देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति अब भाजपा-कांग्रेस के इर्द गिर्द ही सीमित हो गई है. स्थिति ये है कि लोकसभा, विधानसभा ही नहीं निकायों में भी छोटे दलों का सुपड़ा साफ हो गया है. खासतौर पर उत्तराखंड क्रांति दल में तो मौजूदा स्थितियां नए रिफॉर्म की जरूरत को बयां कर रही हैं. दरअसल प्रदेश के 100 निकायों में यूकेडी और आप जैसे दल एक भी सीट नहीं जीत पाए हैं.
निकाय चुनाव में हाशिये पर छोटे दल: उत्तराखंड में निकाय चुनाव के परिणाम आने के बाद तमाम राजनीतिक दल समीक्षा में जुट गए हैं, एक तरफ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जीती हुई सीट के मार्जिन पर चिंतन में जुटी हुई है तो वहीं कुछ डाल ऐसे भी हैं जो प्रदेश में अपने वजूद को तलाश रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति उत्तराखंड क्रांति दल की है. जो कभी विधानसभा सीटों पर जीत का दमखम रखती थी, वो आज छोटी सरकार में एक सीट के लिए भी तरस रही है.
जमानत भी नहीं बचा पाए छोटे दल: उधर आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में विस्तार की सोच के साथ कदम तो रखा, लेकिन पार्टी का हश्र निकाय चुनाव के परिणामों ने तय कर दिया. राज्य में 100 निकायों के लिए चुनाव हुए थे, जिसमें 11 नगर निगम, 43 नगर पालिका और 46 नगर पंचायत शामिल थी. चुनाव परिणाम के दौरान जो आंकड़े सामने आए उसने उत्तराखंड क्रांति दल और आम आदमी पार्टी को तगड़ा झटका दिया. यह दोनों ही पार्टियों 100 निकायों में एक भी सीट जीतना तो दूर अपनी जमानत भी नहीं बचा सकी.
तीसरे नंबर पर भी नहीं रही यूकेडी: देहरादून में मेयर पद के लिए आए परिणामों में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी सौरभ थपलियाल ने 1 लाख से ज्यादा मतों से जीत हासिल की तो दूसरे नंबर पर कांग्रेस के प्रत्याशी वीरेंद्र पोखरियाल रहे. यूकेडी और आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर भी अपनी जगह नहीं बना सके और निर्दलीय प्रत्याशी सरदार खान ने 9000 से ज्यादा वोट पाकर तीसरा स्थान हासिल किया. जबकि उत्तराखंड क्रांति दल और आम आदमी पार्टी को 3 हजार से भी कम वोटों तक ही सिमटना पड़ा.
यूकेडी नेता क्या कह रहे: उत्तराखंड क्रांति दल के नेता शांति प्रसाद भट्ट कहते हैं कि राज्य स्थापना के आंदोलन से जुड़े उत्तराखंड क्रांति दल का जो हश्र चुनाव में हुआ है, वह परेशान करने वाला है और यह बताता है कि यह पार्टी को नए सिरे से शुरुआत करनी ही होगी. हालांकि वह यह भी कहते हैं कि आम लोगों को भी उन दलों से सतर्क रहना होगा जिन्होंने अब तक उत्तराखंड को लूटने का काम किया है.
वित्तीय रूप से पार्टी कमजोर: उत्तराखंड क्रांति दल राज्य स्थापना के बाद विधानसभा चुनाव में तीन सीटें जीतने में कामयाब रही थी, इसके बाद धीरे-धीरे पार्टी की परफॉर्मेंस कम होती चली गई. आज लोकसभा या विधानसभा तो दूर निकाय में भी पार्टी का कोई प्रतिनिधि नहीं जीत का रहा है. इसके पीछे की वजह पार्टी की ही वह गलतियां है जिसके कारण पार्टी आज रसातल पर चली गई है. हालांकि वित्तीय रूप से पार्टी की कमजोरी ने भी इस दल को सत्ता से दूर किया है.
पार्टी राज्य में कभी उभर नहीं पाई: उधर आम आदमी पार्टी ने विधानसभा चुनाव के साथ उत्तराखंड में दस्तक दी थी और पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल ने इसकी घोषणा की थी. लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी के अधिकतर प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई और उसके बाद पार्टी राज्य में कभी उभर ही नहीं पाई.
राजनीतिक भाजपा और कांग्रेस तक सिमटी: वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली कहते हैं कि उत्तराखंड में अब राजनीतिक भाजपा और कांग्रेस के बीच सिमट कर रह गई है. बड़ी बात यह है कि तमाम चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी भी कई जगहों पर बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन उत्तराखंड क्रांति दल और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को अपनी जमानत भी खोनी पड़ रही है. नीरज कोहली कहते हैं कि जैसे-जैसे राज्य की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस मजबूत हुई है, वैसे-वैसे ही क्षेत्रीय दल और आम आदमी पार्टी का यहां राजनीतिक रूप से सरवाइव करना भी मुश्किल हुआ है.
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