पौड़ी: क्रिकेट कमेंट्री तो आपने काफी बार सुनी होगी लेकिन ज्यादातर अंग्रेजी या हिंदी भाषा में, आज हम आपको संस्कृत में कमेंट्री सुनाने जा रहे हैं. ये अनोखा प्रयोग किया गया है उत्तराखंड के पौड़ी जिले में. दरअसल, यहां संस्कृत विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता के दौरान संस्कृत में कमेंट्री की गई है. यहां मौजूद अन्य छात्रों ने इस दौरान उसका वीडियो रिकॉर्ड किया. संस्कृत में अनोखी कमेंट्री सुनने के लिये सोशल मीडिया पर ये वीडियो वायरल हो रहा है.
उत्तराखंड की दूसरी राजभाषा का दर्जा हासिल करने वाली संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है, जिससे सभी भारतीय भाषाओं का जन्म हुआ है. तेजी से बदलते समय के साथ हमारी ये धरोहर भी हमसे दूर हो गई है. इस बदलाव में कई अच्छी चीजे हुईं तो कहीं कुछ हमसे पीछे छूटता भी गया, इसी बदलते समाज में संस्कृत भाषा ख़त्म होने की कगार पर है. लेकिन संस्कृति और विरासत को बनाए रखने के लिए शिक्षा विभाग से जुड़े कुछ लोगों ने पहल की है, जिसमें संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है.
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पौड़ी के जनपदीय संस्कृत विद्यालय में खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है. प्रतियोगिता में दौड़, लंबीकूद, सूत्र स्मरण जैसे अन्य खेलकूद में बच्चे बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य अपनी धरोहर और पौराणिक संस्कृति को फिर से पहचान दिलाने की है. प्रतियोगिता में जनपद के 11 संस्कृत विद्यालयों के 200 से अधिक छात्र-छात्राओं ने भाग लिया. खेलकूद प्रतियोगिता में संस्कृत में कमेंट्री के साथ ही छात्र-छात्राओं को इसके महत्व के बारे में बताया गया.
पौड़ी के संस्कृति विद्यालय में आयोजित प्रतियोगिता में बतौर मुख्य अतिथि अपर निदेशक संस्कृति शिक्षा वाजश्रवा आर्य ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंन कहा कि संस्कृत भाषा बहुत पुरानी है यह केवल कर्मकांड में ही नहीं रहनी चाहिए. इस भाषा को व्यावहारिक रूप भी देना चाहिए. जिससे लोग रोजमर्रा के जिंदगी में इसका प्रयोग करें. इस तरह के आयोजन और प्रतियोगिता की मदद संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया जाना है. प्रतियोगिता में संस्कृति भाषा में कमेंट्री इसलिए की जा रही है, जिससे लोग इस भाषा के महत्व को समझ सके.
भारत देश जहां कभी संस्कृत भाषा सर्वोपरी थी, आज उसकी जगह अंग्रेजी ने ले ली है. हमारे देश में इंग्लिश बोलना तो शान की बात मानी जाती है और इसके सीखने की ललक ऐसी है कि जगह-जगह इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स चलते हैं. किसी भाषा को अपनाना, उसे सीखना गलत नहीं है लेकिन इस अंधी दौड़ में अपनी भाषा को भूल जाना कहां तक सही है?