पिथौरागढ़: ईटीवी भारत की खबर का एक बार फिर से बड़ा असर हुआ है. उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी के राजमा काश्तकारों की पीड़ा की खबर को ईटीवी भारत ने प्रमुखता से दिखाया था. खबर दिखाए जाने के बाद कृषि अधिकारियों ने मामले को गंभीरता से लिया है. साथ ही काश्तकारों से मुलाकात कर राजमा के फसल में लगी बीमारी की जानकारी दी. साथ ही इस बीमारी से निजात के लिए जानकारी और सुझाव दिए.
बता दें कि बीती 27 जुलाई को ईटीवी भारत ने 'मुनस्यारी में राजमा की फसल पर लगा रोग, दांव पर लगे काश्तकारों के लाखों रुपए' हेडलाइन से खबरों को प्रमुखता से दिखाया था. जिसका बड़ा असर हुआ है. खबर दिखाए जाने के बाद कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक प्रदीप कुमार सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों के एक दल को मुनस्यारी के राजमा उत्पादन वाले क्षेत्र में भेजा. जहां कृषि अधिकारियों ने काश्तकारों से मुलाकात कर राजमा के फसल में लगी बीमारी की जानकारी दी.
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मुनस्यारी के राजमा काश्तकारों का कहना है कि मुनस्यारी और आसपास के कई गांवों में किसानों की मुख्य कृषि राजमा की खेती है. हर साल यहां के किसान 7 हजार से 8 हजार क्विंटल राजमा का उत्पादन करते हैं, लेकिन इस बार एक अनजान बीमारी और कीड़े ने राजमा की खेती को पूरी तरह से चौपट कर दिया है. इससे काश्तकार बेहद परेशान हैं.
काश्तकारों का कहना है कि अगर जल्द सरकार और कृषि विभाग ने इस रोग को दूर नहीं किया तो किसानों की मुख्य आजीविका की खेती राजमा पूरी तरह से चौपट हो जाएगी. इतना ही नहीं किसानों ने एक वीडियो जारी मुख्यमंत्री और उत्तराखंड सरकार से मदद गुहार भी लगाई है.
क्यों फेमस है मुनस्यारी की राजमाः बता दें कि उत्तराखंड के मुनस्यारी की राजमा (Rajma of Munsyari) में पूरे देश दुनिया में मशहूर है. जो अपने स्वाद के चलते विशेष पहचान रखती है. यहां सात हजार फीट से अधिक ऊंचाई वाले गांव क्वीरी, जीमियां, साईपोलू, ल्वां, बोना, तोमिक, गोल्फा, नामिक, बुई, पातों, निर्तोली और झापुली समेत अन्य गांवों में बहुतायात में राजमा की खेती की जाती है.
खास बात ये है कि यहां राजमा पूरी तरह से जैविक तरीके से उत्पादित की जाती है. शादी, विवाह हो या अन्य आयोजनों पर इस राजमा की डिमांड काफी रहती है. इतना ही नहीं सैलानी भी मुनस्यारी की राजमा का स्वाद लेना नहीं भूलते. जिसकी वजह से यह राजमा देश-विदेशों तक अपनी पहचान बना पाया है. मुनस्यारी के राजमा को जीआइ टैग यानी जियोग्राफिकल इंडेकेशन भी मिल चुका है.