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गढ़वाल विवि LTC घोटाले की फिर होगी जांच, पुलिस की FR कोर्ट से खारिज - Hemwati Nand Bahuguna Garhwal Central University

गढ़वाल विवि में हुए एलटीसी घोटाले की पुन: जांच होगी. कोर्ट ने पुलिस द्वारा दी गई अंतिम रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. साथ ही मामले में दोबारा से विवेचना करने का आदेश दिया है.

Garhwal University LTC scam will be investigated again
गढ़वाल विवि एलटीसी घोटाले की फिर होगी जांच
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Published : Oct 21, 2021, 10:03 PM IST

श्रीनगर: हेमवती नंनद बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में एलटीसी घोटाले का जिन्न फिर से बाहर आ गया है. कोर्ट ने पुलिस द्वारा दी गई अंतिम रिपोर्ट (एफआर) को खारिज कर दिया है. साथ ही मामले में दोबारा से विवेचना करने का आदेश दिया है. श्रीनगर कोतवाल हरिओम राज चौहान ने कोर्ट का आदेश मिलने की पुष्टि की है.

आरटीआई कार्यकर्ता संतोष ममंगाई की शिकायत पर 17 फरवरी 2016 को कोतवाली में सरकारी धन का दुरुपयोग, धोखाधड़ी और षडयंत्र का केस दर्ज किया था. शिकायतकर्ता अनुसार 2010-14 के बीच एलटीसी का उपयोग करने वाले गढ़वाल विवि के अधिकारियों और कर्मचारियों ने नियमों का उल्लंघन कर धन का दुरुपयोग किया था. सीबीआई ने भी 16 कर्मचारियों में से 13 कर्मचारियों द्वारा 7 लाख 84 हजार 724 रुपये गबन की पुष्टि की थी.

विवेचना के बाद विवेचक ने यह कहते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी कि कर्मियों के खिलाफ कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है. ऐसे में संबंधितों के खिलाफ आरोप पत्र जारी करना न्यायोचित नहीं है. ट्रैवल्स एजेंसी के संबंध में भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है. ऐसे में एजेंसी की जानकारी हासिल करने की कार्रवाई जारी रखते हुए रिपोर्ट को समाप्त किया जाता है.

इसके खिलाफ ममगाईं ने न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रीनगर के न्यायालय में अपील दायर की. न्यायालय में ममगाई ने कहा कि मुकदमे की विवेचना में जानबूझकर देरी की गई है. न्यायालय के आदेश के बाद भी 13 माह की देरी से अभिलेख उपलब्ध कराए गए. विवि से सूचना का अधिकार से प्राप्त 99 शिक्षकों एवं 14 शिक्षणोत्तर कर्मचारियों की सूची पुलिस को उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन विवेचक ने सिर्फ 90 कर्मियों की यात्रा की जांच की.

ये भी पढ़ें: दारमा-व्यास घाटी में फंसे सैलानियों को सेना ने चिनूक से किया रेस्क्यू, महाराष्ट्र के पर्यटक की मौत

उन्होंने कहा अंतिम रिपोर्ट में विवेचक ने उल्लेख किया कि जानकारी के अभाव में कर्मियों से यह अपराध हुआ है. जबकि 90 कर्मियों में से 34 के वाउचर में कोई हेराफेरी नहीं पाई गई. ऐसा कैसा हो सकता है कि एक ही संस्थान में कार्यरत कुछ कर्मियों को नियमों की जानकारी नहीं थी. कुछ ने अतिरिक्त धनराशि को विवि कोष में जमा करा दिया. गबन की गई धनराशि को जमा करने से अपराध समाप्त नहीं हो जाता है. ममगाईं ने इस मामले की पुन: जांच कराने की मांग न्यायालय से की.

पक्षों को सुनने और पत्रावलियों का अध्ययन करने के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट चंद्रेश्वरी सिंह ने आपत्ति को स्वीकारते हुए एफआर को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कोतवाल श्रीनगर को पुन: विवेचना करने के आदेश दिए.

यह था मामला: आरटीआई कार्यकर्ता संतोष ममगाईं ने 2010-14 के बीच शिकायत की थी कि गढ़वाल विवि के शिक्षकों/अधिकारियों ने एलटीसी में हेराफेरी की है. शिक्षकों/अधिकारियों ने एअर इंडिया के जहाज से यात्रा दिखाकर सामान्य एअरलाइन से यात्रा की. सामान्य एअरलाइन का किराया एअर इंडिया से कम होता है. नियमानुसार एलटीसी में एअर इंडिया के जहाज से यात्रा करनी होती है. ऐसा करके उन्होंने नियमों का उल्लंघन करते हुए गलत तरीके से विवि से ज्यादा धनराशि ली.

श्रीनगर: हेमवती नंनद बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में एलटीसी घोटाले का जिन्न फिर से बाहर आ गया है. कोर्ट ने पुलिस द्वारा दी गई अंतिम रिपोर्ट (एफआर) को खारिज कर दिया है. साथ ही मामले में दोबारा से विवेचना करने का आदेश दिया है. श्रीनगर कोतवाल हरिओम राज चौहान ने कोर्ट का आदेश मिलने की पुष्टि की है.

आरटीआई कार्यकर्ता संतोष ममंगाई की शिकायत पर 17 फरवरी 2016 को कोतवाली में सरकारी धन का दुरुपयोग, धोखाधड़ी और षडयंत्र का केस दर्ज किया था. शिकायतकर्ता अनुसार 2010-14 के बीच एलटीसी का उपयोग करने वाले गढ़वाल विवि के अधिकारियों और कर्मचारियों ने नियमों का उल्लंघन कर धन का दुरुपयोग किया था. सीबीआई ने भी 16 कर्मचारियों में से 13 कर्मचारियों द्वारा 7 लाख 84 हजार 724 रुपये गबन की पुष्टि की थी.

विवेचना के बाद विवेचक ने यह कहते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी कि कर्मियों के खिलाफ कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है. ऐसे में संबंधितों के खिलाफ आरोप पत्र जारी करना न्यायोचित नहीं है. ट्रैवल्स एजेंसी के संबंध में भी कोई जानकारी प्राप्त नहीं है. ऐसे में एजेंसी की जानकारी हासिल करने की कार्रवाई जारी रखते हुए रिपोर्ट को समाप्त किया जाता है.

इसके खिलाफ ममगाईं ने न्यायिक मजिस्ट्रेट श्रीनगर के न्यायालय में अपील दायर की. न्यायालय में ममगाई ने कहा कि मुकदमे की विवेचना में जानबूझकर देरी की गई है. न्यायालय के आदेश के बाद भी 13 माह की देरी से अभिलेख उपलब्ध कराए गए. विवि से सूचना का अधिकार से प्राप्त 99 शिक्षकों एवं 14 शिक्षणोत्तर कर्मचारियों की सूची पुलिस को उपलब्ध कराई गई थी, लेकिन विवेचक ने सिर्फ 90 कर्मियों की यात्रा की जांच की.

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उन्होंने कहा अंतिम रिपोर्ट में विवेचक ने उल्लेख किया कि जानकारी के अभाव में कर्मियों से यह अपराध हुआ है. जबकि 90 कर्मियों में से 34 के वाउचर में कोई हेराफेरी नहीं पाई गई. ऐसा कैसा हो सकता है कि एक ही संस्थान में कार्यरत कुछ कर्मियों को नियमों की जानकारी नहीं थी. कुछ ने अतिरिक्त धनराशि को विवि कोष में जमा करा दिया. गबन की गई धनराशि को जमा करने से अपराध समाप्त नहीं हो जाता है. ममगाईं ने इस मामले की पुन: जांच कराने की मांग न्यायालय से की.

पक्षों को सुनने और पत्रावलियों का अध्ययन करने के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट चंद्रेश्वरी सिंह ने आपत्ति को स्वीकारते हुए एफआर को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कोतवाल श्रीनगर को पुन: विवेचना करने के आदेश दिए.

यह था मामला: आरटीआई कार्यकर्ता संतोष ममगाईं ने 2010-14 के बीच शिकायत की थी कि गढ़वाल विवि के शिक्षकों/अधिकारियों ने एलटीसी में हेराफेरी की है. शिक्षकों/अधिकारियों ने एअर इंडिया के जहाज से यात्रा दिखाकर सामान्य एअरलाइन से यात्रा की. सामान्य एअरलाइन का किराया एअर इंडिया से कम होता है. नियमानुसार एलटीसी में एअर इंडिया के जहाज से यात्रा करनी होती है. ऐसा करके उन्होंने नियमों का उल्लंघन करते हुए गलत तरीके से विवि से ज्यादा धनराशि ली.

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