श्रीनगरः हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर के 9वें दीक्षांत समारोह (HNB Garhwal University Organises 9th Convocation) में उत्तराखंड के मशहूर गढ़वाली लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को डॉक्टरेट की उपाधि दी गई. नरेंद्र सिंह नेगी को लोककला और संगीत में अतुलनीय योगदान के लिए सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने डॉक्टर ऑफ लेटर्स की उपाधि प्रदान की. इस दौरान डॉ. नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि उनके सम्मान से गढ़वाली बोली भी सम्मानित हुई है.
डॉ. नेगी ने कहा कि, गढ़वाल विश्वविद्यालय (hemwati nandan garhwal university srinagar) द्वारा उन्हें दिए जाने वाला ये सम्मान मातृभूमि उत्तराखंड और इसके साहित्यकारों, लोकगायकों, कलाकारों का सम्मान है. उन्होंने कहा कि, वो हमेशा गढ़वाली भाषा में ही लिखते और गाते हैं और ये सम्मान उन सब लिखने वालों का है जो गढ़वाली में लिख रहे हैं, साथ ही गढ़वाली बोलते हैं, समझते हैं. इस अवसर पर उन्होंने विश्वविद्यालय के माध्यम से लोकभाषा और लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने की अपील की.
गौर हो कि नौवें दीक्षांत समारोह में 147 पीएचडी, 10 एमफिल और 3659 स्नातकोत्तर उपाधियां प्रदान की गई हैं. इसके अलावा विभिन्न विषयों में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को 59 स्वर्ण पदक और दस हजार रुपये नकद पुरुस्कार दिया गया.
कौन हैं डॉ. नरेंद्र सिंह नेगीः डॉ. नरेंद्र सिंह नेगी का जन्म 12 अगस्त 1949 को पौड़ी जिले में हुआ. उनके पिता उमराव सिंह नेगी आर्मी में नायब सूबेदार थे और माता समुद्र देवी एक गृहिणी थीं. डॉक्टर नेगी भी आर्मी में भर्ती हो कर अपने पिता की तरह देश की सेवा करना चाहते थे पर किसी कारणवश यह संभव ना हो पाया.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे गांवों में इंफ्रास्ट्रक्चर हो रहा तैयार, जल्द होंगे आबाद: CDS
पढ़ाई खत्म करने के बाद डॉ. नेगी ने अपने बड़े भाई से तबला सीखा. ETV भारत से एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि उनकी गीत यात्रा 1974 से शुरू हुई. तब उन्होंने एक गीत लिखा था. जिसे उन्होंने गाकर अपने साथियों को सुनाया. उस समय सभी ने उनके प्रयास को सराहते हुए उन्हें प्रोत्साहन दिया. दोस्तों से मिले प्यार और सहयोग के बाद उनके गीत लिखने और गाने का सिलसिला शुरू हुआ.
1976 में आकाशवाणी से जुड़े 'नेगी दा': लोक गायक डॉ नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया सन 1976 से उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के लिए काम करना शुरू किया. उस समय आकाशवाणी लखनऊ में प्रोग्रामिंग एग्जीक्यूटिव केशव अनुरागी के अंडर में उन्होंने कैजुअल कलाकार के रूप में काम किया. तब उन्होंने उनके गानों की तारीफ करते हुए उन्हें ये सिलसिला जारी रखने को कहा था. नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया वह ज्यादातर पहाड़ के पारंपरिक लोकगीत गाते थे. जिसके बाद उन्होंने अपनी रचनाएं भी करनी शुरू कर दी. इसके बाद लगातार उनका सफर जारी रहा.
उत्तरायणी कार्यक्रम ने बनाया लोकप्रिय: उन्होंने बताया लोग उन्हें रेडियो पर बहुत ज्यादा पसंद करते थे. आकाशवाणी में लखनऊ से चलने वाले उत्तरायणी कार्यक्रम ने उन्हें काफी लोकप्रिय बनाया. इस कार्यक्रम के जरिए वह पहाड़ों से लेकर मैदानों में बसे प्रवासी उत्तराखंडियों तक पहुंचे. 1978 में आकाशवाणी का नजीबाबाद केंद्र खुला. जिसके बाद वे पहाड़ों के और करीब हो गये. नजीबाबाद से लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत उत्तराखंड के गांव-गांव तक पहुंचने लगे. 1982 से संगीत के क्षेत्र में ऑडियो कैसेट का दौर शुरू हुआ. जिसके बाद नरेंद्र सिंह नेगी ने भी ऑडियो कैसेट के रूप में अपने गाने रिलीज किये. जिसके बाद उन्हें प्रसिद्धि मिली.
ये भी पढ़ेंः गढ़वाल विवि का दीक्षांत समारोह: CDS रावत बोलेः नौकरी ढूंढने नहीं देने वाले बनें छात्र
हजार से ज्यादा गीतों का रिकॉर्डः डॉ. नेगी ने एक हजार से अधिक गीत गाए हैं. उन्होंने अपना पहला गीत पहाड़ों की महिलाओं के कष्टों से भरे जीवन पर आधारित गाया. इस गीत को लोगों ने बहुत पसंद किया. इस गीत के बोल 'सैरा बसग्याल बोण मा, रुड़ी कुटण मा, ह्युंद पिसी बितैना, म्यारा सदनी इनी दिन रैना' (यानी बरसात जंगलों में, गर्मियां कूटने में, सर्दियां पीसने में बिताई, मेरे हमेशा ऐसे ही दिन रहे) लोगों के जीवन को छु गए थे. इस गीत की उपल्बधि के बाद उन्होंने उत्तराखंड के गायन की हर एक शैली जैसे जागर, मांगल, बसंती झुमेला, औज्यो की वार्ता, चौंफला, थड्या आदि में भी गाया हैं.
सम्मानः डॉ. नरेंद्र सिंह नेगी को गढ़वाल सभा चंडीगढ़ द्वारा गढ़गौरव सम्मान, गढ़़वाल भातृमंडल मुंबई द्वारा गढ़रत्न सम्मान, उत्तराखंड द्वारा आकाशवाणी सम्मान, नगर निगम श्रीनगर गढ़वाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ लोकगायक सम्मान दिया गया है. हालांकि इसके अलावा भी डॉ. नेगी को कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है.