श्रीनगर: दुनिया भर में उत्तराखंड अपनी खूबसूरती, संस्कृति और जैव विविधता के लिए जाना था, लेकिन पहाड़ों पर तेजी से हो रहे विकास के कारण उत्तराखंड के वातावरण में काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं. जो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं हैं. उत्तराखंड में लगातार हो रहे प्राकृतिक बदलाव का ही असर है कि सतोपंथ ताल का जलस्तर तेजी से घट रहा है (Satopanth Tal water level decreased), जिस पर वैज्ञानिकों से अपनी चिंता जाहिर की (Aditya Mishra claims Satopanth Tal) है.
हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सतोपंथ ग्लेशियर पर 2005 और सतोपंथ ताल (Satopanth Tal) पर 2013 से अध्ययन कर रहे हैं. इन्हीं के साथ ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉक्टर आदित्य मिश्रा भी 2016 से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. उन्होंने पुरानी स्टडी के आधार पर सतोपंथ ताल का जो अध्ययन किया, उसमें अब काफी चिंताजनक बदलाव देखने को मिल रहे हैं.
वैज्ञानिक डॉक्टर आदित्य मिश्रा की माने तो 2005 में सतोपंथ ताल की लंबाई 300 मीटर और चौड़ाई 290 मीटर थी, लेकिन वक्त के साथ सतोपंथ ताल सिकडुती जा रही है. वर्तमान में सतोपंथ ताल का पानी एक मीटर तक घटा है. इसका बड़ा कारण कम बर्फबारी और कम बारिश है, जो भविष्य के लिहाज से अच्छे संकेत नहीं है. क्योंकि अगर इसी तरह चलता रहा तो एक दिन ताल सूख जाएगा, उसमें पानी की एक बूंद भी नहीं रहेगी.
वैज्ञानिक आदित्य मिश्रा की माने तो सतोपंथ ताल को बचाने के लिए एक टीम बनाकर गहराई से अध्ययन करने की जरूत है. वैज्ञानिक आदित्य मिश्रा ने बताया कि सतोपंथ ताल का पहला वैज्ञानिक अध्ययन साल 1936 में स्विस वैज्ञानिक हेम एंड गेंसर ने किया था. वहीं, बीते काफी समय से हर साल गढ़वाल विवि के कुछ विशेषज्ञय भी 15 मई से 10 अक्टूबर के बीच ताल का अध्ययन करते हैं, जिसमें लिए सैटेलाइट इमेज, फील्ड वर्क और डिजीपीएस उपकरण की मदद ली जाती है.
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वैज्ञानिक डॉक्टर आदित्य मिश्रा ने बताया कि वे हाल में सितंबर महीने में सतोपंथ गए थे, जहां उन्होंने पाया कि ताल के पानी मे 1 मीटर की गिरावट आई है. जबकि ताल में सबसे न्यूतम पानी ढाई मीटर रहता है. ताल के जल स्तर में एक मीटर की कमी आना चिंता का विषय है. ये बताता है कि क्लाइमेट किस तरह से बदल रहा है.
सतोपंथ ताल की मान्यता: सतोपंथ ताल का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. बताया जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में ही बिताया था. वहीं, युद्ध के बाद ब्रह्म हत्या के लिए पांडवों ने केदारनाथ आकर प्रायश्चित किया था. यही नहीं, पांडवों ने हिमालय के गोद में बसे संतोपंथ झील से ही अपने स्वर्ग की यात्रा शुरू की थी. मान्यताओं के अनुसार सतोपंथ झील से ही स्वर्ग की सीढ़ी जाती है.
सतोपंथ का मतलब होता है सत्य का रास्ता. महाभारत के अनुसार पांडवों ने स्वर्ग जाने के रास्ते में इसी पड़ाव पर स्नान और ध्यान लगाया था. इसके बाद ही उन्होंने आगे का सफर तय किया था। मान्यताओं के अनुसार पांडव जब स्वर्ग की तरफ जा रहे थे तब एक-एक करके सभी की मृत्यु हो गई थी. इसी स्थान पर भीम की मृत्यु हुई थी. पांडवों में केवल युद्धिष्ठिर ही सशरीर स्वर्ग पहुंचे थे. इसी स्थान पर धर्मराज युधिष्ठिर के लिए स्वर्ग तक जाने के लिए आकाशीय वाहन आया था.
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रहस्यमयी है झील का आकार: हिमालय के चौखंबा शिखर के तल पर स्थित संतोपंथ झील का आकार भी बेहद रहस्यमयी है. आम तौर पर झील चौकोर होती है. लेकिन, सतोपंथ का आकार तिकोना है. मान्यताओं के अनुसार एकादशी के दिन त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने इस झील के अलग-अलग कोने में डुबकी लगाई थी. इसी कारण झील का आकार त्रिकोण है. एक अन्य मान्यता के अनुसार सतोपंथ झील की स्वच्छता रहेगी, तब तक ही इसका पुण्य प्रभाव रहेगा.
सतोपंथ झील से कुछ दूर आगे चलने पर स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर नजर आता है. कहा जाता है कि स्वर्ग जाने का रास्ता इसी जगह से जाता है. इस ग्लेशियर पर ही सात सीढ़ियां हैं जो कि स्वर्ग जाने का रास्ता हैं. बता दें कि सतोपंथ झील चमोली जिले में समुद्र तल से 4350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.