पिथौरागढ़ः सीमांत जिला पिथौरागढ़ में विश्व रंगमंच दिवस धूमधाम से मनाया गया. रंगमंच दिवस के मौके पर नाट्य महोत्सव का आयोजन किया गया. पांच दिनों तक चले इस नाट्य महोत्सव में पांच राज्यों की टीमों ने हिस्सा लिया. महोत्सव में रंगमंच के मझे हुए कलाकारों ने समां बांधा. साथ ही रंगमंच की परंपरा को बचाने की अपील की.
गौर हो कि रंगमंच की परंपरा एक दौर में खासी लोकप्रिय रही है, लेकिन आधुनिकता की दौर में पारंपरिक रंगमंच अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. इसी के तहत भाव राग ताल नाट्य अकदमी ने 27 मार्च से 31 मार्च तक टकाना रामलीला मंच में नाट्य महोत्सव का आयोजन किया. संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस नाट्य महोत्सव में राजस्थान, कोलकाता, बिहार, मध्यप्रदेश और नई दिल्ली के रंगमंच की टीमों ने प्रतिभाग किया.
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इस महोत्सव में पहले दिन जयपुर से पहुंची टीम ने संकेत जैन के निर्देशन में 'गोडों के इंतजार में' नाटक प्रस्तुत किया. जबकि दूसरे दिन कोलकाता से आई टीम ने देवाशीष दत्ता के निर्देशन में 'ऋतु संहारम' नाटक पेश किया. पटना से अभय सिंहा के निर्देशन में 'फूल नौटंकी विलास', मध्यप्रदेश से नीरज कुंदेर और रोशनी प्रसाद मिश्र के निर्देशन में 'कर्णभारम' और नई दिल्ली से लक्ष्मी रावत के निर्देशन में 'तीलूरौतेली' गाथा का मंचन किया. रंगमंच के मझे हुए कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय को दर्शकों ने खूब सराहा.
डेढ़ से दो दशक पहले तक कुछ रंगकर्मियों की बदौलत सीमांत जिले में रंगमंच खासा लोकप्रिय रहा है, लेकिन मनोरंजन के साधन बढ़ने से धीरे-धीरे रंगमंच की लोकप्रिय परंपरा हाशिये में सिमटती जा रही है. वहीं, निर्देशकों का कहना है कि पारंपरिक रंगमंच, उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति को बचाने की जरूरत है. प्रज्ञा आर्ट्स के निर्देशक लक्ष्मी रावत ने कहा कि पिथौरागढ़ के युवा रंगमंच की ओर आकर्षित हो रहे हैं. रंगमंच के माध्यम से लोगों को संस्कार, नई सोच के साथ जागरूकता मिलती है.