देहरादून: उत्तराखंड राज्य के सीमांत क्षेत्र नेपाल और चीन से जुड़े होने के चलते काफी अहम माने जाते रहे हैं. इन्हीं में पिथौरागढ़ जिला काफी अहम है जो चीन और नेपाल दोनों ही सीमाओं से जुड़ता है. लिहाजा इस पिथौरागढ़ का सामरिक महत्व (Strategic Significance of Pithoragarh) आसानी से समझा जा सकता है. लेकिन इन दिनों चर्चा में सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Supreme Court decision) है, जिसमें पिथौरागढ़ के 123 गांव इको सेंसिटिव जोन (123 villages of Pithoragarh included in Eco Sensitive Zone) में शामिल किये गये हैं.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई के दौरान पिथौरागढ़ के अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य (Askot Wildlife Sanctuary) के 20 किलोमीटर क्षेत्र तक इको सेंसेटिव जोन करने के आदेश दिए हैं. इस फैसले के आते ही क्षेत्रीय लोगों ने इस पर अपना विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया है. विभिन्न गांवों को इससे बाहर रखे जाने की मांग शुरू कर दी है. लोगों ने इसे काला कानून बताकर फौरन हटाए जाने की मांग की है.
वैसे पिथौरागढ़ में विकास कार्य को बाधित करने के आरोपों के साथ स्थानीय लोगों का ऐसा विरोध पहली बार नहीं हुआ है. साल 1985 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने भी क्षेत्र में अस्कोट अभयारण्य घोषित किया था. इसमें डीडीहाट मुनस्यारी और धारचूला के करीब 111 गांव अस्कोट वन्य जीव अभयारण्य में शामिल होने के कारण यहां विकास कार्य पूरी तरह ठप हो गया.
जिसको लेकर साल 2014 में स्थानीय विधायक के विरोध के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इन गांवों को अभयारण्य से मुक्त किया. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर क्षेत्र में विकास कार्य ठप होने की आशंका के साथ लोगों का विरोध शुरू हो गया है. इसी बात को समझते हुए क्षेत्रीय विधायक हरीश धामी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात की थी. उन्होंने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार द्वारा पैरवी करने की मांग की थी.
हरीश धामी ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उनकी बात को सुना है. इस पर अधिकारियों को निर्देश भी दिए हैं. हरीश धामी ने कहा कि यदि ऐसा नहीं होता है तो वह सड़कों पर आकर विरोध करने से भी पीछे नहीं हटेंगे.
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इको सेंसिटिव जोन क्या हैं?: पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार घोषित किए गए हैं. इन्हें राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) में शामिल किया गया था. राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्य की सीमाओं के 10 किमी को इको फ्रैजाइल जोन या इको सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) के रूप में अधिसूचित किया जाना है.
इको सेंसिटिव जोन में क्या अनुमति और क्या प्रतिबंधित है?: वाणिज्यिक खनन, सॉमिल्स- ये धूल उत्पन्न करते हैं जो जैव विविधता को नुकसान पहुंचा सकते हैं. लकड़ी आदि का व्यावसायिक उपयोग. पेड़ों की कटाई. होटल और रिसॉर्ट की स्थापना. प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग. विद्युत केबलों का निर्माण. कृषि प्रणाली में भारी बदलाव. भारी प्रौद्योगिकी को अपनाना. कीटनाशकों का उपयोग. सड़कों का चौड़ीकरण नहीं कर सकते हैं.
अनुमति वाली गतिविधियां: चल रही कृषि या बागवानी प्रथाएं. वर्षा जल संचयन. जैविक खेती कर सकते हैं. कुल मिलाकर इसका निष्कर्ष ये है कि जिस क्षेत्र को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया गया है, उसके मूल स्वरूप से कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.
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