पौड़ी: शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri) में मां ज्वालपा देवी मंदिर (Maa Jwalpa Devi Temple) में भक्त भारी संख्या में पहुंचते हैं. नवरात्रि के नौंवे दिन भक्त मां के चरणों में शीश नवाने और दर्शन करने पहुंचते हैं. इस दिन मंदिर में कन्या पूजन को विधि विधान से संपन्न किया जाता है. वहीं, मंदिर में सदैव जलने वाली अखंड जोत भक्तों के मन में मां के प्रति सच्ची आस्था भर देती है. स्कंदपुराण में भी इस बात का जिक्र है कि इस मंदिर में दैत्य राज की पुत्री देवी शची ने देवराज इंद्र को पाने के लिए यहां मां भगवती की आराधना की थी. तब से मां भगवती की कृपा यहां पहुंचने वाले भक्तों पर बरसती है.
पौड़ी जिले स्थित मां ज्वालपा देवी मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था (Devotees have deep faith in Jwalpa Devi temple) को साफ बयां करती है. भक्तों मां के दर्शनों को दूर-दूर से यहां आते हैं. पौड़ी कोटद्वार नेशनल हाईवे (Pauri Kotdwar National Highway) में होने के कारण ये मंदिर काफी सुगम स्थान पर है. मंदिर नयार नदी के तट पर स्थित हैं. यहां एक पौराणिक सिद्धपीठ भी है. जिसकी महत्वता भक्त स्वयं बयां करते हैं. मान्यता है कि इस सिद्धपीठ में पहुंचने वाले भक्तों की हर मुराद को मां भगवती पूरा करती हैं. ज्वालपा देवी सिद्धपीठ मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्रि का विशेष महत्व है. इस दौरान मां के लिए यहां विशेष पूजा पाठ का आयोजन होता है. भक्त मां के जयकारे लगाकर आशीर्वाद लेते हैं.
धार्मिक मान्यता अनुसार स्कंदपुराण में देवी शची ने देवराज इंद्र को पाने के लिए यहां मां पार्वती की आराधना की थी. जो साकार भी हुई. यही वजह है कि यहां अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की मनोकामना को लेकर इस सिद्धपीठ मंदिर में पहुंचती हैं. दरअसल, ज्वाल्पा देवी थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी है.
स्कंदपुराण अनुसार, सतयुग में दैत्यराज पुलोम की पुत्री शची ने देवराज इंद्र को पति रूप में पाने के लिए नयार नदी के किनारे ज्वाल्पा धाम में हिमालय की अधिष्ठात्री देवी मां पार्वती की तपस्या की थी. मां पार्वती ने शची की तपस्या पर प्रसन्न होकर उसे दीप्त ज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन देते हुए उनकी मनोकामना पूरी की. वहीं, मां पार्वती के ज्वाला रूप में दर्शन देने के कारण ही इस स्थान का नाम ज्वालपा पड़ा.
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देवी पार्वती के दीप्तिमान ज्वाला के रूप में प्रकट होने के प्रतीक स्वरूप ज्वालपा मंदिर में अखंड जोत यहां निरंतर प्रज्ज्वलित होती रहती है. इस प्रथा को यथावत रखने के लिए प्राचीन काल से निकटवर्ती मवालस्यूं, कफोलस्यूं, खातस्यूं, रिंगवाडस्यूं, घुड़दौड़स्यूं और गुराडस्यूं पट्टयों के गांवों से सरसों को एकत्रित किया जाता है. जिसके बाद मां के अखंड दीप को प्रज्वलित रखने के लिए तेल की व्यवस्था की जाती है. ये माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने यहां मां की पूजा की थी, तब मां ने उन्हे दर्शन दिए.
पौड़ी से ज्वालपा मंदिर की दूरी 35 किलोमीटर है. जबकि कोटद्वार से 75 किलोमीटर है. ज्वालपा मंदिर में भक्तों के पहुंचने से यहां पूजा अर्चना का सामान बेचने वाले छोटे व्यापारियों के चेहरे खिले रहते हैं. नवरात्र के 9 दिन मंदिर में भक्तो की भीड़ बढ़ने से व्यापारियों का कारोबार भी खूब फल फूल रहा हैं.
वहीं, सरोवर नगरी नैनीताल में भी मां दुर्गा महोत्सव बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. मां नैना देवी मंदिर प्रांगण में स्थापित दुर्गा पंडाल में भक्त भारी संख्या में पहुंचकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. मंदिर समिति मां दुर्गा की मूर्ति पुरे रीति रिवाजों और परंपराओं के अनुसार प्राण प्रतिष्ठा कर भक्तों के दर्शनो के लिए खोला गया.
मां नयना देवी मंदिर में पूजा (Worship at Maa Naina Devi Temple) करने के लिए सैकड़ों भक्तों का तांता लग गया. मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले मां को 9 जल स्रोत की धाराओं से स्नान कराया गया. जिसके बाद बंगाली रीति रिवाज और वाद्य यंत्रों के साथ मां की आरती की गई. नैनीताल में आयोजित मां दुर्गा महोत्सव 5 अक्टूबर तक चलेगा. दशहरे के दिन मां के डोले को नगर भ्रमण कराया जाएगा. जिसके बाद डोले को नैनीझील में विसर्जन कर दिया जाएगा.