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रंगमंच की परंपरा को बचाने के लिए जुटे 5 राज्यों के कलाकार, खूब बजी तालियां

भाव राग ताल नाट्य अकदमी ने 27 मार्च से 31 मार्च तक टकाना रामलीला मंच में नाट्य महोत्सव का आयोजन किया. संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस नाट्य महोत्सव में राजस्थान, कोलकाता, बिहार, मध्यप्रदेश और नई दिल्ली के रंगमंच की टीमों ने प्रतिभाग किया.

पिथौरागढ़ में मनाया विश्व रंगमंच दिव
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Published : Mar 31, 2019, 9:58 PM IST

पिथौरागढ़ः सीमांत जिला पिथौरागढ़ में विश्व रंगमंच दिवस धूमधाम से मनाया गया. रंगमंच दिवस के मौके पर नाट्य महोत्सव का आयोजन किया गया. पांच दिनों तक चले इस नाट्य महोत्सव में पांच राज्यों की टीमों ने हिस्सा लिया. महोत्सव में रंगमंच के मझे हुए कलाकारों ने समां बांधा. साथ ही रंगमंच की परंपरा को बचाने की अपील की.

जानकारी देते रंगमंच निर्देशक.


गौर हो कि रंगमंच की परंपरा एक दौर में खासी लोकप्रिय रही है, लेकिन आधुनिकता की दौर में पारंपरिक रंगमंच अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. इसी के तहत भाव राग ताल नाट्य अकदमी ने 27 मार्च से 31 मार्च तक टकाना रामलीला मंच में नाट्य महोत्सव का आयोजन किया. संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस नाट्य महोत्सव में राजस्थान, कोलकाता, बिहार, मध्यप्रदेश और नई दिल्ली के रंगमंच की टीमों ने प्रतिभाग किया.

ये भी पढे़ंःगंगोत्री हाई-वे समेत कई मार्गों पर बढ़ा हिमस्खलन का खतरा, नेलांग रोड पर एवलांच ने बढ़ाई मुसीबत

इस महोत्सव में पहले दिन जयपुर से पहुंची टीम ने संकेत जैन के निर्देशन में 'गोडों के इंतजार में' नाटक प्रस्तुत किया. जबकि दूसरे दिन कोलकाता से आई टीम ने देवाशीष दत्ता के निर्देशन में 'ऋतु संहारम' नाटक पेश किया. पटना से अभय सिंहा के निर्देशन में 'फूल नौटंकी विलास', मध्यप्रदेश से नीरज कुंदेर और रोशनी प्रसाद मिश्र के निर्देशन में 'कर्णभारम' और नई दिल्ली से लक्ष्मी रावत के निर्देशन में 'तीलूरौतेली' गाथा का मंचन किया. रंगमंच के मझे हुए कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय को दर्शकों ने खूब सराहा.


डेढ़ से दो दशक पहले तक कुछ रंगकर्मियों की बदौलत सीमांत जिले में रंगमंच खासा लोकप्रिय रहा है, लेकिन मनोरंजन के साधन बढ़ने से धीरे-धीरे रंगमंच की लोकप्रिय परंपरा हाशिये में सिमटती जा रही है. वहीं, निर्देशकों का कहना है कि पारंपरिक रंगमंच, उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति को बचाने की जरूरत है. प्रज्ञा आर्ट्स के निर्देशक लक्ष्मी रावत ने कहा कि पिथौरागढ़ के युवा रंगमंच की ओर आकर्षित हो रहे हैं. रंगमंच के माध्यम से लोगों को संस्कार, नई सोच के साथ जागरूकता मिलती है.

पिथौरागढ़ः सीमांत जिला पिथौरागढ़ में विश्व रंगमंच दिवस धूमधाम से मनाया गया. रंगमंच दिवस के मौके पर नाट्य महोत्सव का आयोजन किया गया. पांच दिनों तक चले इस नाट्य महोत्सव में पांच राज्यों की टीमों ने हिस्सा लिया. महोत्सव में रंगमंच के मझे हुए कलाकारों ने समां बांधा. साथ ही रंगमंच की परंपरा को बचाने की अपील की.

जानकारी देते रंगमंच निर्देशक.


गौर हो कि रंगमंच की परंपरा एक दौर में खासी लोकप्रिय रही है, लेकिन आधुनिकता की दौर में पारंपरिक रंगमंच अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. इसी के तहत भाव राग ताल नाट्य अकदमी ने 27 मार्च से 31 मार्च तक टकाना रामलीला मंच में नाट्य महोत्सव का आयोजन किया. संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस नाट्य महोत्सव में राजस्थान, कोलकाता, बिहार, मध्यप्रदेश और नई दिल्ली के रंगमंच की टीमों ने प्रतिभाग किया.

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इस महोत्सव में पहले दिन जयपुर से पहुंची टीम ने संकेत जैन के निर्देशन में 'गोडों के इंतजार में' नाटक प्रस्तुत किया. जबकि दूसरे दिन कोलकाता से आई टीम ने देवाशीष दत्ता के निर्देशन में 'ऋतु संहारम' नाटक पेश किया. पटना से अभय सिंहा के निर्देशन में 'फूल नौटंकी विलास', मध्यप्रदेश से नीरज कुंदेर और रोशनी प्रसाद मिश्र के निर्देशन में 'कर्णभारम' और नई दिल्ली से लक्ष्मी रावत के निर्देशन में 'तीलूरौतेली' गाथा का मंचन किया. रंगमंच के मझे हुए कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय को दर्शकों ने खूब सराहा.


डेढ़ से दो दशक पहले तक कुछ रंगकर्मियों की बदौलत सीमांत जिले में रंगमंच खासा लोकप्रिय रहा है, लेकिन मनोरंजन के साधन बढ़ने से धीरे-धीरे रंगमंच की लोकप्रिय परंपरा हाशिये में सिमटती जा रही है. वहीं, निर्देशकों का कहना है कि पारंपरिक रंगमंच, उत्तराखंड की लोक कला और संस्कृति को बचाने की जरूरत है. प्रज्ञा आर्ट्स के निर्देशक लक्ष्मी रावत ने कहा कि पिथौरागढ़ के युवा रंगमंच की ओर आकर्षित हो रहे हैं. रंगमंच के माध्यम से लोगों को संस्कार, नई सोच के साथ जागरूकता मिलती है.

Intro:Slug: Rangmanch
Report: Mayank Joshi/Pithoragarh
Anchor: विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर भाव राग ताल नाट्य अकादमी द्वारा पिथौरागढ़ जिले में रंगोत्सव का आयोजन किया गया। 5 दिनों तक चले इस नाट्य महोत्सव का आयोजन संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार और संस्कृति मंत्रालय उत्तराखंड सरकार के सहयोग से किया गया। जिसमें 5 राज्यों से आई टीमों ने हिस्सा लिया। इस महोत्सव में रंगमंच के मंझे हुए कलाकारों ने समां बांध दिया। पेश है एक रिपोर्ट।

V.O.1: एक दौर में खासी लोकप्रिय रही रंगमंच की परम्परा आज संकट के दौर से गुजर रही हैं। संचार क्रांति के इस दौर में टेलीविजन पर एक से बढ़कर एक कार्यक्रमों की भरमार है। लगातार बदल रही परिस्थितियों में रंगमंच आज बदहाली की कगार पर है। सीमांत जिले पिथौरागढ़ में भाव राग ताल नाट्य अकदमी द्वारा रंगमंच की परंपरा को फिर से जीवनदान देने की कोशिश की गई है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस रंगोत्सव में राजस्थान, कोलकाता, बिहार, मध्यप्रदेश और नई दिल्ली से आयी रंगमंच की टीमों ने प्रतिभाग किया।
Byte1: लक्ष्मी रावत, निर्देशक, प्रज्ञा आर्ट्स

V.O.2: टकाना रामलीला मंच में नाट्यमहोत्व का आयोजन 27 मार्च से 31 मार्च तक किया गया। महोत्सव के पहले दिन जयपुर से आई टीम ने संकेत जैन के निर्देशन में 'गोडों के इंतजार में' नाटक प्रस्तुत किया। जबकि दूसरे दिन कोलकाता से आई टीम ने देबाशीष दत्ता के निर्देशन में 'ऋतु संहारम' नाटक पेश क़िया। पटना से अभय सिन्हा के निर्देशन में 'फूल नौटंकी विलास', मध्यप्रदेश से नीरज कुंदेर और रोशनी प्रसाद मिश्र के निर्देशन में "कर्णभारम" और नई दिल्ली से लक्ष्मी रावत के निर्देशन में 'तीलूरौतेली' गाथा का मंचन किया। रंगमंच के मंझे हुए कलाकारों ने अपने बेहतरीन अभिनय ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया।
Byte2: कैलाश, निर्देशक, भाव राग ताल नाट्य अकादमी
F.V.O.: पिथौरागढ़ से एक दौर में एहसान बख्स और हेमंत पांडे जैसे कलाकार भी निकले है। डेढ से 2 दशक पूर्व तक कुछ रंगकर्मियों की बदौलत इस सीमांत जिले में रंगमंच खासा लोकप्रिय रहा। मगर टेलीविजन के पांव पसारते ही धीरे धीरे रंगमंच की लोकप्रिय परम्परा हाशिये में सिमटती जा रही है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित रंगोत्सव के जरिये जिले में रंगमंच को संजीवनी देने की कोशिश की गई है। उम्मीद की जानी चाहिये कि आगे भी सरकार इस सीमांत जिले में रंगमंच को बढ़ावा देने और जिले की प्रतिभाओं को उचित प्लेटफॉर्म देने का प्रयास करती रहेंगी।

मयंक जोशी, ई टी वी भारत, पिथौरागढ़


Body:Slug: Rangmanch
Report: Mayank Joshi/Pithoragarh
Anchor: विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर भाव राग ताल नाट्य अकादमी द्वारा पिथौरागढ़ जिले में रंगोत्सव का आयोजन किया गया। 5 दिनों तक चले इस नाट्य महोत्सव का आयोजन संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार और संस्कृति मंत्रालय उत्तराखंड सरकार के सहयोग से किया गया। जिसमें 5 राज्यों से आई टीमों ने हिस्सा लिया। इस महोत्सव में रंगमंच के मंझे हुए कलाकारों ने समां बांध दिया। पेश है एक रिपोर्ट।

V.O.1: एक दौर में खासी लोकप्रिय रही रंगमंच की परम्परा आज संकट के दौर से गुजर रही हैं। संचार क्रांति के इस दौर में टेलीविजन पर एक से बढ़कर एक कार्यक्रमों की भरमार है। लगातार बदल रही परिस्थितियों में रंगमंच आज बदहाली की कगार पर है। सीमांत जिले पिथौरागढ़ में भाव राग ताल नाट्य अकदमी द्वारा रंगमंच की परंपरा को फिर से जीवनदान देने की कोशिश की गई है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित इस रंगोत्सव में राजस्थान, कोलकाता, बिहार, मध्यप्रदेश और नई दिल्ली से आयी रंगमंच की टीमों ने प्रतिभाग किया।
Byte1: लक्ष्मी रावत, निर्देशक, प्रज्ञा आर्ट्स
V.O.2: नाट्यमहोत्व में थियेटर के मंझे हुए कलाकारों ने प्रसिद्ध नाटकों का बेहतरीन मंचन प्रस्तुत किया। महोत्सव के पहले दिन जयपुर से आई टीम ने संकेत जैन के निर्देशन में 'गोडों के इंतजार में' नाटक प्रस्तुत किया। जबकि दूसरे दिन कोलकाता से आई टीम ने देबाशीष दत्ता के निर्देशन में 'ऋतु संहारम' नाटक पेश क़िया। पटना से अभय सिन्हा के निर्देशन में 'फूल नौटंकी विलास', मध्यप्रदेश से नीरज कुंदेर और रोशनी प्रसाद मिश्र के निर्देशन में "कर्णभारम" और नई दिल्ली से लक्ष्मी रावत के निर्देशन में 'तीलूरौतेली' गाथा का मंचन किया। अनुभवी कलाकारों के बेहतरीन अभिनय ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया।
Byte2:
F.V.O.: पिथौरागढ़ से एक दौर में एहसान बख्स और हेमंत पांडे जैसे कलाकार भी निकले है। डेढ से 2 दशक पूर्व तक कुछ रंगकर्मियों की बदौलत इस सीमांत जिले में रंगमंच खासा लोकप्रिय रहा। मगर टेलीविजन के पांव पसारते ही धीरे धीरे रंगमंच की लोकप्रिय परम्परा हाशिये में सिमटती जा रही है। संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से आयोजित रंगोत्सव के जरिये जिले में रंगमंच को संजीवनी देने की कोशिश की गई है। उम्मीद की जानी चाहिये कि आगे भी सरकार इस सीमांत जिले में रंगमंच को बढ़ावा देने और जिले की प्रतिभाओं को उचित प्लेटफॉर्म देने का प्रयास करती रहेंगी।

मयंक जोशी, ई टी वी भारत, पिथौरागढ़


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