श्रीनगरः उत्तराखंड का श्रीनगर गढ़वाल प्राचीन शहरों में से एक है. इसका विवरण वेदों से लेकर प्राचीन लोक कहानियों में भी मिलता है. यह स्थान गढ़वाल के राजाओं की राजधानी भी रहा. ऐसे में श्रीनगर शहर खुद में एक इतिहास की किताब है, जिसके हर पन्ने को पलटने पर दिलचस्प किस्से और कहानियां मिलती हैं. आपको ऐसे ही इतिहास बने चुके एक मठ से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो आज जमींदोज हो चुका है. यह पौराणिक मंदिर केशवराय मठ है. जो साल 2013 की आपदा की भेंट चढ़ गया था, लेकिन अब स्थानीय लोग इस मठ के पुनर्निर्माण की मांग कर रहे हैं.
एक कहावत है 'निर्भगी कभी भग्यान नि ह्वै सकद'. (दुर्भाग्यशाली कभी भाग्यवान नहीं हो सकता है) यह कहावत श्रीनगर गढ़वाल के सबसे बडे़ और भव्य मंदिर पर सटीक बैठती है. ये मंदिर 80 साल से भी ज्यादा वक्त तक रेत के नीचे दबा रहा. जी हां, यह मंदिर है, उजड़ चुके केशवराय मठ का. इसके निर्माण के बाद से कभी इसमें मूर्ति प्रतिष्ठापित नहीं हो सकी. इतना ही नहीं साल 2013 की आपदा में यह मंदिर नदी में समा गया था, तब भी यह मठ मूर्ति विहीन था.
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जैसा मंदिर वैसा ही मंदिर का निर्माताः इतिहासकारों के मुताबिक, श्रीनगर में मंदिर निर्माण के लिए 70 वर्षीय बैरागी केशवराय ने सोलह वर्षीय राजा दुलोराम शाह से भूमि मांग थी. इस पर राजा ने उससे पूछा कि क्या उसके पास पैसे हैं? जिसके जबाव में बैरागी ने एक लाख चांदी के सिक्के होने की बात कही. उस जमाने में एक लाख बहुत होते थे. ऐसे में कई फौजदारों की नजर बैरागी के पैसों को हड़पने पर लगी रही. उन्होंने मंदिर निर्माण में कई रोड़े अटकाए. जब मंदिर बना तो दुलोराम शाह की मृत्यु हो गई.
गर्भ गृह में केशव राय ने की थी आत्महत्याः दुलोराम शाह की मृत्यु के बाद दादा महिपत शाह और पोते भान शाह में सत्ता के लिए संघर्ष छिड़ा. केशवराय ने भानशाह का पक्ष लिया. यह बात महिपत शाह को नागवार गुजरी. वो जबरदस्ती राजा बना तो उसने मूर्ति लाने में अड़ंगा डाला. इससे क्षुब्ध होकर स्वाभिमानी केशवराय ने मंदिर के गर्भ गृह में मूर्ति लगने वाले स्थान पर आत्महत्या कर ली. उसके बाद से ही मंदिर में मूर्ति नहीं लगी. बताया जाता है कि इससे पहले इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था.
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वहीं, केशवराय ने मरने से पहले मंदिर की चौखट पर लिखवा दिया था कि महिपत शाह ने जबरदस्ती राजगद्दी छीनी. 'श्री साके 1547 संवत 1682, राजवैस्यो केशव राय को मठ महिपत शाह...' इस लेख को ईटी एटकिंसन ने साल 1882 में पढ़ा. जिसके बाद यह राज उजागर हुआ कि महिपत शाह, भान शाह को मरवा कर राजा बना था. वहीं, साल 1894 की बाढ़ में यह मठ (मंदिर) रेत में दब गया. साल 1970 में SSB ने लाइन मंदिर बनाने के लिए इसे खोद निकाला, लेकिन बना नहीं पाए.
मठ के पुनर्निर्माण की उठी मांगः साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा से अलकनंदा नदी उफान पर आ गई थी. जिसकी चपेट में श्रीनगर का केशवराय मठ भी आ गया था. साथ ही आईटीआई भी बाढ़ में पूरी तरह डूब गई थी. जबकि, भक्तयाना में लोगों के मकान भी बाढ़ की चपेट में आ गए थे. स्थानीय लोग इस मंदिर को केशोराय मठ और केशवराय नाम से जानते हैं. अब स्थानीय लोग इस मंदिर की पुनः स्थापित करने की मांग उठा रहे हैं.
इसके लिए स्थानीय लोगों ने आंदोलन भी शुरू कर दिया है. जिसका नेतृत्व राज्य आंदोलनकारी प्रेम दत्त नौटियाल कर रहे हैं. उन्होंने सरकार से मांग की है कि इस प्रचीन मठ को पुनः स्थापित की जाए. साथ में श्रीनगर में बनाई गई सुरक्षा दीवार का भरान भी किया जाए. जिससे बाढ़ जैसी आपदा में शहर को बचाया जा सके.