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देवभूमि के इस मंदिर में सुबह बच्ची तो शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं मां काली

बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर दूर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे मां धारी देवी का मंदिर स्थित है. इस सिद्धपीठ का निर्माण 18वीं सदी में किया गया था. मान्यता है कि अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन होते हैं.

धारी देवी मंदिर.
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Published : Mar 21, 2019, 10:25 AM IST

Updated : Mar 21, 2019, 10:43 AM IST

पौड़ी: श्रीनगर गढ़वाल इलाके में एक प्रचीन सिद्ध पीठ है, जिसे 'धारी देवी' के नाम से भी जाना जाता है. इस सिद्धपीठ को 'दक्षिणी काली माता' के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि 'धारी देवी' उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती हैं. वहीं मंदिर के बारे में कह जाता है कि रोजाना माता तीन रूप बदलती है. वह सुबह कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं. जिस वजह से यहां धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु रोजाना भारी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

धारी देवी मंदिर.

माता के अलग-अलगस्वरूपों में होते हैं दर्शन
बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर दूर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे मां धारी देवी का मंदिर स्थित है. इस सिद्धपीठ का निर्माण 18वीं सदी में किया गया था. मान्यता है कि अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन होते हैं.

पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता है कि कालीमठ मंदिर एक बार भयंकर बाढ़ की चपेट में आकर बह गया था, लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से जुड़ी होने के कारण धारो गांव में बह कर आ गई थी. जिसके बाद गांव के लोगों को देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनको वहीं पर स्थापित किया जाए. जिसके बाद धारों गांव के लोगों ने वहीं पर माता की स्थापना कर दी.


तीन बार स्वरूप बदलती हैं मूर्ति

पुजारी भी इस बात को मानते हैं कि माता धारी देवी दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं. सिद्धपीठ के पुजारी के मुताबिक माता सुबह बालिका, दोपहर में युवा और शाम को वृद्ध अवस्था में होती हैं, ऐसा उन्होंने महसूस भी किया है.


कत्यूरी शैली में किया जा रहा मंदिर का जीर्णोद्धार


धारी देवी मंदिर अब लोगों को नए स्वरूप में देखने को मिलेगा. जल विद्युत परियोजना मंदिर का निर्माण करा रही है, ये मंदिर कई मायनों मे अलग होगा. मंदिर का कत्यूरी शैली में जीर्णोद्धार किया जा रहा है. मंदिर में देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की उत्कृष्ट नक्काशी का नमूना देखने को मिलेगा.

पौड़ी: श्रीनगर गढ़वाल इलाके में एक प्रचीन सिद्ध पीठ है, जिसे 'धारी देवी' के नाम से भी जाना जाता है. इस सिद्धपीठ को 'दक्षिणी काली माता' के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि 'धारी देवी' उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती हैं. वहीं मंदिर के बारे में कह जाता है कि रोजाना माता तीन रूप बदलती है. वह सुबह कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं. जिस वजह से यहां धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु रोजाना भारी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

धारी देवी मंदिर.

माता के अलग-अलगस्वरूपों में होते हैं दर्शन
बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर दूर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे मां धारी देवी का मंदिर स्थित है. इस सिद्धपीठ का निर्माण 18वीं सदी में किया गया था. मान्यता है कि अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन होते हैं.

पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता है कि कालीमठ मंदिर एक बार भयंकर बाढ़ की चपेट में आकर बह गया था, लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से जुड़ी होने के कारण धारो गांव में बह कर आ गई थी. जिसके बाद गांव के लोगों को देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनको वहीं पर स्थापित किया जाए. जिसके बाद धारों गांव के लोगों ने वहीं पर माता की स्थापना कर दी.


तीन बार स्वरूप बदलती हैं मूर्ति

पुजारी भी इस बात को मानते हैं कि माता धारी देवी दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं. सिद्धपीठ के पुजारी के मुताबिक माता सुबह बालिका, दोपहर में युवा और शाम को वृद्ध अवस्था में होती हैं, ऐसा उन्होंने महसूस भी किया है.


कत्यूरी शैली में किया जा रहा मंदिर का जीर्णोद्धार


धारी देवी मंदिर अब लोगों को नए स्वरूप में देखने को मिलेगा. जल विद्युत परियोजना मंदिर का निर्माण करा रही है, ये मंदिर कई मायनों मे अलग होगा. मंदिर का कत्यूरी शैली में जीर्णोद्धार किया जा रहा है. मंदिर में देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की उत्कृष्ट नक्काशी का नमूना देखने को मिलेगा.

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देवभूमि के इस मंदिर में सुबह बच्ची तो शाम को वृद्धा  बन जाती है मां काली

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पौड़ी:  श्रीनगर गढ़वाल इलाके में एक प्रचीन सिद्ध पीठ है, जिसे 'धारी देवी' के नाम से भी जाना जाता है. इस सिद्धपीठ को 'दक्षिणी काली माता' के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि 'धारी देवी' उत्तराखंड में चारों धाम की रक्षा करती हैं. वहीं मंदिर के बारे में कह जाता है कि रोजाना माता तीन रूप बदलती है. वह सुबह कन्या, दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं. जिस वजह से यहां धारी देवी के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालु रोजाना भारी संख्या में दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

बदरीनाथ नेशनल हाईवे पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर दूर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे मां धारी देवी का मंदिर स्थित है. इस सिद्धपीठ का निर्माण 18वीं सदी में किया गया था. मान्यता है कि अलग-अलग पहरों में माता के अलग-अलग स्वरूपों के दर्शन होते हैं. 

वीओ- पौराणिक मान्यता है कि कालीमठ मंदिर एक बार भयंकर बाढ़ की चपेट में आकर बह गया था,  लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से जुड़ी होने के कारण धारो गांव में बह कर आ गई थी. जिसके बाद गांव के लोगों को देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनको वहीं पर स्थापित किया जाए. जिसके बाद धारों गांव के लोगों ने वहीं पर माता की स्थापना कर दी.

पुजारी भी इस बात को मानते हैं कि माता धारी देवी दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं. सिद्धपीठ के पुजारी के मुताबिक माता सुबह बालिका, दोपहर में युवा और शाम को वृद्ध अवस्था में होती हैं, ऐसा उन्होंने महसूस भी किया है.

धारी देवी मंदिर अब लोगों को नए स्वरूप में देखने को मिलेगा. जल विद्युत परियोजना मंदिर का निर्माण करा रही है. ये मंदिर कई मायनों मे अलग होगा. मंदिर का निर्माण कत्यूरी शैली में बनाया जा रहा है. मंदिर में देवदार की लकड़ी पर शिल्पकारी की उत्कृष्ट नक्काशी का नमूना देखने को मिलेगा. 

 


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Last Updated : Mar 21, 2019, 10:43 AM IST
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