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पौड़ी: कांडा मेले में बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु, मां भगवती का लिया आशीर्वाद

देहलचौरी स्थित मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में लगने वाला कांडा मेला कभी पशुबलि के लिए विख्यात था. यहां सैकड़ों भैंसें और बकरों को बलि मां काली को चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब गढ़वाल में पशुबलि के लिए प्रसिद्ध रहे इस स्थल पर पिछले कई वर्षों से बलिप्रथा पूरी तरह से खत्म हो गई है.

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Published : Oct 27, 2022, 5:44 PM IST

पौड़ी: कोट ब्‍लॉक के अंतर्गत देहलचौरी स्थित मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में दो दिवसीय कांडा मेला बुधवार से शुरू हो गया है. इस दो दिवसीय मेले के पहले दिन श्रद्दालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. परंपरानुसार कांडा गांव के मंदिर से मां भगवती की डोली ढोल नगाड़ों के साथ सिद्धपीठ मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर पहुंची. ऐसे में मां भगवती की यह डोली एक महीने तक मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में ही रहेगी. ऐसे में यहां बड़ी संख्या में मनौतियां लेकर पहुंचे श्रद्धालुओं ने मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में 50 से अधिक निशाण चढ़ाए. आज इस मेले का आखिरी दिन है.

बता दें कि श्रीनगर गढ़वाल से 20 किलोमीटर देहलचौरी स्थित मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में लगने वाला कांडा मेला कभी पशुबलि के लिए विख्यात था. यहां सैकड़ों भैंसें और बकरों को बलि मां काली को चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब गढ़वाल में पशुबलि के लिए प्रसिद्ध रहे इस स्थल पर पिछले कई वर्षों से बलिप्रथा पूरी तरह से खत्म हो गई है. हालांकि, बलिप्रथा खत्म होने के बाद भी कांडा मेले का महत्व कम नहीं हुआ है. क्षेत्र की जनता को इस मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है.

पढ़ें- उत्तराखंड में बढ़ा हिम तेंदुओं का कुनबा, 'हिमालय के भूत' को रास आ रहा देवभूमि का वातावरण

कांडा मेला इस बार दीपावली के दूसरे दिन शुरू हुआ. सूर्यग्रहण के चलते मंदिर समिति द्वारा बुधवार को भैया दूज पर्व पर पौराणिक मेले का आयोजन किया गया. वहीं, भैया दूज के अवकाश होने के चलते बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और श्रद्धालुओं ने कांडा मेले में माता के दर्शन किये. मान्यता है कि कामदाह पर्वत पर माता चंद्रबदनी की छोटी बहन मंजूमती घोर तपस्या में लीन थी. माता मंजूमती को घोर तपस्या में लीन देख दो राक्षसों ने उनके तप को भंग करने का प्रयास किया. जिस पर भोलेनाथ महादेव ने मां काली का आह्वान कर मंजूमति का रूप धारण कर उन दो दानवों का वध किया. तभी से हर वर्ष माता के दर्शनों के लिए इस स्थान पर कांडा मेला या मंजूघोष मेले आयोजन किया जाता है.

वहीं, मंदिर में लगने वाले इस मेले में माता की पश्वा आज भी अपने भक्तों पर प्रकट होती है. ऐसे में श्रद्धालु ढोल दमाऊ की थाप व देवधुनों पर थिरकते हुए देवी पर ध्वजा रूपी निशाण चढ़ाकर वापस लौट जाते हैं. इस दौरान झूमते गाते ग्रामीण जब मंदिर में पहुंचते हैं तो वहां का माहौल देव तुल्य हो जाता है..

पौड़ी: कोट ब्‍लॉक के अंतर्गत देहलचौरी स्थित मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में दो दिवसीय कांडा मेला बुधवार से शुरू हो गया है. इस दो दिवसीय मेले के पहले दिन श्रद्दालुओं की भारी भीड़ उमड़ी. परंपरानुसार कांडा गांव के मंदिर से मां भगवती की डोली ढोल नगाड़ों के साथ सिद्धपीठ मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर पहुंची. ऐसे में मां भगवती की यह डोली एक महीने तक मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में ही रहेगी. ऐसे में यहां बड़ी संख्या में मनौतियां लेकर पहुंचे श्रद्धालुओं ने मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में 50 से अधिक निशाण चढ़ाए. आज इस मेले का आखिरी दिन है.

बता दें कि श्रीनगर गढ़वाल से 20 किलोमीटर देहलचौरी स्थित मंजूघोषेश्वर महादेव मंदिर में लगने वाला कांडा मेला कभी पशुबलि के लिए विख्यात था. यहां सैकड़ों भैंसें और बकरों को बलि मां काली को चढ़ाई जाती थी, लेकिन अब गढ़वाल में पशुबलि के लिए प्रसिद्ध रहे इस स्थल पर पिछले कई वर्षों से बलिप्रथा पूरी तरह से खत्म हो गई है. हालांकि, बलिप्रथा खत्म होने के बाद भी कांडा मेले का महत्व कम नहीं हुआ है. क्षेत्र की जनता को इस मेले का बेसब्री से इंतजार रहता है.

पढ़ें- उत्तराखंड में बढ़ा हिम तेंदुओं का कुनबा, 'हिमालय के भूत' को रास आ रहा देवभूमि का वातावरण

कांडा मेला इस बार दीपावली के दूसरे दिन शुरू हुआ. सूर्यग्रहण के चलते मंदिर समिति द्वारा बुधवार को भैया दूज पर्व पर पौराणिक मेले का आयोजन किया गया. वहीं, भैया दूज के अवकाश होने के चलते बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और श्रद्धालुओं ने कांडा मेले में माता के दर्शन किये. मान्यता है कि कामदाह पर्वत पर माता चंद्रबदनी की छोटी बहन मंजूमती घोर तपस्या में लीन थी. माता मंजूमती को घोर तपस्या में लीन देख दो राक्षसों ने उनके तप को भंग करने का प्रयास किया. जिस पर भोलेनाथ महादेव ने मां काली का आह्वान कर मंजूमति का रूप धारण कर उन दो दानवों का वध किया. तभी से हर वर्ष माता के दर्शनों के लिए इस स्थान पर कांडा मेला या मंजूघोष मेले आयोजन किया जाता है.

वहीं, मंदिर में लगने वाले इस मेले में माता की पश्वा आज भी अपने भक्तों पर प्रकट होती है. ऐसे में श्रद्धालु ढोल दमाऊ की थाप व देवधुनों पर थिरकते हुए देवी पर ध्वजा रूपी निशाण चढ़ाकर वापस लौट जाते हैं. इस दौरान झूमते गाते ग्रामीण जब मंदिर में पहुंचते हैं तो वहां का माहौल देव तुल्य हो जाता है..

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