श्रीनगरः उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है. यहां खेती करने में मौसम से लेकर तमाम ऐसी बाधाएं हैं, जो काश्तकारों के लिए जी का जंजाल बन जाती है. लेकिन वैज्ञानिकों ने खेती की ऐसी तकनीक का ईजाद किया है जो किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है. वैज्ञानिक किसानों के साथ मिलकर प्लास्टिक मल्चिंग (प्लास्टिक से ढकना) विधि से ऑरिगेनो (वन तुलसी) का उत्पादन (production of oregano) कर रहे हैं जो किसानों को मुनाफा दे रही है.
मल्चिंग (plastic mulching) से ऑरिगेनो का कम लागत में उत्पादन के साथ ही गुणवत्ता में वृद्धि हुई है. इस विधि में फसल तैयार करने में मानव श्रम भी काफी कम हो गया है. अब एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय का वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग इस विधि का बड़े पैमाने में प्रयोग करने हेतु काश्तकारों का सहयोग कर रहा है. विभाग के मुताबिक, प्लास्टिक मल्चिंग से उत्पादन में लगभग 50 प्रतिशत का फायदा हुआ है.
मौजूदा समय में पिज्जा व पास्ता समेत मसालों में ऑरिगेनो का बहुतायत में प्रयोग हो रहा है. ऑरिगेनो खाने का जायका बढ़ाने का काम आता है. विदेशों में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. लेकिन भारत में अभी इसका कमर्शियल उत्पादन कम है. इसे देखते हुए जैव प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के हिमालयन बायो रिसोर्स मिशन के तहत केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय के वानिकी एवं प्राकृतिक संसाधन विभाग के साथ मिलकर इसके व्यवसायिक उत्पादन पर जोर दे रहा है.
दरअसल, काश्तकारों ने ऑरिगेनो की सामान्य तरीके से खेती की. लेकिन इससे काफी कम उत्पादन मिला. साथ ही खरपतवार उगने और मिट्टी की वजह से इसकी गुणवत्ता पर भी असर पड़ा. बाजार में इसकी कीमत नहीं मिल पाई. इसे देखते हुए वानिकी विभाग ने नर्सरी में अलग-अलग विधि से इसका उत्पादन किया. प्लास्टिक मल्चिंग विधि से सबसे अच्छा उत्पादन मिला. जमीन के ढके होने की वजह से खर पतवार बिल्कुल समाप्त हो गई. खाद और पानी भी कम देना पड़ा. इसमें श्रम भी कम लगाना पड़ा. जिससे इसकी लागत घट गई.
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विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र बुटोला बताते हैं कि एक नाली भूमि में खुले में खेती करने में तीन से चार हजार रुपये खर्च हो रहा है. जबकि मल्चिंग विधि में डेढ़ हजार रुपए का खर्चा आ रहा है. जिससे लगभग तीन हजार रुपए की बचत हो रही है. पत्तियां भी चौड़ी हैं. जिससे उत्पादन ज्यादा मिल रहा है. प्लास्टिक से जड़ों के ढके होने की वजह से इसकी पत्तियों पर मिट्टी नहीं लग रही है. जो बाजार की दृष्टि से उपयोगी है. उन्होंने बताया कि टिहरी जिले के भिलंगना और जाखणीधार ब्लॉक में 10-10 नाली में इस विधि से ऑरिगेनो के पौधों को उगाया जा रहा है.
क्या है प्लास्टिक मल्चिंगः इस विधि में सिर्फ पौधे के उगने वाला क्षेत्र ही खुला रहता है. शेष जमीन प्लास्टिक से ढकी होती है. इससे कई फायदे होते है. खाद सिर्फ पौधे के उगने के क्षेत्र में डाली जाती है. इससे खर पतवार नहीं उगते हैं. साथ ही जमीन में नमी भी बनी रहती है. मेहनत काफी कम हो जाती है. जबकि खाद पूरी तरह से पौधे के काम आती है. इससे उत्पादन पर असर पड़ता है.
यह है ऑरिगेनोः ऑरिगेनो या वन तुलसी बेहद गुणकारी पौधा है. इसका वैज्ञानिक नाम ऑरिगेनम वल्गार है. यह मुख्य रुप से यूरोपीय देशों में व्यापार की दृष्टि से उगाया जाता है. पिज्जा और पास्ता में ओरिगेना की सूखी पत्तियों का अलग से स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है. ऑरिगेनो की चाय, तेल, दवाइयां और मसाले बनाए जाते हैं.