पौड़ीः उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में कभी जड़ी-बूटी का भंडारण होता था, जिसका इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के बीमारियों का इलाज करने में किया जाता था, लेकिन मनुष्य ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए इन औषधीय पौधों का अत्यधिक दोहन किया. जिसके फलस्वरूप आज कई औषधीय पौधों की प्रजातियां खतरे में है. स्थानीय लोगों और शोधकर्ताओं का मानना है कि अत्यधिक दोहन, जंगलों में आग और खगोलीय घटनाओं के चलते कई जड़ी-बूटियां विलुप्त हो गई है. जिनका संरक्षण करना बेहद जरूरी है. जिसके लिए अभी से ही सख्त कदम उठाने होंगे.
पौड़ी के स्थानीय निवासी मोहन सिंह का कहना है कि बीते 70 सालों में पहाड़ों से विभिन्न औषधियां विलुप्त हो चुकी है. जैस वन ककड़ी, हत्था जोड़ी आदि अब देखने को नहीं मिल रहे हैं. इनके दोहन के कई कारण देखने को मिल रहे हैं. जिसमें खगोलीय घटनाएं और जंगलों में लगने वाली आग घटनाएं मुख्य हैं. जो औषधीय पौधे जंगलों में बचे हैं, उनके संरक्षण के लिए कड़े कदम उठाने होंगे. इसके लिए पौधालय का निर्माण करना होगा. जिससे इन औषधीय पौधों को संरक्षित किया जा सके.
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वहीं, जीबी पंत इंजीनियरिंग कॉलेज में जैव प्रौद्योगिकी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. ममता बौठियाल ने बताया कि जागरूकता की कमी के चलते आम जनमानस को पहाड़ी क्षेत्रों के औषधीय पौधों की जानकारी नहीं है. हमारे आस पास काफी सारी औषधियां पौधे हैं, लेकिन जानकारी के अभाव के चलते उनके गुणों से परिचित नहीं है. ऐसे में अमूल्य निधि को बचाने के लिए जागरुकता बेहद जरूरी है. हालांकि, सरकार और विभिन्न रिसर्च इंस्टीट्यूट विलुप्त हो रही औषधीय पौधों को बचाने का काम कर रहे हैं.