बेरीनाग: प्रदेश गठन के बाद सरकारें भले ही पहाड़ों में बसे लोगों को उद्योग और स्वरोजगार देने के लाखों दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है. जिसकी बानगी बेरीनाग तहसील में देखने को मिली. जहां ताम्र शिल्प से अपनी आजीविका चलाने वाले परिवारों के लिए आज भरण-पोषण करना तक मुश्किल हो गया है. पर्वतीय क्षेत्र के शिल्पी इस कला में निपुण रहे हैं. जिनके बनाए बर्तनों की खासी डिमांड रहती है. लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध ने आज उनके स्वरोजगार की चमक कम कर दी है.
गौर हो कि आधुनिकता के इस दौर में लोग आकर्षक प्लास्टिक से बने बर्तनों को अपनी दैनिकचर्या में शामिल कर रहे हैं. जिसके चलते बाजारों से तांबे के बर्तन विलुप्त होते जा रहे हैं. जबकि तांबे के बर्तनों को स्वास्थ्य के लिहाज से लाभदायक माना जाता रहा है. आज के दौर में लोग इन्हें नजर अंदाज कर खुद के स्वास्थ के साथ-साथ पर्यावरण से भी खिलवाड़ कर रहे हैं. ऐसे में पहाड़ी संस्कृति की ताम्र शिल्प कला की धरोहर गुम होती जा रही है. साथ ही तांबे के कारीगरों के लिए अपने परिवार का भरण- पोषण करना भी मुशकिल हो गया है.
आधुनिकता पड़ रही भारी
जानकारी के अनुसार लगभग 70 प्रतिशत कारीगरों ने ताम्र शिल्प कला का कार्य करना बंद कर दिया है. पूर्व में कई स्थानों पर सहकारी समिति के नाम से कई कार्यशाएं बनाई गई थी. लेकिन उपेक्षा के चलते वे सभी बंद हो गई हैं. जबकि पर्वतीय क्षेत्रों के निवासी दशकों से शिल्प धातु में कार्य करने में निपुण रहे हैं. विकास खंड बेरीनाग में ही खनात और उडियारी गांव में एक दर्जन परिवार पिछले कई दशकों से तांबे का बर्तन बनाने का कार्य कर रहे हैं. जो इनकी आजीविका का प्रमुख स्रोत है. लेकिन सरकार की बेरूखी और आधुनिकता का चोला पहने लोगों की मानसिकता ने इस कला को विलुप्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
प्लास्टिक का बढ़ा यूज
बावजूद इसके जागरूकता से भरे इस दौर में लोग तांबे के इन गुणों को दरकिनार कर प्लास्टिक और अन्य धातुओं से बने बर्तनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जो स्वास्थ के साथ-साथ पर्यावरण को भी भरपुर नुकसान पहुंचा रहा है. साथ ही ताम्र शिल्प कला से जुड़े कारीगरों के सामने आजिवीका चलाने के लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में सरकार के साथ-साथ जनता को भी इस गुणकारी धातु के इस्तेमाल और निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए. ताकि लोगों को एक शानदार जीवन शैली के साथ-साथ इसके कारीगरों को भी रोजगार मिल सकेगा साथ ही पहाड़ों में पलायन को रोकने में भी मदद मिलेगी.
तांबे के बर्तन के ये हैं फायदे
- तांबा यानि कॉपर इस धातु के इस्तेमाल से शरीर में कॉपर की कमी पूरी होती है. तांबे के बर्तन में रखा पानी शुद्ध माना जाता है. जो डायरिया, पीलिया, डिसेंट्री जैसी बीमारी इजात करने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने की शक्ति रखता है.
- तांबे में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने से शरीर में दर्द, ऐंठन और सूजन की समस्या नहीं होती. ऑर्थराइटिस की समस्या से निपटने में भी तांबे के बर्तन में रखा पानी अत्यधिक फायदेमंद होता है.
- तांबे में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट कैंसर से लड़ने की क्षमता में वृद्धि करते हैं. अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार तांबे में कैंसर विरोधी तत्व मौजूद होते हैं. जो शरीर में कैंसर की शुरुआत रोकने में मदद करता है.
- तांबे के बर्तन में रखा पानी पाना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है. प्रतिदिन इसका सेवन करने से पेट दर्द, गैस, एसिडिटी और कब्ज जैसी परेशानियों से निजात मिलता है. साथ ही यह लिवर और किडनी को भी स्वस्थ रखता है.
- तांबा अपने एंटी-बैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटी इंफ्लेमेट्री गुणों के लिए भी जाना जाता है. यह शरीर के आंतरिक और बाहरी घावों को भी जल्द भरने सहायक होता है.
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तांबे में मौजूद मिनरल्स थॉयराइड की समस्या से भी निजात दिलाते हैं. साथ ही तांबे में उपस्थित एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व बढ़ती उम्र के निशान को कम कर आपको जवां बनाए रखता है. साथ ही यह फ्री रैडिकल में भी बेहद लाभदायक है. जो त्वचा को झुर्रियों, बारीक लाइनों और दाग-धब्बों से बचाकर स्वस्थ और जवां बनाए रखता है.
सरकार की अनदेखी पड़ रही भारी
कारीगर भूपेंद्र प्रसाद ने बताया कि आज की विपरीत परिस्थितियों में तांबे का कार्य चुनौती पूर्ण बना गया है. लेकिन पैतृक व्यवसाय होने के कारण कुछ लोग इसे जिंदा रखे हुए हैं. यदि सरकार मदद करे तो इस कला को आगे बढ़ाया जा सकता है. लेकिन वे कई बार सरकार को मदद के लिए पत्र भेज चुके हैं. लेकिन सरकार ने आज तक कोई कदम नहीं बढ़ाया. उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत के बाद वो तांबे को बर्तन का रूप देते हैं. लेकिन उनकी मेहनत की उन्हें सही कीमत ही नहीं मिल पाती है. यदि सरकार कोई अच्छा बाजार उपल्ब्ध कराए तो इस विलुप्त होती जा रही कला को फिर से जीवित किया जा सकता है.
क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि
विधायक मीना गंगोला ने बताया कि तांबे के बर्तनों को पहाड़ों में शुद्ध मना जाता है. तांबे से बने गागर, तौला, पराम, सुरई, पंच पात्र, दीप दान, वाद्य यंत्र, तुतरी, ढोल-नगाडे सहित घर के सजावटी समान की अलग ही पहचान हुआ करती थी.यही नहीं पहाड़ों में इनका प्रयोग सभी शुभ कार्यों में किया जाता है. चाहे वो शादी हो या धार्मिक आयोजन सभी में ताबें के बर्तनों में ही खाना बनाया जाता है. लेकिन यह प्रचलन धीरे-धीरे खत्म होने लगा है. वहीं विधायक मीना गंगोला और सांसद अजय टम्टा का कहना है वे तांबे का काम करने वाले कारीगरों को सरकार से मदद दिलाने के प्रयास करेंगे.