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पिथौरागढ़ में जल्द बनेगा हाई एल्टीट्यूड लैब, हिमालयी क्षेत्रों की मिलेगी सटीक जानकारी - Pithoragarh news

गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान पंचाचूली के मेवला ग्लेशियर में हाई एल्टीट्यूड लैब बनाया जाएगा. 3000 मीटर की ऊंचाई पर बनने वाली इस लैब की मदद से वैज्ञानिकों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेगी.

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जल्द बनेगा हाई एल्टीट्यूड लैब
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Published : Oct 9, 2020, 8:58 PM IST

पिथौरागढ़: उच्च हिमालयी क्षेत्रों के अध्ययन के लिए पिथौरागढ़ जिले में पहली हाई एल्टीट्यूड लैब बनने जा रही है. जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान द्वारा पंचाचूली की तलहटी में 3 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित मेवला ग्लेशियर में लैब स्थापित की जाएगी. हाई एल्टीट्यूड लैब बनने के बाद ग्लेशियरों के अध्ययन में मदद मिलेगी. साथ ही जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर की भी जानकारी मिलेगी.

लैब में नई तकनीक के उपकरण लगाये जाएंगे, जिसकी मदद से विशेषज्ञ साल भर की जानकारियां जुटा पाएंगे. हिमालय अध्ययन मिशन के तहत बन रही उच्च शिखरीय लैब के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से करीब 3 करोड़ की धनराशि भी जारी हो चुकी है. इस साल के अंत तक लैब स्थापित हो जाएगी और उच्च हिमालयी क्षेत्रों की सटीक जानकारियां मिलनी शुरू हो जाएगी.

पिथौरागढ़ में जल्द बनेगा हाई एल्टीट्यूड लैब.

ये भी पढ़ें: चारधाम परियोजना का तीसरा पैकेज जल्द होगा पूरा, देवप्रयाग से स्वीत पुल तक सरपट दौड़ेंगे वाहन

गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान पंचाचूली के मेवला ग्लेशियर में हाई एल्टीट्यूड लैब बनाया जाएगा. 3000 मीटर की ऊंचाई पर बनने वाली इस लैब की मदद से वैज्ञानिकों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेगी. इस लैब के शुरू होने से ग्लेशियर से संबंधित सारी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध हो जायेगी.

हाई एल्टीट्यूड लैब बनने से ये फायदे होंगे

  1. ग्लेशियर के पिघलने की जानकारी मिल सकेगी.
  2. ग्लेशियर के आकार में परिवर्तन की जानकारी मिलेगी.
  3. ग्लेशियर की मोटाई का अध्ययन करने में मदद मिलेगी.
  4. ग्लेशियर के आगे पीछे जाने की गति जानने में मदद मिलेगी.
  5. ग्लेशियर से कितना पानी मिल रहा, इसकी जानकारी मिलेगी.
  6. पानी की गुणवत्ता और बहाव का पता चल सकेगा.
  7. ग्लोबल वार्मिंग का अध्ययन हो सकेगा.

जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान के डायरेक्टर डॉ. आरएस रावल ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सबसे ज्यादा है, जिसके आंकड़े जुटाने में हाई एल्टीट्यूड लैब काफी लाभकारी साबित होगी.

वहीं, राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अफसर डॉक्टर किरीट कुमार ने बताया कि लैब में आधुनिक उपकरण लगाए जा रहे है. जिसकी मदद से साल भर की जानकारियां ऑनलाइन मिल सकेंगी. इस साल के अंत तक लैब स्थापित कर ली जाएगी और जानकारियां मिलनी शुरू हो जाएंगी.

पिथौरागढ़: उच्च हिमालयी क्षेत्रों के अध्ययन के लिए पिथौरागढ़ जिले में पहली हाई एल्टीट्यूड लैब बनने जा रही है. जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान द्वारा पंचाचूली की तलहटी में 3 हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित मेवला ग्लेशियर में लैब स्थापित की जाएगी. हाई एल्टीट्यूड लैब बनने के बाद ग्लेशियरों के अध्ययन में मदद मिलेगी. साथ ही जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर की भी जानकारी मिलेगी.

लैब में नई तकनीक के उपकरण लगाये जाएंगे, जिसकी मदद से विशेषज्ञ साल भर की जानकारियां जुटा पाएंगे. हिमालय अध्ययन मिशन के तहत बन रही उच्च शिखरीय लैब के निर्माण के लिए केंद्र सरकार से करीब 3 करोड़ की धनराशि भी जारी हो चुकी है. इस साल के अंत तक लैब स्थापित हो जाएगी और उच्च हिमालयी क्षेत्रों की सटीक जानकारियां मिलनी शुरू हो जाएगी.

पिथौरागढ़ में जल्द बनेगा हाई एल्टीट्यूड लैब.

ये भी पढ़ें: चारधाम परियोजना का तीसरा पैकेज जल्द होगा पूरा, देवप्रयाग से स्वीत पुल तक सरपट दौड़ेंगे वाहन

गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान पंचाचूली के मेवला ग्लेशियर में हाई एल्टीट्यूड लैब बनाया जाएगा. 3000 मीटर की ऊंचाई पर बनने वाली इस लैब की मदद से वैज्ञानिकों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेगी. इस लैब के शुरू होने से ग्लेशियर से संबंधित सारी जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध हो जायेगी.

हाई एल्टीट्यूड लैब बनने से ये फायदे होंगे

  1. ग्लेशियर के पिघलने की जानकारी मिल सकेगी.
  2. ग्लेशियर के आकार में परिवर्तन की जानकारी मिलेगी.
  3. ग्लेशियर की मोटाई का अध्ययन करने में मदद मिलेगी.
  4. ग्लेशियर के आगे पीछे जाने की गति जानने में मदद मिलेगी.
  5. ग्लेशियर से कितना पानी मिल रहा, इसकी जानकारी मिलेगी.
  6. पानी की गुणवत्ता और बहाव का पता चल सकेगा.
  7. ग्लोबल वार्मिंग का अध्ययन हो सकेगा.

जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण एवं विकास संस्थान के डायरेक्टर डॉ. आरएस रावल ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सबसे ज्यादा है, जिसके आंकड़े जुटाने में हाई एल्टीट्यूड लैब काफी लाभकारी साबित होगी.

वहीं, राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के नोडल अफसर डॉक्टर किरीट कुमार ने बताया कि लैब में आधुनिक उपकरण लगाए जा रहे है. जिसकी मदद से साल भर की जानकारियां ऑनलाइन मिल सकेंगी. इस साल के अंत तक लैब स्थापित कर ली जाएगी और जानकारियां मिलनी शुरू हो जाएंगी.

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