हल्द्वानी/बेरीनाग: उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां की आस्था, लोक संस्कृति, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार और विरासत इस पावन धरा को अपनी अलग पहचान देते हैं. यहां पर हर साल और हर महीने अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं. इन्हीं में से एक माघ महीने में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार घुघतिया भी शामिल है. जो उत्तरायणी (मकर संक्रांति) के दिन धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. आइए आपको घुघुतिया त्योहार के बारे में विस्तार से बताते हैं...
प्रसिद्ध घुघुतिया त्योहार कुमाऊं के प्रसिद्ध त्योहारों में एक है. जिसे उत्तरायणी के मौके पर मनाया जाता है. गढ़वाल क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'मकरैणी' के रूप में मनाते हैं. वहीं, कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति को 'उत्तरैणी' या 'घुघतिया' त्योहार के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों में आटे और घी से घुघुतिया बनाते हैं. बच्चे इस घुघुतिया को कौवों को खिलाते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं.
इस तरह से तैयार किया जाता है घुघुतिया
घुघुतिया बनाने के लिए सबसे पहले गुड़ के पानी से आटा गूंधा जाता है. आटा गूंधने के बाद विशेष आकृति का व्यंजन यानी घुघुते बनाए जाते हैं. जिसे तेल में तली जाती है. घुघुतिया के साथ खजूरे, तलवार, डमरू आदि आकृतियां भी बनाई जाती है. घुघुते, खजूरे, तलवार, डमरू, फल आदि की माला बनाकर बच्चे उत्तरैणी (मकर संक्रांति) की सुबह सूर्य उगते ही कौवों को बुलाते हैं. जहां पर कौवों के लिए बनाई गई घुघते और पूरी को छत पर रखा जाता है. जिसे कौवे खा लेते हैं.
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घुघुतिया की पौराणिक कथा
इस घुघतिया त्योहार को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोक कथा है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कुमाऊं में चंद्रवेश के राजा राज करते थे. उस समय राजा की कोई संतान नहीं थी. एक दिन राजा और रानी बागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति की मनोकामनाएं की. कुछ समय के बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भय रखा. जबकि, मां प्यार से घुघुती के नाम से पुकारती थी और उसके गले में एक माला भी डाली थी.
जब घुघुती परेशान करता तो मां उस दौरान 'काले कौवा काले घुघती की माला खाले..' बोलकर डराती थी. ऐसा करने पर कौवे भी आ जाया करते थे. धीरे-धीरे घुघुती और कौओं की दोस्ती हो गई. उधर, दूसरी ओर राजा का एक मंत्री घुघुती को मारकर राजगद्दी हासिल करना चाहता था. एक बार षडयंत्र के तहत मंत्री घुघुती को उठाकर जंगल ले गया. तभी एक कौवे ने मंत्री को घुघुती को ले जाते हुए देख लिया. जिसके बाद कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा.
उसे कौवे की अवाज सुनकर बाकी कौवे भी जमा हो गए. सभी कौवों ने मंत्री पर अपनी नुकली चोचों से हमला कर घायल कर दिया. जबकि, घुघुती की मां समेत राजमहल में घुघुती के लापता होने से सभी परेशान हो गए थे. बाद में कौवों की मदद से घुघुती मिल गया. तब इस खुशी में घुघुती के घर में बहुत सारे पकवान बनाए गए. जहां कौवों को बुलाकर घुघुती ने एक पकवान खिलाए. उसके बाद से ही यह त्योहार मनाया जाने लगा.
वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि आधुनिकता में भी इस त्योहार का महत्व कम नहीं हुआ है. अभी भी लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. सरकार को इस त्योहार बढ़ावा और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए. जिससे पहाड़ की संस्कृति और पारंपरिक घुघुतिया त्योहार को बचाया जा सके.