पिथौरागढ़: रक्षाबंधन का बाजार रंग-बिरंगी राखियों से सज गया है. बाजार में हर साल बड़े पैमाने पर चाइना की बनी प्लास्टिक राखियों का कोरोबार होता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रही है. क्योंकि, चाइना की आर्टिफिशियल राखियों को टक्कर देने के लिए बाजार में ईको फ्रेंडली राखियां उपलब्ध है, जो स्थानीय उत्पादों से ही बनाई जा रही है.
इन ईको फ्रेंडली राखियों को बनाने का काम रही है पिथौरागढ़ के महिला समूह. इन राखियों की डिमाड़ अब स्थानीय बाजार के साथ देश और प्रदेश के अन्य बाजारों में बढ़ गई है. दरअसल, जीबी पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान के सहयोग से पिथौरागढ़ की उत्तरापथ संस्था ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम किया है. पिथौरागढ़ के सीमांत इलाकों की महिलाएं रिंगाल से राखियां तैयार कर रही हैं. जो आर्टिफिशियल राखियों से काफी सस्ती है.
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इन राखियों को तैयार कर महिलाएं अपना महीने भर का खर्चा आराम से निकाल रही है. बिना मशीनों के इन राखियों को बनाने में मेहनत भी अधिक लग रही है. ईको फ्रेंडली राखियों की डिमांड दिल्ली, मुम्बई और बंगलुरू जैसे शहरों से जमकर आ रही है. आलम ये है कि डिमांड के मुकाबले इन राखियों की सप्लाई नहीं हो पा रही है.
उत्तरापंथ संस्था इन राखियों के लिए मार्केट तलाशने का काम कर रही है. असल में जीबी पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान, नेशनल मिशन ऑन हिमालयन स्टडीज तहत लोगों को रोजगार से जोड़ रहा है. इस मिशन का पहला मकसद स्थानीय उत्पादों से माल तैयार कर लोगों को स्वाभलंभी बनाना है.