेरेपी से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है. क्योंकि, जोंक की लार में ऐसे तत्व पाएं जाते हैं जो सूजन में राहत देते हैं.
  • कार्डियोवस्कुलर डिजीज- कार्डियोवस्कुलर हार्ट डिजीज भी एक गंभीर समस्या है, जो अन्य दिल के रोगों का कारण बनती है. जोंक में एंटीकोग्यूलेशन एजेंट मौजूद होते हैं, जो इस बीमारी के लिए लाभकारी होते हैं.
  • गंजापन का इलाज- जोंक में पाए जाने वाले एंजाइम गंजापन का भी इलाज करते हैं. सिर पर जहां बाल कम होते हैं, उस स्थान पर जोंक को रखकर खून चुसवाया जाता है. इससे स्कैल्प में खून का संचार होता है और बाल उगने लगते हैं.
  • मुहासों को फायदा- लीच थेरेपी के कील मुंहासों को ठीक किया जा सकता है. इससे चेहरे पर ग्लो भी आता है. इस थेरेपी में जोंक को मुंहासे के ऊपरी सतह पर रखा जाता है. 30 से 45 मिनट के अंदर जोंक दूषित खून को पी जाता है. इस थेरेपी से मुंहासे को चार हफ्ते में पूरी तरह ठीक किया जा सकता है.

उत्तराखंड के जीव वैज्ञानिक डॉ. विपिन चंद्र पाठक बताते हैं कि जोंक एनेलिडा परिवार के हीरुडीनिया उपवर्ग का उभयलिंगी परजीवी है. यह पहाड़ों के अलावा मैदानी इलाकों में भी नमी वाली जगहों पर पाई जाती है. पहाड़ में इसे 'जुगा' और अंग्रेजी में लीच कहा जाता हैं. दुनियाभर में लीच की कुल 300 प्रजातियां खोजी गयी हैं. जिस जोंक से हम खून चुसवाने में परहेज करते है, विदेशों में लोग इससे खून चुसवाने के लिए पैसा दे रहे हैं.

Intro:पिथौरागढ़: अगर आपको जंगलों और पहाड़ों में घूमना काफी पसंद है तो आपके शरीर में जोंक चिपकने का डर भी अधिक होता है। जोंक हमारी त्वचा में इस कदर चिपक जाती है कि उन्हें शरीर से निकालना आसान नही होता। पतली सी जोंक जब खून चूसकर मोटी हो जाती है तब ये अपना भार सहन नही कर पाती और आपके शरीर से गिर जाती हैं। जोंक निकलने के बाद शरीर से खून का बहना शुरू होता है और जोंक का पता चलता है। जोंक लगने पर घबराने की जरूरत नही है। इसका इस्तेमाल प्राचीन चिकित्सापद्धति में किया जाता रहा है।



Body:जोंक कब शरीर मे चिपककर खून चूसकर निकल जाती है इसकी भनक तक नही लग पाती। जोंक की लार में पाए जाने वाले एंजाइम हीरुडीन की वजह से ऐसा होता है। ये खून को पतला करता है और रक्त का थक्का नही जमने देता। जिस कारण जोंक के शरीर से हटने के बाद रक्तस्राव होता चला जाता है। हीरुडीन एन्जाइम हृदय रोगों की दवा में भी इस्तेमाल किया जाता है। भारत मे प्राचीन समय से ही जोंकों के द्वारा इलाज किये जाने की पद्यति प्रचलन में है। इस चिकित्सापद्धति को जलोकावरण और रक्तमोक्षण कहा जाता है। रक्तमोक्षण का अर्थ है खून को शरीर से अलग करना। इस विधि से जोंक की मदद से अशुद्ध रक्त को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। जलोकावरण यानी लीच थेरेपी से कील-मुहांसे, गंजापन, सोरायसिस, गैंग्रीन, डायबिटीज, दाद, डैंड्रफ और फंगल इन्फेक्शन आदि कई बीमारियों में फायदेमंद है। जोंक की लार में हीरूडीन, हिपेरिन, केलिन, बेडलीन जैसे कई रसायन पाए जाते है जो विभिन्न बीमारियों के लिए रामबाण का काम करते है।

जोंक एनेलिडा परिवार के हीरूडीनिया उपवर्ग का उभयलिंगी परजीवी है। यह पहाड़ो के अलावा मैदानी इलाकों में भी नमी वाली जगहों पर पाया जाता है। पहाड़ में इसे 'जुगा' और अंग्रेजी में लीच कहा जाता हैं। दुनिया भर में लीच की कुल 300 प्रजातियां खोजी गयी है। जिस जोंक से हम खून चुसवाने में परहेज करते है विदेशों में भी लोग इससे खून चुसवाने के लिए पैसा दे रहे हैं।

Byte: डा0 विपिन चन्द्र पाठक, जीववैज्ञानिक


Conclusion:
Last Updated : Oct 3, 2019, 3:21 PM IST
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