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हिंदी-अंग्रेजी में तो बहुत सुनी होंगी..अब सुनें संस्कृत में क्रिकेट कमेंट्री

पौड़ी में खेलकूद प्रतियोगिता में संस्कृत में कमेंट्री की गई. साथ ही इस दौरान लोगों से संस्कृत को बढ़ावा देने की अपील की.

commentary in sanskrit
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Published : Nov 20, 2019, 3:15 PM IST

Updated : Nov 21, 2019, 10:06 PM IST

पौड़ी: क्रिकेट कमेंट्री तो आपने काफी बार सुनी होगी लेकिन ज्यादातर अंग्रेजी या हिंदी भाषा में, आज हम आपको संस्कृत में कमेंट्री सुनाने जा रहे हैं. ये अनोखा प्रयोग किया गया है उत्तराखंड के पौड़ी जिले में. दरअसल, यहां संस्कृत विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता के दौरान संस्कृत में कमेंट्री की गई है. यहां मौजूद अन्य छात्रों ने इस दौरान उसका वीडियो रिकॉर्ड किया. संस्कृत में अनोखी कमेंट्री सुनने के लिये सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल हो रहा है.

उत्तराखंड की दूसरी राजभाषा का दर्जा हासिल करने वाली संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, जिससे सभी भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है. तेजी से बदलते समय के साथ हमारी ये धरोहर भी हमसे दूर हो गई है. इस बदलाव में कई अच्छी चीजे हुईं तो कहीं कुछ हमसे पीछे छूटता भी गया, इसी बदलते समाज में संस्कृत भाषा ख़त्म होने की कगार पर है. लेकिन संस्कृति और विरासत को बनाए रखने के लिए शिक्षा विभाग से जुड़े कुछ लोगों ने पहल की है, जिसमें संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है.

अब सुनें संस्कृत में क्रिकेट कमेंट्री.

पढ़ें-प्रयागराज की तर्ज पर हरिद्वार कुंभ में भी सजेंगी दीवारें, दिखेगी देवसंस्कृति की झलक

पौड़ी के जनपदीय संस्कृत विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है. प्रतियोगिता में दौड़, लंबीकूद, सूत्र स्मरण जैसे अन्य खेलकूद में बच्चे बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य अपनी धरोहर और पौराणिक संस्कृति को फिर से पहचान दिलाने की है. प्रतियोगिता में जनपद के 11 संस्कृत विद्यालयों के 200 से अधिक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया. खेलकूद प्रतियोगिता में संस्कृत में कमेंट्री के साथ ही छात्र-छात्राओं को इसके महत्व के बारे में बताया गया.

पौड़ी के संस्कृति विद्यालय में आयोजित प्रतियोगिता में बतौर मुख्य अतिथि अपर निदेशक संस्कृति शिक्षा वाजश्रवा आर्य ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंन कहा कि संस्कृत भाषा बहुत पुरानी है यह केवल कर्मकांड में ही नहीं रहनी चाहिए. इस भाषा को व्यावहारिक रूप भी देना चाहिए. जिससे लोग रोजमर्रा के जिंदगी में इसका प्रयोग करें. इस तरह के आयोजन और प्रतियोगिता की मदद संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जाना है. प्रतियोगिता में संस्कृति भाषा में कमेंट्री इसलिए की जा रही है, जिससे लोग इस भाषा के महत्व को समझ सके.

भारत देश जहां कभी संस्कृत भाषा सर्वोपरी थी, आज उसकी जगह अंग्रेजी ने ले ली है. हमारे देश में इंग्लिश बोलना तो शान की बात मानी जाती है और इसके सीखने की ललक ऐसी है कि जगह-जगह इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स चलते हैं. किसी भाषा को अपनाना, उसे सीखना गलत नहीं है लेकिन इस अंधी दौड़ में अपनी भाषा को भूल जाना कहां तक सही है?

पौड़ी: क्रिकेट कमेंट्री तो आपने काफी बार सुनी होगी लेकिन ज्यादातर अंग्रेजी या हिंदी भाषा में, आज हम आपको संस्कृत में कमेंट्री सुनाने जा रहे हैं. ये अनोखा प्रयोग किया गया है उत्तराखंड के पौड़ी जिले में. दरअसल, यहां संस्कृत विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता के दौरान संस्कृत में कमेंट्री की गई है. यहां मौजूद अन्य छात्रों ने इस दौरान उसका वीडियो रिकॉर्ड किया. संस्कृत में अनोखी कमेंट्री सुनने के लिये सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल हो रहा है.

उत्तराखंड की दूसरी राजभाषा का दर्जा हासिल करने वाली संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, जिससे सभी भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है. तेजी से बदलते समय के साथ हमारी ये धरोहर भी हमसे दूर हो गई है. इस बदलाव में कई अच्छी चीजे हुईं तो कहीं कुछ हमसे पीछे छूटता भी गया, इसी बदलते समाज में संस्कृत भाषा ख़त्म होने की कगार पर है. लेकिन संस्कृति और विरासत को बनाए रखने के लिए शिक्षा विभाग से जुड़े कुछ लोगों ने पहल की है, जिसमें संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है.

अब सुनें संस्कृत में क्रिकेट कमेंट्री.

पढ़ें-प्रयागराज की तर्ज पर हरिद्वार कुंभ में भी सजेंगी दीवारें, दिखेगी देवसंस्कृति की झलक

पौड़ी के जनपदीय संस्कृत विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है. प्रतियोगिता में दौड़, लंबीकूद, सूत्र स्मरण जैसे अन्य खेलकूद में बच्चे बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य अपनी धरोहर और पौराणिक संस्कृति को फिर से पहचान दिलाने की है. प्रतियोगिता में जनपद के 11 संस्कृत विद्यालयों के 200 से अधिक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया. खेलकूद प्रतियोगिता में संस्कृत में कमेंट्री के साथ ही छात्र-छात्राओं को इसके महत्व के बारे में बताया गया.

पौड़ी के संस्कृति विद्यालय में आयोजित प्रतियोगिता में बतौर मुख्य अतिथि अपर निदेशक संस्कृति शिक्षा वाजश्रवा आर्य ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंन कहा कि संस्कृत भाषा बहुत पुरानी है यह केवल कर्मकांड में ही नहीं रहनी चाहिए. इस भाषा को व्यावहारिक रूप भी देना चाहिए. जिससे लोग रोजमर्रा के जिंदगी में इसका प्रयोग करें. इस तरह के आयोजन और प्रतियोगिता की मदद संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जाना है. प्रतियोगिता में संस्कृति भाषा में कमेंट्री इसलिए की जा रही है, जिससे लोग इस भाषा के महत्व को समझ सके.

भारत देश जहां कभी संस्कृत भाषा सर्वोपरी थी, आज उसकी जगह अंग्रेजी ने ले ली है. हमारे देश में इंग्लिश बोलना तो शान की बात मानी जाती है और इसके सीखने की ललक ऐसी है कि जगह-जगह इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स चलते हैं. किसी भाषा को अपनाना, उसे सीखना गलत नहीं है लेकिन इस अंधी दौड़ में अपनी भाषा को भूल जाना कहां तक सही है?

Intro:आधुनिकता के इस दौर में हम अपनी संस्कृति को पीछे छोड़ते चले आ रहे हैं लेकिन हमारी संस्कृति हमारी पहचान है और इसके लिए शिक्षा में महकमा संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार और उसके महत्व को देखते हुए उसका अधिक से अधिक प्रयोग करने का प्रयास कर रहा है वही संस्कृत विद्यालयों में होने वाले खेलकूद के दौरान भी संस्कृत भाषा का प्रयोग कर लोगों को इस भाषा की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है और जो संस्कृत भाषा हम भूलते जा रहे हैं उसे पुनर्जीवित किया जा रहा है। संस्कृत विद्यालय में हो रहे खेलकूद में भी संस्कृत भाषा से ही कॉमेंट्री की जाएगी जिसे की यहां पर आने वाले दर्शक भी संस्कृत भाषा को समझ और जान पाएंगे।Body:देवभूमि में संस्कृति शिक्षा को बढ़ावा देने और विलुप्त की कगार में पहुंच चुकी संस्कृति भाषा और संस्कृति शिक्षा को अपनी पहचान बरकरार रखने के लिए उत्तराखंड संस्कृति शिक्षा महकमे की ओर से पौड़ी में जनपदीय संस्कृति विद्यालय में प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है इसमें दौड़, लंबी कूद, सूत्र स्मरण जैसे अन्य और खेलकूद आदि है। प्रतियोगिता का मुख्य मकसद है कि हम अपनी धरोहर और पौराणिक संस्कृति को फिर से उसकी पहचान दिल सके। इसमें जनपद के 11 संस्कृत विद्यालयों के 200 से अधिक छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया। पौड़ी के संस्कृति विद्यालय ज्वालपा देवी परिसर में आयोजित प्रतियोगिता में बतौर मुख्य अतिथि अपर निदेशक प्राथमिक शिक्षा में शिरकत की। सहायक निदेशक का कहना है कि हमारी संस्कृत भाषा बहुत पुरानी है यह केवल कर्मकांड में ही नहीं रहनी चाहिए इस भाषा को व्यावहारिक रूप देना है जिससे लोग रोजमर्रा के जिंदगी में इसका प्रयोग करें । इस तरह के आयोजन और प्रतियोगिता की मदद संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जाएगा इसमें हो रही कमेंट्री भी संस्कृत भाषा मे की जा रही है जो अपने आप में एक अनोखी पहल है।
बाइट-डा वाजश्रवा आर्य(सहायक निदेशक संस्कृत शिक्षा पौड़ी गढ़वाल)Conclusion:
Last Updated : Nov 21, 2019, 10:06 PM IST
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