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देहरादून के नगर निगम बनने की कहानी, कभी यहां घर बनाने की ये थी शर्त, 150 फलदार पेड़ लगाने भी थे अनिवार्य - HISTORY OF DEHRADUN

कभी देहरादून में घर बनाने के लिए ढाई बीघा जमीन और डेढ़ सौ फलदार पेड़ की थी अनिवार्यता, इतिहासकार लोकेश ओहरी ने पलटे पुराने पन्ने

HISTORY OF DEHRADUN
देहरादून नगर निगम का इतिहास (PHOTO- ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 11, 2025, 11:31 AM IST

Updated : Jan 11, 2025, 2:26 PM IST

देहरादून (धीरज सजवाण): उत्तराखंड निकाय चुनाव का शोर इन दिनों गली-गली और शहर-शहर में है. 23 जनवरी को उत्तराखंड निकाय चुनाव 2025 के लिए मतदान होना है. 25 जनवरी को निकाय चुनाव का परिणाम घोषित होगा. आज हम आपको उत्तराखंड के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून की वो कहानी सुनाते हैं, जो आपने अब तक शायद नहीं सुनी हो. तो पेश है इतिहासकार लोकेश ओहरी की जुबानी देहरादून शहर और दून नगर निगम की कहानी.

देहरादून नगर निगम की कहानी: उत्तराखंड में निकाय चुनाव की सरगर्मियां चल रही हैं. उत्तराखंड के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून के राजनीतिक और प्रशासनिक अतीत को देखें तो आज तस्वीर बेहद अलग नजर आती है. कैसे देहरादून शहर में अंग्रेजों ने एक रिटायरमेंट सिटी की नींव रखी थी और कैसे आज देहरादून शहर विकास के नाम पर अव्यवस्था की भेंट चढ़ रहा है.

अंग्रेजों के समय के देहरादून और 21वीं सदी के देहरादून में अंतर (VIDEO- ETV Bharat)

सर्दी में चुनाव प्रचार की गर्मी: हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड राज्य में इन दिनों भले मौसम सर्द है, लेकिन शहरों में चुनावी माहौल गरम है. निकाय चुनाव के चलते इन दिनों शहरों के गली मोहल्लों में चुनावी चहल कदमियां खूब जोरों से देखी जा सकती हैं. उत्तराखंड में 100 नगर निकाय सीटों पर तकरीबन 31 लाख मतदाता 23 जनवरी को होने वाले मतदान में शहरों की सरकार चुनने जा रहे हैं.

History of Dehradun
1960 में ली गई तस्वीर में राजपुर रोड और वृक्षों का दृश्य (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

इसमें 5 हजार से ज्यादा प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. वहीं 100 वार्ड के साथ राज्य के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून कि अगर बात की जाए, तो यहां पर 7 लाख से ज्यादा मतदाता 23 जनवरी को देहरादून के नए मेयर और 100 वार्डों के पार्षदों का भविष्य तय करेंगे. देहरादून शहर की शुरुआत कैसे हुई, यहां पर म्यूनिसिपैलिटी का शुरुआती दौर किस तरह का था. यह हमने देहरादून के ही इतिहासकार और हेरिटेज संरक्षक लोकेश ओहरी से जाना.

History of Dehradun
1970 में देहरादून घंटाघर (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

अंग्रेजों ने देहरादून शहर को 'City of green hedges and grey hairs' नाम दिया था: देहरादून नगर पालिका की स्थापना को लेकर हमने इतिहासकार लोकेश ओहरी से बातचीत की. उन्होंने बताया कि-

देहरादून में पहली दफा ब्रिटिश काल में 1883 में जिला बोर्ड का गठन हुआ था. इसमें ज्यादातर सदस्य अंग्रेज थे. इसके बाद 20वीं शताब्दी में प्रवेश करते ही 1901 में देहरादून डिस्टिक बोर्ड को अपग्रेड करके म्यूनिसिपल काउंसिल बना दिया गया. इसके बाद धीरे-धीरे देहरादून शहर में लोगों की आमद बढ़ी और 1938 में जाकर देहरादून म्यूनिसिपैलिटी की स्थापना हुई. जब पहली दफा देहरादून में जिला बोर्ड बनाया गया तब देहरादून एक छोटा शहर हुआ करता था. शुरुआत में ब्रिटिश शासन के दौरान देहरादून के कुछ ही क्षेत्र विकसित हुए जिनमें डालनवाला, राजपुर रोड, परेड ग्राउंड और पलटन बाजार कुछ शुरुआती एस्टेब्लिशमेंट हैं. अंग्रेजों ने शहर को सेवा से रिटायर हुए लोगों के लिए एक हीलिंग सिटी के रूप में शुरू किया था. इसे अक्सर अंग्रेज "City of green hedges and grey hairs" के नाम से बुलाते थे.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

ढाई बीघा में मकान, 150 फलदार पेड़ लगाना था अनिवार्य: इतिहासकार लोकेश ओहरी 18वीं शताब्दी का एक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि-

History of Dehradun
देहरादून में बहने वाली रायपुर-मालदेवता नहर, 1960 का चित्र (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

1890 में जब देहरादून में अफगान राजा आए तो उनके घोड़े परेड ग्राउंड में घूमा करते थे. डालनवाला में रहने वाले लोगों ने डिस्ट्रिक्ट काउंसिल को शिकायत की थी कि अफगान राजा के घोड़े परेड ग्राउंड में गंदगी करते हैं. 19 वीं शताब्दी का किस्सा बताता है कि देहरादून में रहने वाले लोग शुरू से ही कितने जागरूक थे. खासतौर से शहर की सफाई को लेकर सजग थे. इसके बाद 1901 में म्यूनिसिपल काउंसिल और 1938 में म्यूनिसिपैलिटी बनने के दौरान भी देहरादून में रहन-सहन और आब-ओ-हवा यहां की विशेष खासियत थी.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

देहरादून म्यूनिसिपैलिटी के एक से बढ़कर एक रोचक तथ्य हैं. ऐसे ही एक तथ्य के बारे में इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि-

राजपुर रोड पर घर बनाने के लिए कम से कम ढाई बीघा जमीन पर मकान बनाने की अनुमति थी. इसमें बाउंड्री वॉल लगाने की अनुमति नहीं थी. घर बनवाने वाले को 150 फलदार पेड़ लगाना भी अनिवार्य था. वहीं अगर वर्तमान की बात करें तो देहरादून नगर निगम का पेड़ों और हरियाली से कोई खास वास्ता नहीं दिखाई पड़ता है. यानी साफ है कि अंग्रेजों ने इस शहर को बगीचों और नहरों के शहर के रूप में शुरू किया था, जो आज किसी और दिशा में ही जाता नजर आ रहा है.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

1938 की म्यूनिसिपैलिटी अब कॉस्मोपॉलिटन शहर बना देहरादून: इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि 1938 में देहरादून नगर पालिका की स्थापना के बाद कई आधारभूत बदलाव हुए. नए निर्माण हुए तो वहीं 1947 में आजादी के बाद आजादी के स्मारक के रूप में देहरादून के बलबीर घंटाघर का निर्माण हुआ. इसे लाला बलबीर सिंह ने देश की आजादी की याद में बनाया था. देहरादून के घंटाघर का शिलान्यास सरोजिनी नायडू ने किया था. बाद में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देहरादून के घंटाघर का लोकार्पण किया था. वहीं देहरादून का परेड ग्राउंड एक सिटी सेंटर के रूप में शुरू से ही विकसित हुआ.

History of Dehradun
1946 में देहरादून के एस्ले हॉल में खरीदारी करने आए जर्मन (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

लोकेश ओहरी बताते हैं कि-

1815 में जब पहली बार अंग्रेज देहरादून आए, तो उन्होंने इसी परेड ग्राउंड में अपनी सेना की परेड कराई थी. उसके बाद परेड ग्राउंड में कई तरह की लोकल एक्टिविटी जिसमें मेले, दंगल, सर्कस या फिर अन्य तरह के आयोजन हुआ करते थे. यह एक सिटी सेंटर के रूप में हमेशा से रहा है. देश की आजादी के बाद से लेकर तकरीबन 21वीं शताब्दी की शुरुआत तक देहरादून शहर में बदलाव बेहद धीमी रफ्तार से हुए. ज्यादातर चीजें पहले की तरह थीं. जरूरी निर्माण हुए. ओएनजीसी, देहरादून कैंटोनमेंट पहले से मौजूद थे. इस दौरान निर्माण हुए लेकिन नियंत्रित रूप में. लेकिन साल 2000 में राज्य गठन के बाद स्थिति बिल्कुल बदल गई.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

राज्य गठन के बाद सब कुछ अनियंत्रित: जब उत्तराखंड राज्य अलग हुआ तो उस समय देहरादून शहर की आबादी चार लाख से 5 लाख के बीच में थी. अब यह बढ़कर 12 लाख से ज्यादा हो चुकी है. इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि-

History of Dehradun
सहस्त्रधारा में पिकनिक मनाता हुआ एक परिवार, 1960 का चित्र (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

राज्य गठन के बाद देहरादून शहर ने अनियंत्रित विकास देखा और अब यह इतना भयावह हो चुका है कि वापस लौटना बेहद मुश्किल है. देहरादून शहर में लगातार बढ़ती जा रही आबादी नगर निगम के लिए केवल सफाई और मूलभूत सुविधाओं के मैनेजमेंट तक सीमित रह गया है. शहर की सुंदरता और यहां के वातावरण को लेकर नगर निगम की कुछ खास रणनीति देखने को नहीं मिलती है. हमारे देहरादून का इतिहास बेहद समृद्ध है. आज नगर निगम को इस बारे में सोचना चाहिए. यदि आज हम इसको लेकर काम नहीं करेंगे, तो आने वाले कल में हमारे पास बचाने के लिए कुछ नहीं होगा.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेसवे से और बदलेंगे हालात: इतिहासकार लोकेश ओहरी ने कहा कि जिस तरह से देहरादून शहर ने तमाम बड़े बदलाव देखे हैं, इसी तरह से एक और बड़े बदलाव के मुहाने पर आज हम खड़े हैं. वो बदलाव देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे लाएगा. उन्होंने कहा कि इस एक्सप्रेस वे बनने के बाद देहरादून शहर में लोगों की संख्या निश्चित तौर से पहले से और अधिक रफ्तार से बढ़ेगी. लेकिन इसको मैनेज करने की कोई रणनीति आज नजर नहीं आती है. उन्होंने कहा कि आने वाले नए नगर निगम बोर्ड को इस बारे में सोचना होगा और यह आने वाले मेयर और पार्षदों के लिए बड़ी चुनौती बनने जा रहा है.
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देहरादून नगर निगम की कहानी: उत्तराखंड में निकाय चुनाव की सरगर्मियां चल रही हैं. उत्तराखंड के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून के राजनीतिक और प्रशासनिक अतीत को देखें तो आज तस्वीर बेहद अलग नजर आती है. कैसे देहरादून शहर में अंग्रेजों ने एक रिटायरमेंट सिटी की नींव रखी थी और कैसे आज देहरादून शहर विकास के नाम पर अव्यवस्था की भेंट चढ़ रहा है.

अंग्रेजों के समय के देहरादून और 21वीं सदी के देहरादून में अंतर (VIDEO- ETV Bharat)

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History of Dehradun
1960 में ली गई तस्वीर में राजपुर रोड और वृक्षों का दृश्य (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

इसमें 5 हजार से ज्यादा प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. वहीं 100 वार्ड के साथ राज्य के सबसे बड़े नगर निगम देहरादून कि अगर बात की जाए, तो यहां पर 7 लाख से ज्यादा मतदाता 23 जनवरी को देहरादून के नए मेयर और 100 वार्डों के पार्षदों का भविष्य तय करेंगे. देहरादून शहर की शुरुआत कैसे हुई, यहां पर म्यूनिसिपैलिटी का शुरुआती दौर किस तरह का था. यह हमने देहरादून के ही इतिहासकार और हेरिटेज संरक्षक लोकेश ओहरी से जाना.

History of Dehradun
1970 में देहरादून घंटाघर (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

अंग्रेजों ने देहरादून शहर को 'City of green hedges and grey hairs' नाम दिया था: देहरादून नगर पालिका की स्थापना को लेकर हमने इतिहासकार लोकेश ओहरी से बातचीत की. उन्होंने बताया कि-

देहरादून में पहली दफा ब्रिटिश काल में 1883 में जिला बोर्ड का गठन हुआ था. इसमें ज्यादातर सदस्य अंग्रेज थे. इसके बाद 20वीं शताब्दी में प्रवेश करते ही 1901 में देहरादून डिस्टिक बोर्ड को अपग्रेड करके म्यूनिसिपल काउंसिल बना दिया गया. इसके बाद धीरे-धीरे देहरादून शहर में लोगों की आमद बढ़ी और 1938 में जाकर देहरादून म्यूनिसिपैलिटी की स्थापना हुई. जब पहली दफा देहरादून में जिला बोर्ड बनाया गया तब देहरादून एक छोटा शहर हुआ करता था. शुरुआत में ब्रिटिश शासन के दौरान देहरादून के कुछ ही क्षेत्र विकसित हुए जिनमें डालनवाला, राजपुर रोड, परेड ग्राउंड और पलटन बाजार कुछ शुरुआती एस्टेब्लिशमेंट हैं. अंग्रेजों ने शहर को सेवा से रिटायर हुए लोगों के लिए एक हीलिंग सिटी के रूप में शुरू किया था. इसे अक्सर अंग्रेज "City of green hedges and grey hairs" के नाम से बुलाते थे.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

ढाई बीघा में मकान, 150 फलदार पेड़ लगाना था अनिवार्य: इतिहासकार लोकेश ओहरी 18वीं शताब्दी का एक किस्सा साझा करते हुए बताते हैं कि-

History of Dehradun
देहरादून में बहने वाली रायपुर-मालदेवता नहर, 1960 का चित्र (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

1890 में जब देहरादून में अफगान राजा आए तो उनके घोड़े परेड ग्राउंड में घूमा करते थे. डालनवाला में रहने वाले लोगों ने डिस्ट्रिक्ट काउंसिल को शिकायत की थी कि अफगान राजा के घोड़े परेड ग्राउंड में गंदगी करते हैं. 19 वीं शताब्दी का किस्सा बताता है कि देहरादून में रहने वाले लोग शुरू से ही कितने जागरूक थे. खासतौर से शहर की सफाई को लेकर सजग थे. इसके बाद 1901 में म्यूनिसिपल काउंसिल और 1938 में म्यूनिसिपैलिटी बनने के दौरान भी देहरादून में रहन-सहन और आब-ओ-हवा यहां की विशेष खासियत थी.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

देहरादून म्यूनिसिपैलिटी के एक से बढ़कर एक रोचक तथ्य हैं. ऐसे ही एक तथ्य के बारे में इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि-

राजपुर रोड पर घर बनाने के लिए कम से कम ढाई बीघा जमीन पर मकान बनाने की अनुमति थी. इसमें बाउंड्री वॉल लगाने की अनुमति नहीं थी. घर बनवाने वाले को 150 फलदार पेड़ लगाना भी अनिवार्य था. वहीं अगर वर्तमान की बात करें तो देहरादून नगर निगम का पेड़ों और हरियाली से कोई खास वास्ता नहीं दिखाई पड़ता है. यानी साफ है कि अंग्रेजों ने इस शहर को बगीचों और नहरों के शहर के रूप में शुरू किया था, जो आज किसी और दिशा में ही जाता नजर आ रहा है.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

1938 की म्यूनिसिपैलिटी अब कॉस्मोपॉलिटन शहर बना देहरादून: इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि 1938 में देहरादून नगर पालिका की स्थापना के बाद कई आधारभूत बदलाव हुए. नए निर्माण हुए तो वहीं 1947 में आजादी के बाद आजादी के स्मारक के रूप में देहरादून के बलबीर घंटाघर का निर्माण हुआ. इसे लाला बलबीर सिंह ने देश की आजादी की याद में बनाया था. देहरादून के घंटाघर का शिलान्यास सरोजिनी नायडू ने किया था. बाद में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देहरादून के घंटाघर का लोकार्पण किया था. वहीं देहरादून का परेड ग्राउंड एक सिटी सेंटर के रूप में शुरू से ही विकसित हुआ.

History of Dehradun
1946 में देहरादून के एस्ले हॉल में खरीदारी करने आए जर्मन (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

लोकेश ओहरी बताते हैं कि-

1815 में जब पहली बार अंग्रेज देहरादून आए, तो उन्होंने इसी परेड ग्राउंड में अपनी सेना की परेड कराई थी. उसके बाद परेड ग्राउंड में कई तरह की लोकल एक्टिविटी जिसमें मेले, दंगल, सर्कस या फिर अन्य तरह के आयोजन हुआ करते थे. यह एक सिटी सेंटर के रूप में हमेशा से रहा है. देश की आजादी के बाद से लेकर तकरीबन 21वीं शताब्दी की शुरुआत तक देहरादून शहर में बदलाव बेहद धीमी रफ्तार से हुए. ज्यादातर चीजें पहले की तरह थीं. जरूरी निर्माण हुए. ओएनजीसी, देहरादून कैंटोनमेंट पहले से मौजूद थे. इस दौरान निर्माण हुए लेकिन नियंत्रित रूप में. लेकिन साल 2000 में राज्य गठन के बाद स्थिति बिल्कुल बदल गई.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

राज्य गठन के बाद सब कुछ अनियंत्रित: जब उत्तराखंड राज्य अलग हुआ तो उस समय देहरादून शहर की आबादी चार लाख से 5 लाख के बीच में थी. अब यह बढ़कर 12 लाख से ज्यादा हो चुकी है. इतिहासकार लोकेश ओहरी बताते हैं कि-

History of Dehradun
सहस्त्रधारा में पिकनिक मनाता हुआ एक परिवार, 1960 का चित्र (Photo courtesy: Historian Lokesh Ohri)

राज्य गठन के बाद देहरादून शहर ने अनियंत्रित विकास देखा और अब यह इतना भयावह हो चुका है कि वापस लौटना बेहद मुश्किल है. देहरादून शहर में लगातार बढ़ती जा रही आबादी नगर निगम के लिए केवल सफाई और मूलभूत सुविधाओं के मैनेजमेंट तक सीमित रह गया है. शहर की सुंदरता और यहां के वातावरण को लेकर नगर निगम की कुछ खास रणनीति देखने को नहीं मिलती है. हमारे देहरादून का इतिहास बेहद समृद्ध है. आज नगर निगम को इस बारे में सोचना चाहिए. यदि आज हम इसको लेकर काम नहीं करेंगे, तो आने वाले कल में हमारे पास बचाने के लिए कुछ नहीं होगा.
-लोकेश ओहरी, इतिहासकार-

देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेसवे से और बदलेंगे हालात: इतिहासकार लोकेश ओहरी ने कहा कि जिस तरह से देहरादून शहर ने तमाम बड़े बदलाव देखे हैं, इसी तरह से एक और बड़े बदलाव के मुहाने पर आज हम खड़े हैं. वो बदलाव देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस वे लाएगा. उन्होंने कहा कि इस एक्सप्रेस वे बनने के बाद देहरादून शहर में लोगों की संख्या निश्चित तौर से पहले से और अधिक रफ्तार से बढ़ेगी. लेकिन इसको मैनेज करने की कोई रणनीति आज नजर नहीं आती है. उन्होंने कहा कि आने वाले नए नगर निगम बोर्ड को इस बारे में सोचना होगा और यह आने वाले मेयर और पार्षदों के लिए बड़ी चुनौती बनने जा रहा है.
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Last Updated : Jan 11, 2025, 2:26 PM IST
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