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प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए भूकंप साबित हो रहे वरदान, शोध में हुआ खुलासा

प्राकृतिक जल स्रोतों को लेकर बड़ा शोध हुआ है. जिसमें पता चला है कि भूकंप से प्राकृतिक जल स्रोतों को लाभ होता है. शोध में भूकंप को प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए वरदान बताया गया है.

Earthquakes are proving to be a boon for natural water sources
प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए भूकंप साबित हो रहे वरदान
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Published : May 28, 2022, 8:41 PM IST

श्रीनगर: प्राकृतिक जल स्रोतों को लेकर केंद्रीय गढ़वाल विवि. भू विज्ञान के शोधकर्ता ने बड़ा खुलासा किया है. केंद्रीय गढ़वाल विवि. भू विज्ञान के शोधकर्ता ने बताया कि प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए भूकंप वरदान साबित होता है. शोध में पता चला है कि प्राकृतिक जलधाराओं के लिए भूकंप से होने वाली हलचल अच्छी होती है.

भूकंप के झटकों से बनने वाली दरारों के सहारे बारिश का पानी जमीन के अंदर पहुंचता है, जो जल धाराओं के रूप में जमीन से बाहर भी निकलता है. केंद्रीय गढ़वाल विवि भूविज्ञान के शोधकर्ता डॉ आकाश मोहन रावत, विवि. के टिहरी परिसर के भू वैज्ञानिक प्रो एसएस बागड़ी, राष्ट्रीय जल विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ सुधीर कुमार, भारतीय वन्यजीव संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रुचि बडोला का ये शोध नेचर पत्रिका में भी प्रकाशित हो चुका है. शोधकर्ता डॉ आकाश मोहन रावत के अनुसार जहां-जहां थ्रस्ट लाइन हैं, वहां प्राकृतिक पेयजल स्रोत्र भरपूर मात्रा में है.

प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए भूकंप साबित हो रहे वरदान

पढ़ें- देहरादून में जमीन पर अवैध कब्जे का मामला, पीड़ित पक्ष ने एसपी सिटी से लगाई गुहार

शोधकर्ताओं ने जोशीमठ से श्रीनगर तक अलकनंदा घाटी के अलग-अलग गांवों में स्थित स्रोतों का अध्ययन किया. इसमें सामने आया कि जिन स्थानों में थ्रस्ट लाइन गुजर रही है, वहां स्रोत का घनत्व ज्यादा है. डॉ आकाश बताते हैं कि इसमें देखा गया कि जलधाराओं के आइसोटोप के अनुपात में भिन्नता है. थ्रस्ट लाइन की दरारों के सहारे भूमिगत जल जमा हो रहा है.

श्रीनगर: प्राकृतिक जल स्रोतों को लेकर केंद्रीय गढ़वाल विवि. भू विज्ञान के शोधकर्ता ने बड़ा खुलासा किया है. केंद्रीय गढ़वाल विवि. भू विज्ञान के शोधकर्ता ने बताया कि प्राकृतिक जल स्रोतों के लिए भूकंप वरदान साबित होता है. शोध में पता चला है कि प्राकृतिक जलधाराओं के लिए भूकंप से होने वाली हलचल अच्छी होती है.

भूकंप के झटकों से बनने वाली दरारों के सहारे बारिश का पानी जमीन के अंदर पहुंचता है, जो जल धाराओं के रूप में जमीन से बाहर भी निकलता है. केंद्रीय गढ़वाल विवि भूविज्ञान के शोधकर्ता डॉ आकाश मोहन रावत, विवि. के टिहरी परिसर के भू वैज्ञानिक प्रो एसएस बागड़ी, राष्ट्रीय जल विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ सुधीर कुमार, भारतीय वन्यजीव संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ रुचि बडोला का ये शोध नेचर पत्रिका में भी प्रकाशित हो चुका है. शोधकर्ता डॉ आकाश मोहन रावत के अनुसार जहां-जहां थ्रस्ट लाइन हैं, वहां प्राकृतिक पेयजल स्रोत्र भरपूर मात्रा में है.

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शोधकर्ताओं ने जोशीमठ से श्रीनगर तक अलकनंदा घाटी के अलग-अलग गांवों में स्थित स्रोतों का अध्ययन किया. इसमें सामने आया कि जिन स्थानों में थ्रस्ट लाइन गुजर रही है, वहां स्रोत का घनत्व ज्यादा है. डॉ आकाश बताते हैं कि इसमें देखा गया कि जलधाराओं के आइसोटोप के अनुपात में भिन्नता है. थ्रस्ट लाइन की दरारों के सहारे भूमिगत जल जमा हो रहा है.

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