पिथौरागढ़: उत्तराखण्ड के जंगलों में धधक रही आग ने चौतरफा संकट खड़ा कर दिया है. बहुमूल्य वन संपदा खाक होने के साथ ही इसने जंगली जानवरों और इंसानों का भी जीना मुहाल किया है. यही नहीं बढ़ती वनाग्नि उच्च हिमालयी क्षेत्रों के पर्यावरण के लिए भी बेहद खतरनाक मानी जा रही है. वनाग्नि के चलते उच्च हिमालयी क्षेत्रों के ग्लेशियरों पर बुरा असर पड़ रहा है.
उत्तराखंड के जंगलों में फैल रही आग हिमालयी ईको सिस्टम के लिए खतरनाक मानी जा रही है. खासकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों के ग्लेशियरों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. जंगलों की आग से निकल रहा बेहिसाब ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों तक पहुंच रहा है. ग्लेशियरों में जमा हो रहे ब्लैक कार्बन से सोलर रेडिएशन भी पैदा हो रहा है. जिससे ग्लेशियरों में गर्मी लगातार बढ़ रही है.
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इस साल बर्फबारी कम होने से ग्लेशियरों में बर्फ काफी कम है. ऐसे में वनाग्नि से निकल रहा ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों के लिए खतरा बना हुआ है. ग्लेशियरों की लगातार बदल रही स्थिति के अध्ययन के लिए जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण संस्थान पंचाचूली की तलहटी में लैब भी स्थापित करने जा रहा है. जिससे ग्लेशियरों के बदलाव को आसानी से समझा जा सकेगा. बीते कुछ सालों में ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियरों में खासा बदलाव देखने को मिला है, जिससे धरती के तापमान में भी बढ़ोत्तरी हुई है. हिमालय रेंज में अनियंत्रित आग संवेदनशील ग्लेशियरों के लिए खतरे का सबब बनी हुई है.