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भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है मां ज्वाल्पा मंदिर, हजारों लोग रोज दरबार में पहुंचते हैं - मां ज्वाल्पा मंदिर न्यूज

सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी धाम का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व भी है. साथ ही इसका वर्णन केदार खंड में भी है.आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी तब मां ने उन्हे दर्शन दिए.

मां ज्वाल्पा मंदिर
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Published : Oct 26, 2019, 3:03 PM IST

पौड़ी: मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी धाम भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. इसका धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व भी है. साथ ही इसका वर्णन केदार खंड में भी किया गया है. जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना साल 1892 में स्वर्गीय दत्त राम अणथ्वाल और उनके बेटे बूथा राम ने की थी.

मां ज्वाल्पा मंदिर में उमड़ता है भक्तों का हुजूम.

यह सिद्धपीठ पूरे साल श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं और इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से बहुत से लोगों के परिवार की आजीविका भी चल रही है.यहां पर मंदिर की पूजा सामग्री, भोजन,घरेलू सामान इत्यादि अलग-अलग दुकानें बनाई गईं हैं और यह लोग पिछले कई सालों से यहां पर रहकर मां ज्वाल्पा के आर्शीवाद से अपनी आजीविका चला रहे हैं.

मंदिर के पुजारी भास्करानंद अणथ्वाल के अनुसार इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सूची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी. सूची के तप से मां ने खुश होकर ज्वाला के रुप में उन्हें दर्शन दिए. जब से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रुप में भक्तों व श्रद्धालुओ की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां ज्वाल्पा देवी से मनोकामना मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में लोगों की विवाह भी करवाए जाते हैं साथ ही यहां पर स्थित धर्मशाला में लोगों को निःशुल्क ठहराया जाता है

उन्होंने बताया कि 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने इस मंदिर को 11.82 एकड़ सिंचित भूमि दान में दी थी. ताकि यहां अखंड दीपक हेतु तेल की व्यवस्था के लिए सरसों का उत्पादन हो सके. साथ ही बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी तब मां ने उन्हे दर्शन दिए.

एक मंजिला मंदिर में माता अखंड जोत के रुप में गर्भ गृह में विराजमान है और मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है. मंदिर के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, मां काली मंदिर भी स्थित हैं.

मां ज्वाल्पा के आर्शीवाद से आसपास के लोगो की आजीविका चल रही है. मंदिर के पास स्थित व्यापारियों का कहना है कि वह पिछले 8 से 10 सालों से यहां पर व्यापार कर रहे हैं और उनका पूरा परिवार भी मां ज्वाल्पा के आशीर्वाद से चल रहा है. मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है.

यह भी पढ़ेंः धनतेरस पर बाजारों में उमड़ी भीड़, जाम से निपटने में ट्रैफिक पुलिस के छूटे पसीने

रोज करीबन 100 से 200 लोग मां जालपा के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. हालांकि बरसात के समय यहां पर भक्तों की भीड़ में कमी देखने को मिलती है लेकिन अन्य समय यहां पर मां ज्वाल्पा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी रहती है.

नवरात्र में यहां पर बहुत भीड़ होती और भक्तों के आंकड़ों में वृद्धि हो जाती है. आसपास के रहने वाले लोग यहां पर पूजा सामग्री, भोजन घरेलू सामान आदि की दुकानें हैं और वे यहां आने श्रद्धालुओं पर ही निर्भर हैं. उनके परिवार में कोई भी व्यक्ति बाहर जाकर नौकरी नहीं कर रहा है. मां ज्वाल्पा देवी के आर्शीवाद से ही अपने परिवार का आराम से भरण-पोषण कर रहे हैं.

पौड़ी: मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी धाम भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है. इसका धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व भी है. साथ ही इसका वर्णन केदार खंड में भी किया गया है. जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना साल 1892 में स्वर्गीय दत्त राम अणथ्वाल और उनके बेटे बूथा राम ने की थी.

मां ज्वाल्पा मंदिर में उमड़ता है भक्तों का हुजूम.

यह सिद्धपीठ पूरे साल श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं और इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से बहुत से लोगों के परिवार की आजीविका भी चल रही है.यहां पर मंदिर की पूजा सामग्री, भोजन,घरेलू सामान इत्यादि अलग-अलग दुकानें बनाई गईं हैं और यह लोग पिछले कई सालों से यहां पर रहकर मां ज्वाल्पा के आर्शीवाद से अपनी आजीविका चला रहे हैं.

मंदिर के पुजारी भास्करानंद अणथ्वाल के अनुसार इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सूची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी. सूची के तप से मां ने खुश होकर ज्वाला के रुप में उन्हें दर्शन दिए. जब से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रुप में भक्तों व श्रद्धालुओ की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं.

जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां ज्वाल्पा देवी से मनोकामना मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में लोगों की विवाह भी करवाए जाते हैं साथ ही यहां पर स्थित धर्मशाला में लोगों को निःशुल्क ठहराया जाता है

उन्होंने बताया कि 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने इस मंदिर को 11.82 एकड़ सिंचित भूमि दान में दी थी. ताकि यहां अखंड दीपक हेतु तेल की व्यवस्था के लिए सरसों का उत्पादन हो सके. साथ ही बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी तब मां ने उन्हे दर्शन दिए.

एक मंजिला मंदिर में माता अखंड जोत के रुप में गर्भ गृह में विराजमान है और मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है. मंदिर के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, मां काली मंदिर भी स्थित हैं.

मां ज्वाल्पा के आर्शीवाद से आसपास के लोगो की आजीविका चल रही है. मंदिर के पास स्थित व्यापारियों का कहना है कि वह पिछले 8 से 10 सालों से यहां पर व्यापार कर रहे हैं और उनका पूरा परिवार भी मां ज्वाल्पा के आशीर्वाद से चल रहा है. मंदिर में पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है.

यह भी पढ़ेंः धनतेरस पर बाजारों में उमड़ी भीड़, जाम से निपटने में ट्रैफिक पुलिस के छूटे पसीने

रोज करीबन 100 से 200 लोग मां जालपा के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. हालांकि बरसात के समय यहां पर भक्तों की भीड़ में कमी देखने को मिलती है लेकिन अन्य समय यहां पर मां ज्वाल्पा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी रहती है.

नवरात्र में यहां पर बहुत भीड़ होती और भक्तों के आंकड़ों में वृद्धि हो जाती है. आसपास के रहने वाले लोग यहां पर पूजा सामग्री, भोजन घरेलू सामान आदि की दुकानें हैं और वे यहां आने श्रद्धालुओं पर ही निर्भर हैं. उनके परिवार में कोई भी व्यक्ति बाहर जाकर नौकरी नहीं कर रहा है. मां ज्वाल्पा देवी के आर्शीवाद से ही अपने परिवार का आराम से भरण-पोषण कर रहे हैं.

Intro:मंडल मुख्यालय पौड़ी से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित सिद्धपीठ जालपा देवी धाम इसका धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व भी है साथ ही इसका वर्णन केदार खंड में भी किया गया है। जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना साल 1892 में स्वर्गीय दत्त राम अणथ्वाल और उनके बेटे बूथा राम ने की थी। यह सिद्धपीठ पूरे साल श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं और इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की वजह से बहुत से लोगों के परिवार की आजीविका भी चल रही है यहां पर मंदिर की पूजा सामग्री, भोजन,घरेलू सामान इत्यादि अलग-अलग दुकाने बनाई गई है और यह लोग पिछले कई सालों से यहां पर रहकर माँ ज्वाल्पा के आर्शीवाद से अपनी आजीविका चला रहे हैं।


Body:मंदिर के पुजारी भास्करानंद अणथ्वाल के अनुसार इस स्थान पर दानव राज पुलोम की पुत्री सुची ने भगवान इंद्र को वर के रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी। सूची के तप से मां ने खुश होकर ज्वाला के रुप में उन्हें दर्शन दिए। जब से मां ज्वाल्पा अखंड ज्योति के रुप में भक्तों व श्रद्धालुओ की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। बताया कि यहां पर पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है और जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माँ ज्वालपा देवी से मनोकामना मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है उन्होंने बताया कि इस मंदिर में लोगों की विवाह भी करवाए जाते हैं साथ ही यहां पर स्थित धर्मशाला में लोगों को निशुल्क ठहराया जाता है ल। 18वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा प्रद्युम्न शाह ने इस मंदिर को 11.82 एकड़ सिंचित भूमि दान में दी थी। ताकि यहां अखंड दीपक हेतु तेल की व्यवस्था के लिए सरसों का उत्पादन हो सके साथ ही बताया कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी तब मां ने उन्हे दर्शन दिए। सिद्धपीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर की स्थापना साल 1892 में स्व. दत्तराम अणथ्वाल व उनके पुत्र बूथा राम अणथ्वाल ने की थी। एक मंजिला मंदिर में माता अखंड जोत के रुप में गर्भ गृह में विराजमान है ओर मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है मंदिर के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, काल भैरव मंदिर, मां काली मंदिर भी स्थित हैं।
बाईट-भास्करानंद अणथ्वाल(मंदिर के पुजारी)


Conclusion:मां जालपा के आर्शीवाद से आसपास के लोगो की आजीविका चल रही है। मंदिर के पास स्थित व्यापारियों का कहना है कि वह पिछले 8 से 10 सालों से यहां पर व्यापार कर रहे हैं और उनका पूरा परिवार भी मां जालपा के आशीर्वाद से चल रहा है। बताया कि यहां पर पूरे साल भक्तों का तांता लगा रहता है रोज करीबन 100 से 200 लोग मां जालपा के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। हालांकि बरसात के समय यहां पर भक्तों की भीड़ में कमी देखने को मिलती है लेकिन अन्य समय यहां पर मां जालपा के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी लाइन लगी रहती है। कहा कि नवरात्र में यहां पर बहुत भीड़ होती और भक्तों के आंकड़ों में वृद्धि हो जाती है। आसपास के रहने वाले लोग यहां पर पूजा सामग्री, भोजन घरेलू सामान आदि की दुकानें खुले हुए हैं और यहाँ आने श्रद्धालुओं पर ही निर्भर हैं उनके परिवार में कोई भी व्यक्ति बाहर जाकर नौकरी नहीं कर रहा है। मां जालपा देवी के आर्शीवाद से ही अपने परिवार का आराम से भरण-पोषण कर रहे हैं।
बाईट-हरीश(व्यापारी)
बाईट-मायाराम पांथरी(व्यापारी)
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