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देश के वो गांव जहां आज भी एक मिनट की कॉल के देने पड़ते हैं 25 रुपये - indo nepal kalapani dispute

सीमांत क्षेत्र के लोगों के लिए सेटेलाइन फोन जी का जंजाल बनते जा रहे हैं. सेटेलाइट फोन की एक कॉल 25 से 30 रुपये की होने के कारण ग्रामीण एक बार फिर नेपाल की सिम खरीदने पर मजबूर हो गए हैं.

Satellite Phone
पिथौरागढ़ सेटेलाइट फोन
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Published : Jul 10, 2020, 3:28 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 5:44 PM IST

पिथौरागढ़: चीन और नेपाल सीमा से लगे गांवों के लिए शुरू की गई सेटेलाइट फोन सेवा खासी महंगी साबित हो रही है. आलम ये है कि 1 मिनट की कॉल करने के लिए उपभोक्ताओं को 25 से 30 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. महंगी सेटेलाइट फोन सेवा से दारमा, व्यास, चौदास और जौहार घाटी के ग्रामीणों में खासी नाराजगी है.

सीमांत के लोगों के लिए 'जंजाल' बने सेटेलाइट फोन.

चीन और नेपाल से सटे पिथौरागढ़ जिले के सीमांत इलाके संचार सुविधा से आज भी महरूम हैं. इन इलाकों में लोग नेपाली टेलीकॉम पर निर्भर है, जिसे देखते हुए भारत सरकार ने एसडीआरएफ के माध्यम से धारचूला और मुनस्यारी के संचारविहीन 49 गांवों के लिए सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराए थे.

सेटेलाइट फोन देते वक्त ग्रामीणों से कहा गया था कि एक मिनट की कॉल के लिए 12 रुपये देने होंगे, लेकिन जब बॉर्डर के ग्रामीणों ने इसका इस्तेमाल शुरू किया तो पता चला कि एक मिनट की कॉल 25 से 30 रुपये की पड़ रहे हैं. जिसके बाद सीमांत के लोगों ने सेटेलाइट फोन की कॉल दर सस्ती करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया. वहीं महंगी कॉल दर होने के कारण व्यास घाटी के लोग नेपाली सिम का प्रयोग करने को मजबूर हैं.

पढ़ें- उत्तराखंड के इन इलाकों पर है चीन की नजर, सरकार का 'सूचना तंत्र' कर रहा पलायन

वहीं, सीमांत इलाकों में नेपाली संचार पर भारत की निर्भरता सुरक्षा के लिहाज से कभी भी बड़ा खतरा पैदा कर सकती है. चीन और नेपाल से सटे धारचूला के सीमांत इलाके संचार के क्षेत्र में आज भी आदिम युग में है. यहां 80 किलोमीटर के दायरे में भारतीय संचार का नामोनिशान तक नहीं है. यहां लोग संचार के लिए नेपाली टेलीकॉम कंपनियों पर निर्भर हैं. नेपाली सिम का उपयोग करने के चलते लोगों को आईएसडी दरों से भुगतान करना पड़ता है. नेपाली सिग्नल तलाशने क लिए भी यहां के लोगों को लंबा पैदल सफर तय करना होता है. नेपाली सिग्नल भी इन इलाकों में सिर्फ छियालेख तक ही काम करता है. उसके बाद गर्ब्यांग, नपलच्यू, गुंजी, नाबी, कालापानी और नाभीढांग का इलाका संचार से पूरी तरह कटा है.

नेपाली संचार सेवा भले ही बॉर्डर पर लोगों को कुछ राहत पहुंचा रही हो, लेकिन कड़वी हकीकत यह भी है कि इसके जरिए भारतीय सुरक्षा में आसानी से सेंध लगायी जा सकती है, क्योंकि नेपाल में जो भी मोबाइल कंपनियां काम कर रही हैं उनका संचालन चीन से हो रहा है.

पिथौरागढ़: चीन और नेपाल सीमा से लगे गांवों के लिए शुरू की गई सेटेलाइट फोन सेवा खासी महंगी साबित हो रही है. आलम ये है कि 1 मिनट की कॉल करने के लिए उपभोक्ताओं को 25 से 30 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. महंगी सेटेलाइट फोन सेवा से दारमा, व्यास, चौदास और जौहार घाटी के ग्रामीणों में खासी नाराजगी है.

सीमांत के लोगों के लिए 'जंजाल' बने सेटेलाइट फोन.

चीन और नेपाल से सटे पिथौरागढ़ जिले के सीमांत इलाके संचार सुविधा से आज भी महरूम हैं. इन इलाकों में लोग नेपाली टेलीकॉम पर निर्भर है, जिसे देखते हुए भारत सरकार ने एसडीआरएफ के माध्यम से धारचूला और मुनस्यारी के संचारविहीन 49 गांवों के लिए सेटेलाइट फोन उपलब्ध कराए थे.

सेटेलाइट फोन देते वक्त ग्रामीणों से कहा गया था कि एक मिनट की कॉल के लिए 12 रुपये देने होंगे, लेकिन जब बॉर्डर के ग्रामीणों ने इसका इस्तेमाल शुरू किया तो पता चला कि एक मिनट की कॉल 25 से 30 रुपये की पड़ रहे हैं. जिसके बाद सीमांत के लोगों ने सेटेलाइट फोन की कॉल दर सस्ती करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया. वहीं महंगी कॉल दर होने के कारण व्यास घाटी के लोग नेपाली सिम का प्रयोग करने को मजबूर हैं.

पढ़ें- उत्तराखंड के इन इलाकों पर है चीन की नजर, सरकार का 'सूचना तंत्र' कर रहा पलायन

वहीं, सीमांत इलाकों में नेपाली संचार पर भारत की निर्भरता सुरक्षा के लिहाज से कभी भी बड़ा खतरा पैदा कर सकती है. चीन और नेपाल से सटे धारचूला के सीमांत इलाके संचार के क्षेत्र में आज भी आदिम युग में है. यहां 80 किलोमीटर के दायरे में भारतीय संचार का नामोनिशान तक नहीं है. यहां लोग संचार के लिए नेपाली टेलीकॉम कंपनियों पर निर्भर हैं. नेपाली सिम का उपयोग करने के चलते लोगों को आईएसडी दरों से भुगतान करना पड़ता है. नेपाली सिग्नल तलाशने क लिए भी यहां के लोगों को लंबा पैदल सफर तय करना होता है. नेपाली सिग्नल भी इन इलाकों में सिर्फ छियालेख तक ही काम करता है. उसके बाद गर्ब्यांग, नपलच्यू, गुंजी, नाबी, कालापानी और नाभीढांग का इलाका संचार से पूरी तरह कटा है.

नेपाली संचार सेवा भले ही बॉर्डर पर लोगों को कुछ राहत पहुंचा रही हो, लेकिन कड़वी हकीकत यह भी है कि इसके जरिए भारतीय सुरक्षा में आसानी से सेंध लगायी जा सकती है, क्योंकि नेपाल में जो भी मोबाइल कंपनियां काम कर रही हैं उनका संचालन चीन से हो रहा है.

Last Updated : Jul 11, 2020, 5:44 PM IST
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