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कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम, पर्व की ये है रोचक कथा

प्रसिद्ध घुघुतिया त्योहार कुमाऊं के प्रसिद्ध त्योहारों में एक है. जिसे उत्तरायणी के मौके पर मनाया जाता है. गढ़वाल क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'मकरैणी' के रूप में मनाते हैं. वहीं, कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'उत्तरैणी' या 'घुघतिया' त्योहार के रूप में मनाया जाता है.

ghughuti festival
घुघुतिया त्यौहार
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Published : Jan 15, 2020, 10:44 AM IST

Updated : Jan 15, 2020, 1:13 PM IST

हल्द्वानी/बेरीनाग: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां की आस्था, लोक संस्कृति, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार और विरासत इस पावन धरा को अपनी अलग पहचान देते हैं. यहां पर हर साल और हर महीने अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक माघ महीने में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार घुघतिया भी शामिल है. जो उत्तरायणी (मकर संक्रांति) के दिन धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. आइए आपको घुघुतिया त्योहार के बारे में विस्तार से बताते हैं...

कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम.

प्रसिद्ध घुघुतिया त्योहार कुमाऊं के प्रसिद्ध त्योहारों में एक है. जिसे उत्तरायणी के मौके पर मनाया जाता है. गढ़वाल क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'मकरैणी' के रूप में मनाते हैं. वहीं, कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'उत्तरैणी' या 'घुघतिया' त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों में आटे और घी से घुघुतिया बनाते हैं. बच्चे इस घुघुतिया को कौवों को खिलाते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं.

इस तरह से तैयार किया जाता है घुघुतिया

घुघुतिया बनाने के लिए सबसे पहले गुड़ के पानी से आटा गूंधा जाता है. आटा गूंधने के बाद विशेष आकृति का व्यंजन यानी घुघुते बनाए जाते हैं. जिसे तेल में तली जाती है. घुघुतिया के साथ खजूरे, तलवार, डमरू आदि आकृतियां भी बनाई जाती है. घुघुते, खजूरे, तलवार, डमरू, फल आदि की माला बनाकर बच्चे उत्तरैणी (मकर संक्रांति) की सुबह सूर्य उगते ही कौवों को बुलाते हैं. जहां पर कौवों के लिए बनाई गई घुघते और पूरी को छत पर रखा जाता है. जिसे कौवे खा लेते हैं.

ये भी पढ़ेंः कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार का है विशेष महत्व, पहले कौवे को खिलाया फिर खुद खाया जाता है घूंघत

घुघुतिया की पौराणिक कथा

इस घुघतिया त्योहार को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोक कथा है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कुमाऊं में चंद्रवेश के राजा राज करते थे. उस समय राजा की कोई संतान नहीं थी. एक दिन राजा और रानी बागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं की. कुछ समय के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भय रखा. जबकि, मां प्यार से घुघुती के नाम से पुकारती थी और उसके गले में एक माला भी डाली थी.

जब घुघुती परेशान करता तो मां उस दौरान 'काले कौवा काले घुघती की माला खाले..' बोलकर डराती थी. ऐसा करने पर कौवे भी आ जाया करते थे. धीरे-धीरे घुघुती और कौओं की दोस्ती हो गई. उधर, दूसरी ओर राजा का एक मंत्री घुघुती को मारकर राजगद्दी हासिल करना चाहता था. एक बार षडयंत्र के तहत मंत्री घुघुती को उठाकर जंगल ले गया. तभी एक कौवे ने मंत्री को घुघुती को ले जाते हुए देख लिया. जिसके बाद कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा.

उसे कौवे की अवाज सुनकर बाकी कौवे भी जमा हो गए. सभी कौवों ने मंत्री पर अपनी नुकली चोचों से हमला कर घायल कर दिया. जबकि, घुघुती की मां समेत राजमहल में घुघुती के लापता होने से सभी परेशान हो गए थे. बाद में कौवों की मदद से घुघुती मिल गया. तब इस खुशी में घुघुती के घर में बहुत सारे पकवान बनाए गए. जहां कौवों को बुलाकर घुघुती ने एक पकवान खिलाए. उसके बाद से ही यह त्योहार मनाया जाने लगा.

वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि आधुनिकता में भी इस त्योहार का महत्व कम नहीं हुआ है. अभी भी लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. सरकार को इस त्योहार बढ़ावा और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए. जिससे पहाड़ की संस्कृति और पारंपरिक घुघुतिया त्योहार को बचाया जा सके.

हल्द्वानी/बेरीनाग: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां की आस्था, लोक संस्कृति, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार और विरासत इस पावन धरा को अपनी अलग पहचान देते हैं. यहां पर हर साल और हर महीने अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक माघ महीने में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार घुघतिया भी शामिल है. जो उत्तरायणी (मकर संक्रांति) के दिन धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. आइए आपको घुघुतिया त्योहार के बारे में विस्तार से बताते हैं...

कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार की धूम.

प्रसिद्ध घुघुतिया त्योहार कुमाऊं के प्रसिद्ध त्योहारों में एक है. जिसे उत्तरायणी के मौके पर मनाया जाता है. गढ़वाल क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'मकरैणी' के रूप में मनाते हैं. वहीं, कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'उत्तरैणी' या 'घुघतिया' त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों में आटे और घी से घुघुतिया बनाते हैं. बच्चे इस घुघुतिया को कौवों को खिलाते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं.

इस तरह से तैयार किया जाता है घुघुतिया

घुघुतिया बनाने के लिए सबसे पहले गुड़ के पानी से आटा गूंधा जाता है. आटा गूंधने के बाद विशेष आकृति का व्यंजन यानी घुघुते बनाए जाते हैं. जिसे तेल में तली जाती है. घुघुतिया के साथ खजूरे, तलवार, डमरू आदि आकृतियां भी बनाई जाती है. घुघुते, खजूरे, तलवार, डमरू, फल आदि की माला बनाकर बच्चे उत्तरैणी (मकर संक्रांति) की सुबह सूर्य उगते ही कौवों को बुलाते हैं. जहां पर कौवों के लिए बनाई गई घुघते और पूरी को छत पर रखा जाता है. जिसे कौवे खा लेते हैं.

ये भी पढ़ेंः कुमाऊं में घुघुतिया त्योहार का है विशेष महत्व, पहले कौवे को खिलाया फिर खुद खाया जाता है घूंघत

घुघुतिया की पौराणिक कथा

इस घुघतिया त्योहार को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोक कथा है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कुमाऊं में चंद्रवेश के राजा राज करते थे. उस समय राजा की कोई संतान नहीं थी. एक दिन राजा और रानी बागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं की. कुछ समय के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भय रखा. जबकि, मां प्यार से घुघुती के नाम से पुकारती थी और उसके गले में एक माला भी डाली थी.

जब घुघुती परेशान करता तो मां उस दौरान 'काले कौवा काले घुघती की माला खाले..' बोलकर डराती थी. ऐसा करने पर कौवे भी आ जाया करते थे. धीरे-धीरे घुघुती और कौओं की दोस्ती हो गई. उधर, दूसरी ओर राजा का एक मंत्री घुघुती को मारकर राजगद्दी हासिल करना चाहता था. एक बार षडयंत्र के तहत मंत्री घुघुती को उठाकर जंगल ले गया. तभी एक कौवे ने मंत्री को घुघुती को ले जाते हुए देख लिया. जिसके बाद कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा.

उसे कौवे की अवाज सुनकर बाकी कौवे भी जमा हो गए. सभी कौवों ने मंत्री पर अपनी नुकली चोचों से हमला कर घायल कर दिया. जबकि, घुघुती की मां समेत राजमहल में घुघुती के लापता होने से सभी परेशान हो गए थे. बाद में कौवों की मदद से घुघुती मिल गया. तब इस खुशी में घुघुती के घर में बहुत सारे पकवान बनाए गए. जहां कौवों को बुलाकर घुघुती ने एक पकवान खिलाए. उसके बाद से ही यह त्योहार मनाया जाने लगा.

वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि आधुनिकता में भी इस त्योहार का महत्व कम नहीं हुआ है. अभी भी लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. सरकार को इस त्योहार बढ़ावा और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए. जिससे पहाड़ की संस्कृति और पारंपरिक घुघुतिया त्योहार को बचाया जा सके.

Intro:घुघुतिया त्योहार पर विशेष रिपोर्ट Body:टांप-बेरीनाग।
स्लग-घुघुतिया त्यौहार खास रिपोर्ट
एंकर-उŸाराखंड प्रदेश अपने रीति रिवाजों और त्यौहारों के लिए देश ही पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां पर वर्ष भर हर माह में अलग अलग त्यौहारों का आयोजन होता है। कुमाऊं क्षेत्र में माघ माह के शुरू होने के दिन घुघतिया त्यौहार भी प्रमुख त्यौहारों में से है। इस त्यौहार को बच्चों से लेकर बुर्जुगों को वर्ष भर में इंतजार रहता है।
वीओ 01- इस घुघतिया त्यौहार को मनाने के पिदे एक लोकप्रिय लोकथा है। कुमाऊ में चन्द्रवंश के राजा राज करते थे। उस समय राजा कोई संतान नही थी। राजा और उसकी पत्नी ने बागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गय और संतान प्राप्ति की मनोकमाना की। उसके कुछ समय के बाद राजा को पुत्र रतन की प्राप्ति हुई। राजा अपने पुत्र का नाम निर्भय रखा और मां प्यार से घुघती के नाम से पुकारती थी। घुघती के गले में एक माला डाली हुई थी। जब घुघती परेशान करता तो मां उस दौरान काले कौआ काले घुघती की माला खाले बोलकर डराती थी। ऐसा करने पर कौऐ भी आ जाया करते थे। धीरे धीरे घुघुती और कौओं की दोस्ती हो गयी। वही दूसरी और एक मंत्री घुघती को मारकर राजगददी प्राप्त करना चाहता था। एक बार षडयत के तहत घुघुती जब खेल रहा था तो मंत्री ने उसे उठाकर जंगल ले जा रहा था। तभी एक कौऐ ने मंत्री को घुघुती को ले जाते हुए देख लिया। जोर जोर से कांव काव करने लगा। कौऐ की अवाज सुनकर और कौऐ भी जमा हो गये जिस पर कुओं ने मंत्री पर कौओं ने नुकली चोचों से हमला कर घायल कर दिया। घुघुती की मां सहित राजमहल में घुघती के लापता होने से सब परेशान हो गये। बाद कौओं की मदद से घुघुती मिल गया। तब इस खुशी में घुघुती के घर में बहुत सारे पकवान बनाये गये। कौओं को बुलाकर घुघुती ने एक पकवान खिलाये ।तब से यह त्यौहार मनाया जाने लगा।
बाइट 1- कौनी पाठक लोक कलाकार नीली जाकेट और टोपी में गोल गोल छल्ले वाली
वीओ 02-घुघुते बनाने के लिए घरों में गुड के पानी से आटा गूथने के बाद विशेष प्रकार का व्यजंन घुघुते बनाये जाते है जिससे विशेष आकृति में बनकार तेल में तली जाती है। इसके साथ खजूरे,तलवार,डमरू, आदि आकृतिया भी बनाई जाती है। घुघुते खजूरे तलवार डमरू फल आदि की माला बनाकर बच्चे माघ माह के सुबह सुबह सूर्य उगते ही कौओं को बुलाते है और कुऐं के लिए अलग से घुघते और पूरी बनाई जाती है। जिससे छत की ऊचाई पर रखा जाता है। जिससे कुंआ खा लेता है।
बाइट 2-रेशमी पंत गृहणी लाल रंग का हुड और पिछे से दरवाजा
वीओ 03- घुघुतिया त्यौहार आज कुमाऊ के प्रसिद्ध त्यौहारों में एक है उŸारायणी के मौके पर मनाये जाने वाला यह त्यौहार आज भी लोगों में उत्साह पैदा करता है। कुमाऊ के हर में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।लेकिन धीरे धीरे पहाडो से हो रहे पलायन के कारण यह त्यौहार आने वाले समय में विलुप्त भी हो सकता है।
बाइट 3-आशा भैसोडा सभासद नगर पंचायत लाल बनियान पीछे प्लेन दीवार

फाइलन वीओ-आधुनिक समय में चैकाचैध के बाद यह त्यौहार जिस तरह से मनाया जा रहा है सरकार को इस त्यौहार को मनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए। जिससे पहाड की संस्कृति और सदियों से मनाये जा रहे त्यौहारों को बचाया जा सके।
बेरीनाग से प्रदीप महरा की खास रिपोर्ट Conclusion:उत्साह
Last Updated : Jan 15, 2020, 1:13 PM IST
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