ETV Bharat / state

उत्तराखंड में विलुप्त होने के कगार पर वन तुलसी, भगवान बदरी विशाल से जुड़ा है महत्व

उत्तराखंड में वन तुलसी विलुप्त होने के कगार पर है. वन तुलसी की माला भगवान बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है. अब यह तुलसी बदरीनाथ के निकट माणा व अन्य गांव में ही पाई जाती है. एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग वन तुलसी को बचाने का प्रयास कर रहा है.

Etv Bharat
Etv Bharat
author img

By

Published : Nov 4, 2022, 3:54 PM IST

Updated : Nov 4, 2022, 6:21 PM IST

श्रीनगरः आज प्रोबोधिनी एकादशी है. इस दिन तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, उस दिन से श्रीहरि विश्राम के लिए चार महीनों तक श्रीरसागर में चले गए थे. इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं. वहीं, देवउठनी एकादशी के दिन से घरों में मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं.

वैसे तो तुलसी के कई प्रकार हैं. उनमें से एक है वन तुलसी या बदरी तुलसी जो अब लुप्त होने की कगार (Van Tulsi on the verge of extinction) पर है. वन या बदरी तुलसी भगवान बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है (van Tulsi is offered to Badri Vishal). इसलिए इसे बदरी तुलसी भी कहा जाता है. वन तुलसी दवाई, सौंदर्य प्रसाधन और खाने का जायका बढ़ाने के काम आती है. विदेशी व्यंजन पिज्जा और पास्ता में इसका प्रयोग ओरेगेनो (oregano) के नाम से हो रहा है. विडंबना है कि अवैज्ञानिक दोहन की वजह से यह प्रजाति लुप्त हो सकती है.

उत्तराखंड में विलुप्त होने के कगार पर वन तुलसी.

गढ़वाल विवि ने लगाए 10 हजार पौधेः हालांकि, प्रजाति के संरक्षण के लिए एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग आगे आया है. विभाग की नर्सरी में बदरी तुलसी के 10 हजार पौध लगाए गए हैं. इन पौधों को काश्तकारों में वितरित किया जाएगा. ताकि, तुलसी का संरक्षण होने के साथ ही इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सके.
ये भी पढ़ेंः 7 नवंबर को तुंगनाथ और 18 को मद्महेश्वर धाम के बंद होंगे कपाट, लाखों श्रद्धालुओं ने लिया आशीर्वाद

बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है तुलसी की मालाः हर साल कपाट खुलने के बाद भगवान बदरीनाथ को श्रद्धालु वन तुलसी की माला चढ़ाते हैं. बदरीनाथ में प्रयोग होने की वजह से इसे बदरी तुलसी भी कहा जाता है. यह तुलसी बदरीनाथ के निकट माणा, बामणी, बड़गांव, पांडुकेश्वर, छेनगांव और मरांग में पाई जाती है. गढ़वाल विवि के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के एक शोध के अनुसार,अब क्षेत्र में बदरी तुलसी का दिखाई देना मुश्किल हो गया है. पहले घर के आसपास ही माला के लिए तुलसी मिल जाती थी. लेकिन अब तुलसी के क्षेत्र में 50 फीसदी से अधिक कमी आ गई है.

10 एकड़ भूमि में खेतीः विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर जितेंद्र बुटोला बताते हैं कि तुलसी के फायदे और वर्तमान स्थिति को देखते हुए गढ़वाल विश्वविद्यालय ने इसकी संरक्षण की योजना बनाई है. वानिकी विभाग की नर्सरी में पौध तैयार हो गई है. इन्हें अब काश्तकारों को वितरित किया जाएगा. वर्तमान में यह प्रजाति अत्याधिक दोहन से संकट में है. इसलिए इसके संरक्षण के लिए 10 एकड़ भूमि में खेती की जाएगी. काश्तकारों को तकनीकी सहायता सहित उत्पाद बनाने और मार्केटिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

एक एकड़ भूमि में 3 लाख की आमदनीः बदरी तुलसी की माला का थोक मुल्य बाजार में 20 से 100 रुपये है. जबकि, दुकानदार श्रद्धालुओं को यह माला 50 से 150 रुपये में बेचते हैं. यदि इसकी सूखी पत्तियां बेची जाए, तो 250-300 रुपये मिलते हैं. वानिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र बुटोला बताते हैं कि तुलसी का तेल 10 हजार से 12,500 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है. एक एकड़ भूमि से काश्तकार 80 हजार से 1 लाख रुपये तक कमा सकता है. इससे साल में तीन बार फसल उगाई जा सकती है.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में आज इगास पर्व की धूम, सीएम धामी ने दी बधाई, सेल्फी भेजें और जीतें इनाम

दवा और मसाला है ओरेगेनोः ओरेगेनो या बदरी तुलसी बेहद गुणकारी पौधा है. इसका वैज्ञानिक नाम ओरेगेनम वल्गार है. यह मुख्य रूप से यूरोपीय देशों में उगाया जाता है. पिज्जा और पास्ता में ओरेगेनो की सूखी पत्तियों का अलग से स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है. भारत में यह तुलसी हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है. बाजार में इस तुलसी की चाय, तेल और दवाईयां उपलब्ध हैं. तुलसी के पौधे में टैनिन नामक तेल पाया जाता है. पत्तियां और टहनियों का प्रयोग मसालों, आयुर्वेदिक दवाइयों, पशु चिकित्सा एवं सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है.

वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के हेड प्रोफेसर अजित कुमार नेगी का कहना है कि बदरी तुलसी को बचाने के लिए बड़े प्रयास जरूरी हैं. इसके लिए केंद्र सरकार का बायो टेक्निकल विभाग विवि की मदद कर रहा है. जल्द प्राकृतिक तौर पर उगने वाली वन तुलसी की खेती करके इसे बचाने के प्रयास है.

श्रीनगरः आज प्रोबोधिनी एकादशी है. इस दिन तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि आषाढ़ मास की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, उस दिन से श्रीहरि विश्राम के लिए चार महीनों तक श्रीरसागर में चले गए थे. इन चार महीनों में कोई भी शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं. वहीं, देवउठनी एकादशी के दिन से घरों में मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं.

वैसे तो तुलसी के कई प्रकार हैं. उनमें से एक है वन तुलसी या बदरी तुलसी जो अब लुप्त होने की कगार (Van Tulsi on the verge of extinction) पर है. वन या बदरी तुलसी भगवान बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है (van Tulsi is offered to Badri Vishal). इसलिए इसे बदरी तुलसी भी कहा जाता है. वन तुलसी दवाई, सौंदर्य प्रसाधन और खाने का जायका बढ़ाने के काम आती है. विदेशी व्यंजन पिज्जा और पास्ता में इसका प्रयोग ओरेगेनो (oregano) के नाम से हो रहा है. विडंबना है कि अवैज्ञानिक दोहन की वजह से यह प्रजाति लुप्त हो सकती है.

उत्तराखंड में विलुप्त होने के कगार पर वन तुलसी.

गढ़वाल विवि ने लगाए 10 हजार पौधेः हालांकि, प्रजाति के संरक्षण के लिए एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग आगे आया है. विभाग की नर्सरी में बदरी तुलसी के 10 हजार पौध लगाए गए हैं. इन पौधों को काश्तकारों में वितरित किया जाएगा. ताकि, तुलसी का संरक्षण होने के साथ ही इसका व्यवसायिक उत्पादन किया जा सके.
ये भी पढ़ेंः 7 नवंबर को तुंगनाथ और 18 को मद्महेश्वर धाम के बंद होंगे कपाट, लाखों श्रद्धालुओं ने लिया आशीर्वाद

बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है तुलसी की मालाः हर साल कपाट खुलने के बाद भगवान बदरीनाथ को श्रद्धालु वन तुलसी की माला चढ़ाते हैं. बदरीनाथ में प्रयोग होने की वजह से इसे बदरी तुलसी भी कहा जाता है. यह तुलसी बदरीनाथ के निकट माणा, बामणी, बड़गांव, पांडुकेश्वर, छेनगांव और मरांग में पाई जाती है. गढ़वाल विवि के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के एक शोध के अनुसार,अब क्षेत्र में बदरी तुलसी का दिखाई देना मुश्किल हो गया है. पहले घर के आसपास ही माला के लिए तुलसी मिल जाती थी. लेकिन अब तुलसी के क्षेत्र में 50 फीसदी से अधिक कमी आ गई है.

10 एकड़ भूमि में खेतीः विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर जितेंद्र बुटोला बताते हैं कि तुलसी के फायदे और वर्तमान स्थिति को देखते हुए गढ़वाल विश्वविद्यालय ने इसकी संरक्षण की योजना बनाई है. वानिकी विभाग की नर्सरी में पौध तैयार हो गई है. इन्हें अब काश्तकारों को वितरित किया जाएगा. वर्तमान में यह प्रजाति अत्याधिक दोहन से संकट में है. इसलिए इसके संरक्षण के लिए 10 एकड़ भूमि में खेती की जाएगी. काश्तकारों को तकनीकी सहायता सहित उत्पाद बनाने और मार्केटिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.

एक एकड़ भूमि में 3 लाख की आमदनीः बदरी तुलसी की माला का थोक मुल्य बाजार में 20 से 100 रुपये है. जबकि, दुकानदार श्रद्धालुओं को यह माला 50 से 150 रुपये में बेचते हैं. यदि इसकी सूखी पत्तियां बेची जाए, तो 250-300 रुपये मिलते हैं. वानिकी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र बुटोला बताते हैं कि तुलसी का तेल 10 हजार से 12,500 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिकता है. एक एकड़ भूमि से काश्तकार 80 हजार से 1 लाख रुपये तक कमा सकता है. इससे साल में तीन बार फसल उगाई जा सकती है.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में आज इगास पर्व की धूम, सीएम धामी ने दी बधाई, सेल्फी भेजें और जीतें इनाम

दवा और मसाला है ओरेगेनोः ओरेगेनो या बदरी तुलसी बेहद गुणकारी पौधा है. इसका वैज्ञानिक नाम ओरेगेनम वल्गार है. यह मुख्य रूप से यूरोपीय देशों में उगाया जाता है. पिज्जा और पास्ता में ओरेगेनो की सूखी पत्तियों का अलग से स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है. भारत में यह तुलसी हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है. बाजार में इस तुलसी की चाय, तेल और दवाईयां उपलब्ध हैं. तुलसी के पौधे में टैनिन नामक तेल पाया जाता है. पत्तियां और टहनियों का प्रयोग मसालों, आयुर्वेदिक दवाइयों, पशु चिकित्सा एवं सौंदर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है.

वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के हेड प्रोफेसर अजित कुमार नेगी का कहना है कि बदरी तुलसी को बचाने के लिए बड़े प्रयास जरूरी हैं. इसके लिए केंद्र सरकार का बायो टेक्निकल विभाग विवि की मदद कर रहा है. जल्द प्राकृतिक तौर पर उगने वाली वन तुलसी की खेती करके इसे बचाने के प्रयास है.

Last Updated : Nov 4, 2022, 6:21 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.