पौड़ी: उत्तराखंड की जनता सभी पांचों लोकसभा सीटों के लिये 11 अप्रैल को अपने मताधिकार का प्रयोग करेगी और इसी के साथ सभी प्रत्याशियों का भाग्य ईवीएम में कैद हो जाएगा. चुनाव से पहले जनता का मन टोटलने की कोशिश के तहत ईटीवी भारत की टीम सबसे पहले उत्तराखंड की गढ़वाल सीट का सूरत-ए-हाल जानने पौड़ी शहर पहुंची. इस दौरान हमने हर वर्ग के लोगों से बातचीत की और जाना कि क्या रहेगा 'चुनाव भारत का'...
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उत्तराखंड के चार जिलों (पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली और टिहरी गढ़वाल) को समाहित कर बनी बावन गढ़ों वाली बनी गढ़वाल लोकसभी सीट हिंदुओं के पवित्र तीर्थ बदरीनाथ से शुरू होकर केदारनाथ के साथ ही सिखों के पवित्र हेमकुंड साहिब से होते हुए मैदान की ओर उतरती है. तराई में रामनगर व कोटद्वार पहुंचकर समाप्त होती है.
गढ़वाल सीट साल 1957 में हुए परिसीमन के बाद ये सीट अस्तित्व में आई. इस सीट पर अमूमन बीजेपी और कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. ये सीट शुरू से ही सैनिक बाहुल्य सीट मानी जाती है. आजादी 1952 से 1977 तक इस सीट पर लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा. 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर के दौरान कांग्रेस को यहां हार का मुंह देखना पड़ा और जनता पार्टी के जगन्नाथ शर्मा यहां से चुनाव जीते.
वर्तमान में बीजेपी का कब्जा है. रिटा. मेजर जरनल भुवन चंद्र खंडूड़ी यहां से सांसद हैं. उन्होंने 2014 में तत्कालीन कांग्रेस के कद्दावर नेता हरक सिंह रावत को बड़े अंतर से हराया था.
17वीं लोकसभा के चुनावों में गढ़वाल सीट पर मुकाबला बेहद ही रोचक होने वाला है. रोचक इसलिए क्योंकि यहां इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी हैं मनीष खंडूड़ी जो निवर्तमान सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी के बेटे हैं. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी ने प्रत्याशी के तौर पर तीरथ सिंह रावत को उतारा है जो भुवन चंद्र खंडूड़ी के शिष्य माने जाते हैं. इनके अलावा 7 और प्रत्याशी चुनावी में मैदान में हैं. इन्हीं समीकरणों को ध्यान में रखते हुये हमने सीधे बात की पौड़ी की जनता और जनप्रतिनिधियों से.
इस मौके पर जनता से सीधे जनप्रतिनिधियों से सवाल किये और अपनी शिकायतों को साझा किया. जहां बीजेपी-कांग्रेस प्रतिनिधि आपस में आरोप-प्रत्यारोप करते रहे तो वहीं उन्हें जनता के गुस्से का भी सामना करना पड़ा. पौड़ी के जनमानस का साफ कहना है कि वो किसी पार्टी को नहीं उनके सुख-दुख को समझने वाले प्रत्याशी को वोट देंगे, जो उनके क्षेत्र के विकास में मददगार साबित हो सके.