पौड़ी: पाबौ ब्लॉक में प्रसिद्ध बूंखाल कालिंका मेला (Bunkhal mela) आयोजित किया गया. उच्च शिक्षा मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने बूंखाल कालिंका मेले (Dhan Singh Rawat at Bunkhal mela) में शिरकत की. इस दौरान धन सिंह रावत ने कालिंका देवी की पूजा अर्चना की. इस मौके पर उन्होंने पूरे राज्य और क्षेत्र की खुशहाली की कामना की. धन सिंह रावत ने कहा यह मेला काफी वर्षों से हर साल भव्य रूप में मनाया जाता है.
लोगों को संबोधित करते हुए क्षेत्रीय विधायक एवं काबीना मंत्री डॉ रावत (Cabinet Minister Dhan Singh Rawat) ने कहा लोगों की आस्था के कारण श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए यहां पर पार्किंग की व्यवस्था की जाएगी. साथ ही शौचालय की व्यवस्था और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए उत्पादों का बाजार भी लगाया जाएगा. उन्होंने कहा यदि क्षेत्र की जनता ने चाहा तो मेले को तीन दिन का कराया जाएगा.
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धन सिंह रावत (Cabinet Minister Dhan Singh Rawat) ने कहा 50 करोड़ की लागत से कंडारस्यूं क्षेत्र के लिए पेयजल योजना की स्वीकृति की गई है. जल्द ही क्षेत्र के प्रत्येक घर में पेयजल उपलब्ध कराया जाएगा. उन्होंने कहा चोंरीबंगला से पीठुन्डी तक पेयजल के बड़े-बड़े टैंक बनाये जाएंगे. जिससे क्षेत्र के लोगों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. इस अवसर पर काबीना मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने पत्नी दीपा रावत के साथ प्रसाद वितरण कर भण्डारे की शुरुवात की. साथ ही उन्होनें स्वास्थ्य शिविर का निरीक्षण कर आम जनमानस की समस्याओं को भी सुना.
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मेले में सुरक्षा की दृष्टिगत रखते हुए पुलिस प्रशासन, आपदा प्रबंधन, राजस्व विभाग द्वारा पुख्ता इतंजाम किये थे. मेले में जागर सम्राट पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने जागरों की बेहतरीन प्रस्तुतियां दी.
क्या है मान्यता: किवदंती के अनुसार गाय चुगाते वक्त बच्चों ने शरारत में एक बालिका को खड्ड में दबा दिया. इसके बाद वे अपने घर चले गए, लेकिन बालिका वहीं दबी रह गई. रात्रि में वह गांव के प्रधान के सपने में जानकर घटना बताती है और कहती है कि उसने काली का रूप ले लिया है. उसका मंदिर निर्मित कर उनकी पूजा शुरू करो. काली का मंदिर बनने के बाद वह आवाज देकर लोगों को हर घटना की जानकारी देती थी.
इस बीच, गोरखाओं ने आक्रमण किया तो वह गांव में पहुंचने से पहले आवाज देकर गोरखाओं की सूचना दे देती. गोरखाओं ने तंत्र से खड्ड में दबी देवी को उलटा कर दिया. तब से आवाज बंद हुई. कालिंका के इसी खड्ड में पहले सैकड़ों की तादाद में पशु बलि दी जाती थी. माना जाता था कि बलि के बाद देवी की कृपा प्राप्त होती है. वर्ष 2011 से पशुबलि बंद हो चुकी है. अब गांव ग्रामीण मेले के दिन ढोल-दमाऊं, निसांण और डोली लेकर मंदिर में सात्विक पूजा-अर्चना करते हैं.