कोटद्वारः उत्तराखंड में परंपरागत जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी कड़ी में नमामि गंगे योजना के तहत द्वारीखाल ब्लॉक के 40 गांवों और यमकेश्वर ब्लॉक के 75 गांवों में जैविक कृषि खेती जागरूक अभियान पर काम किया जा रहा है. इसका मकसद गंगा और गंगा के सहायक नदियों से सटे गांवों में रासायनिक खाद के प्रयोग को कम करना है. उसकी जगह पर गांवों को परंपरागत जैविक खेती के लिए बड़े प्रोजेक्ट के रूप काम किया जा रहा है.
बता दें कि पौड़ी का अधिकांश कृषि भू भाग गंगा और गंगा की सहायक नदियां से जुड़ा है. नमामि गंगे योजना के तहत लक्ष्य 2023-2024 तक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में गंगा के किनारे वाले गांवों में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. यमकेश्वर विधानसभा के 115 गांवों में नमामि गंगे योजना के तहत जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पौड़ी कृषि विभाग लगातार प्रयास कर रहा है. परंपरागत कृषि विकास विभाग, राष्ट्रीय कृषि विकास विभाग, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत सहयोगी के रूप में किसानों को जागरूक भी किया जा रहा है.
उत्तराखंड के परंपरागत मोटे अनाज कोदा/मंडुवा, झंगोरा, चौलाई, कौणी, गहत की दाल, लाल चावल की आज देश विदेश में भारी मांग है. ये मोटे अनाज पौष्टिकता से भरे होते हैं. साथ ही स्वास्थ्य के लिए लिहाज से ही उपयोगी माने जाते हैं. पहाड़ी क्षेत्रों के मोटे अनाजों की मांग को देखते हुए जिला प्रशासन ने बहुउद्देशीय सहकारी समिति को किसानों से उचित दामों पर मंडुवा खरीदने के निर्देश दिए हैं.
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उत्तराखंड के मोटे अनाज पौष्टिकता से भरे होने की वजह से अब चाइनीज फास्ट फूड में भी इसका इस्तेमाल होने लगा है. मंडुवे के आटे से मोमोज, नूडल्स, बर्गर बनाए जा रहे हैं. जिसकी बाजार में मांग भी बढ़ने लगी है. इसके अलावा इसके आटे से बिस्किट आदि भी तैयार किया जा रहा है. जो सेहत के लिए भी सही माने जाते हैं.
वहीं, कृषि अधिकारी अरविंद भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड को पूर्व की तरह परंपरागत जैविक खेती में विश्व पटल पर उभारने का काम किया जा रहा है. पौड़ी के यमकेश्वर और द्वारीखाल ब्लॉक के 115 गांवों में केंद्र सरकार की विभिन्न योजना के साथ किसानों को परंपरागत जैविक खेती से आजीविका से जोड़ने के लिए जागरूकता लाने का कार्य कर रहे हैं.